अर्जुन एक वृक्ष है । जिस की छाल का प्रयोग आयुर्वेदिक औषधि के रूप में किया जाता है । आज हम इस पोस्ट में जानेंगे अर्जुनारिष्ट क्या है? इसके घटक द्रव्य क्या है? इसका उपयोग कहां कहां पर किया जाता है? इसके साथ ही सेवन मात्रा और सावधानियों के बारे में जानिए ।
अर्जुनारिष्ट को पर्थाद्यरिष्ट के नाम से भी जाना जाता है । भैषज्य रत्नावली के अनुसार हृदय रोग में इसका प्रयोग किया जाता है ।
अर्जुन एक उत्तम श्रेणी का ह्रदय को लाभ पहुंचाने वाला द्रव्य है । इसका ह्रदय को ताकत देना तथा ह्रदय की कार्य शक्ति को बढ़ाना है । इसके साथ ही यह फेफड़ों को भी मजबूत करता है और उनकी कार्यक्षमता को भी बढ़ाता है ।
अर्जुन में रक्त स्थम्भन के गुण पाए जाते हैं । जिसके कारण की रक्त प्रदर में तथा रक्तातिसार रोग में किया जाता है ।
इसके साथ ही हृदय की मांसपेशियों की दुर्बलता के कारण होने वाला श्वास तथा सुजन की समस्या में इसका प्रयोग लाभ कर रहता है ।
Table of Contents
अर्जुनारिष्ट के घटक द्रव्य-
यह अरिष्ट लिक्विड रुप में क्वाथ द्रव्य के मिश्रण से तैयार किया जाता है ।
- अर्जुन की छाल 10 भाग
- कृष्ण द्राक्षा 5 भाग
- मधुक के फूल 2 भाग
- धातकी के फूल 2 भाग
- गुड आवश्यकता के अनुसार
अर्जुनारिष्ट के उपयोग
- विशेष रुप से हृदय रोगों में इसका प्रयोग आयुर्वेद चिकित्सकों द्वारा किया जाता है ।
- दिल की धड़कन बढ़ना
- पसीना आना
- गला सूखना
- बेचैनी इत्यादि समस्याओं में अर्जुनारिष्ट का उपयोग किया जाता है ।
सेवन मात्रा-
दो से चार चम्मच की मात्रा 10 से 20 एमएम की मात्रा बराबर गुनगुने पानी से सुबह शाम खाना खाने के बाद चिकित्सक के निर्देशानुसार सेवन करना चाहिए ।
सावधानी-
बच्चों की पहुंच से दूर रखें ।
निर्धारित मात्रा से अधिक मात्रा में सेवन ना करें ।
तली हुई चीजें , खट्टी चीजों से परहेज रखें ।
कहां से खरीदें?
हर आयुर्वेदिक मेडिकल स्टोर पर आसानी से उपलब्ध है । अलग-अलग फार्मेसी अर्जुनारिष्ट के नाम से विक्रय करती हैं ।
चेतावनी- यहां पर दी गई समस्त जानकारी चिकित्सा परामर्श नहीं है । किसी भी आयुर्वेदिक औषधि के सेवन से पहले रजिस्टर्ड आयुर्वेद चिकित्सक की सलाह आवश्यक है ।
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