आयुर्वेद: जीवन का विज्ञान -आयुर्वेद एक प्राचीन भारतीय चिकित्सा प्रणाली है जिसकी उत्पत्ति लगभग 5000 वर्ष पूर्व हुई थी। यह विज्ञान मन, शरीर और आत्मा के बीच संतुलन की महत्ता को मान्यता देता है। आयुर्वेद शब्द ‘आयुस्’ (जीवन) और ‘वेद’ (विज्ञान या ज्ञान) से मिलकर बना है, अर्थात् जीवन का विज्ञान।

मूल सिद्धांत

पंचमहाभूत

आयुर्वेद में पंचमहाभूत (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश) को जीवन के मूलभूत तत्व माना जाता है। ये तत्व संपूर्ण ब्रह्मांड और मानव शरीर के निर्माण में आधारभूत होते हैं।

त्रिदोष

वात, पित्त और कफ ये तीन दोष शरीर के फिजियोलॉजिकल फंक्शंस को नियंत्रित करते हैं। इनका संतुलन शरीर के स्वास्थ्य और रोगों के प्रबंधन में महत्वपूर्ण होता है।

सप्तधातु

सात धातुएँ – रस, रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा, और शुक्र – शरीर की संरचना और क्रियाओं को आधार प्रदान करते हैं।

आयुर्वेदिक ग्रंथ

चरक संहिता

चरक संहिता आयुर्वेद का एक मुख्य ग्रंथ है जिसमें चिकित्सा सिद्धांतों के साथ-साथ विभिन्न रोगों के निदान और उपचार के तरीके वर्णित हैं। इसे महर्षि चरक ने संकलित किया था।

सुश्रुत संहिता

सुश्रुत संहिता, जिसे महर्षि सुश्रुत ने लिखा, शल्य चिकित्सा (सर्जरी) पर केंद्रित है। यह ग्रंथ विश्व के पहले सर्जिकल टेक्स्ट के रूप में जाना जाता है।

अष्टांगहृदयम

वाग्भट द्वारा रचित, अष्टांगहृदयम आयुर्वेद के आठ अंगों पर विस्तृत जानकारी प्रदान करता है। यह ग्रंथ चिकित्सा, बाल रोग, ग्रहणी, उर्जकर्म (टॉक्सिकोलॉजी), शल्य चिकित्सा, जरा चिकित्सा (जेरिएट्रिक्स), वृष्य चिकित्सा (एफ्रोडिसियाक्स), और मनोरोग पर प्रकाश डालता है।

उपचार पद्धतियाँ

आयुर्वेदिक उपचार पद्धतियाँ प्राकृतिक औषधियों, आहार संशोधन, पंचकर्म, योग, और ध्यान पर आधारित होती हैं। इनका उद्देश्य शरीर के दोषों को संतुलित करना और रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाना होता है।

निष्कर्ष

आयुर्वेद एक समग्र और व्यापक चिकित्सा प्रणाली है जो मनुष्य के सम्पूर्ण स्वास्थ्य पर ध्यान देती है। इसकी पद्धतियाँ और सिद्धांत आज भी विश्वभर में प्रासंगिक हैं और स्वस्थ जीवनशैली की ओर मार्गदर्शन करते हैं। आयुर्वेदिक ग्रंथ और उपचार पद्धतियाँ मानव स्वास्थ्य के विभिन्न पहलुओं पर गहराई से प्रकाश डालते हैं, जिससे यह चिकित्सा प्रणाली अपने आप में अद्वितीय और अत्यंत महत्वपूर्ण साबित होती है।

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