चतुर्मुख रस chaturmukh ras(भैषज्य रत्नावली) इसका नामकरण सृष्टि के रचयिता भगवान ब्रह्मा जी के नाम से लिया है। पूरी जगत के फायदे और उसके हित के लिए इस कल्प को बनाया गया है । चतुर्मुख रस chaturmukh ras औषधि मुख्य रूप से चिकित्सकों द्वारा उन रोगियों के लिए लिखी जाती है। जिन रोगियों में मस्तिष्क संबंधी कोई विकार या बीमारी है। दूसरा उन रोगियों के लिए लिखी जाती है जो धातु क्षीणता के रोगी है। धातु क्षीणता से हमारा तात्पर्य है शरीर में रस रक्त अस्थि मज्जा शुक्र जैसे धातु की शरीर में कमी होती है। या इन धातुओं के निर्माण की प्रक्रिया में बाधा है तो चतुर्मुख रस का उपयोग कर उस अवरोध को हटाकर। शरीर को फिर से बलवान बनाया जा सकता है। साथ ही जिन रोगियों में वात का प्रकोप है। अर्थात वात रोगी है। शरीर में कहीं ना कहीं का पीडा रहती है।उन रोगियों के लिए भी यह लाभदायक है। चतुर्मुख रस chaturmukh ras का रोगाधिकार वात व्याधि है।
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चतुर्मुख रस chaturmukh ras घटक द्रव्य
कई कंपनियों द्वारा इसका निर्माण वटी या गोली के रूप में किया जाता है।
- शुद्ध पारद 4 भाग
- शुद्ध गंधक 4 भाग
- लौह भस्म 4 भाग
- अभ्रक भस्म 4 भाग
- स्वर्ण भस्म 1 भाग कुमारी स्वरस की भावना दी जाती है। (आवश्यकता के अनुसार)
चतुर्मुख रस chaturmukh ras का उपयोग किन रोगों में होता है?-
- राजयक्ष्मा (ट्यूबरक्लोसिस)
- पीलिया
- ग्रहणी
- अग्निमांद्य
- स्त्रियों में वंध्यत्व की समस्या में
- एसिडिटी अम्ल पित्त
- अर्श रोग
- मूर्छा उन्माद आक्षेपक
- विसर्प
- पलित
- तंत्रिका से संबंधित रोग।
- प्रमेह के रोगी
सेवन मात्रा
एक से दो गोली दिन में एक से दो बार चिकित्सक के निर्देशानुसार।
अनुपान
सारस्वतारिष्ट दशमूलारिष्ट त्रिफला चूर्ण शहद के साथ चिकित्सक के निर्देशानुसार रोगानुसार अनुपान अलग अलग हो सकता है।
सावधानी-
औषधि में शुद्ध धातु का उपयोग है इसे बिना चिकित्सक की सलाह के ज्यादा समय तक लेना हानिकारक हो सकता है। गर्भवती महिलाएं और बच्चों को बिना चिकित्सक की सलाह सेवन ना करवाएं।
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चेतावनी- किसी भी आयुर्वेदिक औषधि के सेवन से पूर्व आयुर्वेद चिकित्सक की सलाह जरूर लें। यहां पर दी गई जानकारी को चिकित्सा परामर्श के रूप में ना समझे।