Table of Contents
ग्रीष्म ऋतु (मई माह से जून माह):-
दोस्तों इस मौसम में आपको पता ही है कि बहुत गर्मी पड़ती है और तीज गर्म हवाएं चलती है जिसे लू कहते हैं। इस मौसम में लोगों के बीमार होने का कारण गर्मी में बाहर निकलना भी एक वजह है। इसलिए हर व्यक्ति को गर्मी में आवश्यक है तो ही निकले अगर निकलना ही पड़े तो आप सफेद रंग के सूती वस्त्र और सिर पर टोपी या साफा धरण करें। महिलाएं स्कार्फ का प्रयोग करें ।
आवश्यक होने पर छाते का भी प्रयोग कर सकते हैं। धूप में सिर पर किसी भी टोपी या साफे का प्रयोग करने से धूप सीधी आपकी त्वचा के संपर्क में नहीं आएगी जिससे आप लू से बच सकते हैं। इस मौसम में खाने पीने का भी ध्यान रखें चटपटे मसालेदार खाद्य पदार्थ समोसा कचोरी तले हुए खाद्य पदार्थ जैसी चीजें ना खाएं। मादक पदार्थों तथा शराब का सेवन ना करें।
भूख लगने पर आप भुने हुए अनाज चने , जौ की धानी का सत्तू, शहतूत अंगूर चीकू पपीता जैसे फलों को खाए। तथा मौसमी फलों के रस का प्रयोग करें। समय पर भोजन करें तथा भोजन में दही छाछ रबड़ी तथा प्याज का प्रयोग करें। मक्खन मिश्री का प्रयोग करें। आंवले का मुरब्बा बिल का मुरब्बा गुलाब का शरबत इत्यादि भी ले सकते हैं। गर्मी के समय में भोजन जल्दी खराब होता है इसलिए 4 घंटे से पुराना खाना सेवन न करें । क्योंकि भोजन की दूषित होने से आपको उल्टी दस्त बुखार जैसी समस्याएं हो सकती है।
वर्षा ऋतु:-( जुलाई से अगस्त)
इस मौसम में सबसे ज्यादा बीमारी का कारण दूषित जल है। क्योंकि वर्षा ऋतु में सभी जल स्रोतों में दूषित जल आ जाता है और इसके प्रयोग से कई प्रकार की बीमारियां लोगों में देखने को मिलती है। ज्यादातर मामलों में आप देखेंगे तो बुखार दस्त उल्टी जैसी शिकायतें सबसे ज्यादा होती है। इसलिए जहां तक हो सके खुले जल स्रोतों नदी तालाब बावड़ी या कुओं से जल का प्रयोग ना करें। हैंडपंप नलकूपों के जल का प्रयोग करें तथा जहां तक हो सके जल का उपयोग एक बार उबाल लेने के बाद ही करें। जल को बार लेने से जल में उपस्थित सभी प्रकार की बैक्टीरिया वायरस यानी कि जीवाणु विषाणु खत्म हो जाते हैं। जिससे आप बीमार नहीं पड़ेंगे। पानी की टंकियों को शुद्ध जल हेतु थोड़ी सी फिटकरी अथवा निर्मली के बीज डालने से जल शुद्ध और हल्का हो जाता है। इस मौसम में पुराना अनाज नमकीन खट्टी चीजें खा सकते हैं। भोजन समय पर और ताजा बनाया हुआ ही ग्रहण करें। शरीर पर हल्की और सूखे वस्त्रों को धारण करें। बार बार भोजन न करें जिससे भोजन को पचने में समय मिले। भोजन को खुला ना छोड़े जिससे मक्खियां भोजन को प्रदूषित ना करें। इस मौसम में मच्छरों का प्रकोप ज्यादा होता है जिससे अपने आसपास गड्ढों में पानी भरा हुआ ना रहने दें तथा मच्छरदानी आदि का प्रयोग करें।दिन में सोना तेज मिर्च मसाले वाली भोज्य पदार्थ तथा बासी भोजन का प्रयोग नहीं करना है।
शरद ऋतु( सितंबर से अक्टूबर)
