अभ्रक भस्म

अभ्रक भस्म

अभ्रक भस्म क्या है?

अभ्रक भस्म यह एक खनिज है । यह सफेद भूरे या काले रंग का होता है । यह भारतवर्ष में कई प्रांतों में पाया जाता है । यह बिहार राजस्थान बंगाल आदि राज्यों में पाया जाता है । राजस्थान में भीलवाड़ा तथा चित्तौड़गढ़ में इसकी माइंस है ।

इस खनिज का उपयोग कई तरह के उद्योगों में भी किया जाता है । साथ ही साथ आयुर्वेद में भी इसका अपना महत्व है । अभ्रक को शुद्ध सिद्ध करने के बाद औषधि के रूप में के रोगों के उपचार में उपयोग किया जाता है ।

यह चमकीला पारदर्शक मृदु और आसानी से अलग किया जा सकता है । इस के भी कई प्रकार है ।

आयुर्वेदिक औषधि अभ्रक भस्म बनाने के लिए सबसे उत्तम काले रंग का अभ्रक होता है । जिसे वज्र अभ्रक भी कहते हैं ।

क्योंकि इसे अग्नि में तपाने पर कोई परिवर्तन नहीं आता है । आयुर्वेद में इसे महारस के रूप में उपमा दी गई है । इस भस्म में आयरन के गुण होते हैं ।

अभ्रक के प्रकार-

आयुर्वेद के अनुसार चार प्रकार का अभ्रक पाया जाता है ।

  • पानक अभ्रक- जिस अभ्रक को अग्नि में डालने पर पत्तों की तरह खिल जाता है उसे पानक अभ्रक कहते हैं ।
  • दर्दुर अभ्रक- जिस अभ्रक को अग्नि में तपाने पर मेंढक के जैसी आवाज आए तो उसे दर्दुर अभ्रक कहते हैं ।
  • नाग अभ्रक- जिस अभ्रक को अग्नि में तपाने पर सांप के तरह आवाज यानी फुफकार सुनाई दे वह नाग अभ्रक कहलाता है ।
  • वज्र अभ्रक- अभ्रक को अग्नि में तपाने पर कोई भी परिवर्तन ना हो वह वज्र अभ्रक कहलाता है । इस अभ्रक का उपयोग आयुर्वेदिक औषधि एवं रसायन बनाने में किया जाता है ।

अभ्रक भस्म के गुण-

अभ्रक भस्म में कई प्रकार के रोगों को नष्ट करने की क्षमता होती है ।

सबसे पहले तो यह शरीर को मजबूत बनाता है । शरीर में श्वसन संस्थान के सभी रोगों में अभ्रक भस्म का उपयोग किया जा सकता है ।

राज्यक्षमा आज के समय में जिसे टीवी कहा जाता है । उसमें भी चिकित्सकीय निर्देशानुसार अभ्रक भस्म का उपयोग करने से अत्यधिक लाभ होता है ।

पुरानी खांसी हो दमा हो स्वसन संस्थान का कोई भी रोग हो सभी में यह किया जाता है ।

पीलिया हो शरीर में कहीं पर भी जलन जैसा अनुभव लंबे समय से होता हो प्रसूति रोग , धातु से पुराना बुखार,

हृदय रोग, खूनी बवासीर, ह्रदय रोग ,नेत्र रोग उन्माद, नकसीर, काली खांसी जैसे सभी रोगों में अभ्रक भस्म का उपयोग किया जाता है ।

यह रसायन औषधि भी है जिससे शरीर में वीर्य बढ़ता है । जिसे वाजीकरण औषधि के रूप में उपयोग किया जाता है ।

मात्रा-

125 मिलीग्राम से 250 मिलीग्राम चिकित्सक के निर्देशानुसार अलग-अलग रोग में अलग-अलग अनुमान के साथ अथवा शहद के साथ ।

फायदे-

  • यह तीनों दोषों को वात पित्त कफ संतुलित करती है ।
  • चिकित्सक के निर्देशानुसार अलग-अलग दोष अथवा रोग में अलग-अलग अनुमान के साथ अभ्रक भस्म का सेवन करना चाहिए ।
  • रक्त विकार में अभ्रक भस्म बाकूची चूर्ण के साथ प्रयोग कराया जाता है ।
  • पेट संबंधित रोगों में कुमारी आसव का अनुमान कराया जाता है ।
  • संग्रहणी रोग कुटजारिष्ट के साथ उपयोग किया जाता है ।
  • खूनी बवासीर या अर्श रोग में अभ्रक भस्म के साथ शुक्तिपिष्टी का उपयोग किया जाता है ।
  • ह्रदय रोगियों को ह्रदय की दुर्बलता में नागार्जुनाभ्र 100 पुटी का सेवन करवाया जाता है ।
  • मनोविकार में अभ्रक भस्म का उपयोग मुक्ता पिष्टी के साथ सेवन करवाया जाता है ।
  • स्वास एवं दमा रोग में गले में जो छाले हो जाते हैं । अभ्रक भस्म को मिश्री की चासनी में पिपली के चूर्ण के साथ में सेवन करवाना चाहिए ।
  • लंबे समय से हो रहे अम्ल पित्त में अभ्रक भस्म को अम्लपित्तांतक लौह और शहद के साथ सेवन करवाना चाहिए ।
  • प्रसूति रोगों में महिलाओं को दशमूलारिष्ट के साथ अभ्रक भस्म का सेवन करवाना चाहिए ।

विभिन्न रोगों में उपयोग-

गले का कफ हृदय रोग शरीर की कमजोरी एसिडिटी अम्ल पित्त नेत्र रोगों में पुराने बुखार में बवासीर डायबिटीज

भूख की कमी धातु क्षीणता में, पीलिया रोग, रक्त विकार, उदर रोग, मूत्र रोग पथरी इत्यादि रोगों में आयुर्वेद चिकित्सक द्वारा

अन्य औषधियों के योग के साथ अभ्रक भस्म का उपयोग अलग-अलग रोगों में अलग-अलग अनुपान के साथ करवाया जाता है । (और पढ़ेअकीक पिष्टी अकीक भस्म..)

चेतावनी-किसी भी आयुर्वेदिक औषधि का उपयोग करने से पहले प्रमाणित आयुर्वेद चिकित्सक से सलाह लेवे ।

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