कज्जली इन आयुर्वेद kajjali in ayurveda – आयुर्वेद में कज्जली का महत्त्व रस औषधियों ने किया जाता है । शुद्ध पारद और शुद्ध गंधक का आपस में लगातार ३ से ४ दिनों या पहर तक पत्थर के खरहल में मर्दन बिना किसी द्रव को मिलाये (घोटना) या पारद को किसी धातु या गंधक को किसी धातु के साथ ३ से ४ दिनों या पहर तक मर्दन बिना किसी द्रव को मिला के बाद काले रंग बारीक़ काजल की तरह की जो भस्म तैयार होती है वही कज्जली कही जाती है ।
कज्जली के भेद -( कज्जली इन आयुर्वेद kajjali in Ayurveda )
पारद की मात्रा में परिवर्तन नहीं किया जाता परन्तु गंधक की मात्र को बढाया व घटाया जा सकता है ।
पारद व गंधक बराबर मात्रा में
पारद व गंधक असमान मात्रा
पारद से दोगुना गंधक
पारद से चार गुणा गंधक
पारद से आठ गुना गंधक
पारद से सोलह गुना गंधक
पारद से बत्तीस गुना गंधक
पारद से चोसठ गुना गंधक
कज्जली के साथ धातुओ की कज्जली
- स्वर्ण धातु के साथ कज्जली
- रजत धातु के साथ कज्जली
- ताम्र के साथ कज्जली
कज्जली के फायदे – benefits of kajjali
- औषधियों की कार्य क्षमता को बनाये रखने में मदद करती है ।
- औषधियों को सडन से बचाती है ।
- औषधी के गुणों में वृद्धि करती है ।
- कज्जली औषधी को योगवाही बनाती है । सूक्ष्म स्त्रोतों कके अवरोध को हटाकर औषधी के प्रभाव को बढाती है ।
- औषधी की कम मात्रा का उपयोग करना पड़ता है ।
- ह्रदय को उत्तेजित करती है ।
- वृष्य होने के कारण शरीर को ताकत देती है ।
- एंटी बेक्टेरियल गुण होने के कारण जीवाणुओ का नाश करती है ।
आपने जाना कज्जली इन आयुर्वेद kajjali in ayurveda
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