इस मौसम में वर्षा ऋतु के बाद धूप थोड़ी तेज हो जाती है जिससे शरीर में पित्त का प्रकोप होता है। जिससे बुखार के रूप में मौसमी बीमारियां आपको देखने को मिलती है। हर घर में खांसी जुकाम बुखार के रोगी आपको सामान्यतः मिल जाएंगे। इस मौसम में आपका हाजमा ठीक होना चाहिए यानी कि आपका पाचन तंत्र मजबूत होना चाहिए। पेट साफ हो कब्ज की शिकायत नहीं रहे। पुराना अनाज हल्का ठंडी प्रकृति का भोजन करें मीठी तथा कसेली खाद्य पदार्थों का उपयोग करें। इस मौसम में दही छाछ तेल तेज मिर्च मसाला वाला खाना नहीं खाना चाहिए तथा दिन में सोना भी नहीं चाहिए।
इस मौसम में मुख्य रूप से पैत्तिक ज्वर, विषम ज्वर यानी कि मलेरिया, वातश्लेष्मीक ज्वर यानी कि न्यूमोनिया ज्यादातर हो जाता है। इसलिए इन रोगों से बचाव के लिए हमेशा पेट साफ रहना चाहिए। पेट साफ रखने के लिए आप विवेचक औषधियों का सेवन कर सकते हैं जिसमें त्रिफला चूर्ण हरीतकी चूर्ण एजेंट तेल अमलतास का काढ़ा आदि का चिकित्सक की देखरेख में उपयोग कर सकते हैं। पेट साफ रहेगा तो मौसमी बीमारी होने की संभावना कम रहेगी।दिनचर्या
बुखार होने पर कौन सी आयुर्वेदिक औषधियों का प्रयोग करें।
आयुर्वेदिक औषधियों का प्रयोग चिकित्सक की देखरेख में करें
कुटकी चिरायता का चूर्ण:- यह वही पुरानी और परंपरागत औषधि है। इस औषधि का प्रयोग 2 से 5 ग्राम चूर्ण को पानी में उबालकर आधे से कम रहने पर प्रयोग करें।
गिलोय घन वटी :- गिलोय घन वटी का प्रयोग सामान्यतया बुखार में चिकित्सकों द्वारा किया जाता है। एक एक गोली दिन में दो बार खाना खाने के बाद।
बुखार में प्रयोग की जाने वाली सामग्री औषधियां- मलेरिया बुखार में संजीवनी तथा महासुदर्शन चूर्ण का उपयोग किया जाता है संजीवनी वटी दो-दो गोली दिन में दो बार खाना खाने के बाद महासुदर्शन चूर्ण 1 से 2 ग्राम ताजा पानी से दिन में दो बार खाना खाने के बाद प्रयोग कर सकते हैं।
अतिसार यानी दस्त में प्रयोग की जाने वाली आयुर्वेदिक औषधियां-
आम की गुठली को सेक कर उसका प्रयोग करें। अनार दानी जामुन सांगरी का रायता बेल का शरबत दही छाछ का प्रयोग कर सकते हैं। धान्यपंचक क्वाथ का प्रयोग कर सकते हैं। दही चावल का प्रयोग करें। पानी उबला हुआ उपयोग करें। कच्चा दूध ना पिलाए। सौंफ का अर्क पिलाएं।
पीलिया रोग joindis में औषधियों का प्रयोग
कुटकी का चूर्ण एक चम्मच मिश्री मिलाकर सुबह में पानी से लें। गन्ने और मूली का रस तथा नीम गिलोय का रस पीए। त्रिफला चूर्ण तथा आरोग्यवर्धिनी वटी का प्रयोग करें। तली हुई तथा गरिष्ठ भोजन का प्रयोग ना करें। मकोय का अर्क पिए ।पानी उबालकर प्रयोग करें।
उल्टी दस्त में आयुर्वेदिक औषधियों का प्रयोग
उल्टी दस्त रोग का मुख्य कारण प्रदूषित भोजन या प्रदूषित जल है। पानी उबालकर पिए और दूषित भोजन का सेवन ना करें। अमृतधारा का प्रयोग बताशे में एक से दो बूंद। पुदीने का अर्क,सौंफ का अर्क ,अजवाइन का अर्क, धान्य पंचक क्वाथ, पानी का प्रयोग उबालकर करें।
लू लगने पर आयुर्वेदिक औषधीयो का प्रयोग
रोगी को ठंडी छायादार स्थान पर रखें। कैरी या इमली के पानी का प्रयोग करें। जलजीरा का प्रयोग करें।