अष्टांग योग क्या है ?

अष्टांग योग

अष्टांग योग-राजयोग को महर्षि पतंजलि का पितामह कहा जाता है।   राजयोग में 4 पादों का वर्णन मिलता है- समाधि पाद, साधन पाद, विभूति पाद, केवल्य पाद 

अष्टांग योग के 2 भाग से

 बहिरंग योग – यम, नियम, आसन, प्राणायाम, मन और शरीर का- का जुड़ाव होता है वहीं पर

 अंतरंग योग  प्रत्याहार ,धारणा , ध्यान, समाधि से केवल अंतःकरण का संबंध होता है

यम

अहिंसा -किसी भी प्राणी को मन कर्म और वचन से दुखी ना करना अहिंसा कहा गया है

सत्य -सच्चा व्यक्ति वह है प्रत्यक्ष देखकर, महसूस करने के उपरांत कहता है । किसी की कही गई बात को तोड़ मरोड़ कर पेश न करना सत्य कहलाता है। 

अस्तेय -किसी दूसरे के धन को अधर्म की सहारे हथियाने की आदत नहीं होनी चाहिए। 

ब्रह्मचर्य –इंद्रियों पर संयम रख कर ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।

अपरिग्रह –धन-संपत्ति को आवश्यकता से अधिक इकट्ठा करने की आदत लोभ का त्याग करना अपरिग्रह कहलाता है।

नियम

नियम पांच प्रकार के हैं

शौच – शौच से तात्पर्य पवित्रता से है। 

बाह्य पवित्रता— सात्विक भोजन करना, शुद्ध एवं निर्मल वस्त्र पहनना, शरीर को साफ रखना योग एवं व्यायाम से  शरीर को स्वस्थ रखना बाहरी पवित्रता कहते हैं। आंतरिक पवित्रता- मानसिक शुद्धि आध्यात्मिक विचारों के साथ मन को शुद्ध रखना आंतरिक पवित्रता है

संतोष -सांसारिक मोहमाया, विलासिता के लिए भौतिक पदार्थों को आवश्यकता से अधिक संग्रह नहीं करना ही संतोष कहलाता है। मन में आ रही इच्छाओं का त्याग करना ही संतोष है। 

तप –अहिंसा ब्रह्मचर्य का पालन करना, हमेशा सत्य बोलना, इंद्रियों मन को संयमित रखना, सुख और दुख में एक जैसा व्यवहार करना ही तप कहलाता है। 

स्वाध्याय – श्रीमद्भगवद्गीता आध्यात्मिक ग्रंथों, वेद और उपनिषद, का अध्ययन करना गायत्री मंत्र ओमकार  मंत्रों का जप करना स्वाध्याय कहलाता है। 

ईश्वर प्रणिधान — जो भी अच्छे कार्य शरीर के द्वारा, मन के द्वारा किए जाने वाले कर्म से प्राप्त फलों को ईश्वर को अर्पित करना

अष्टांग योग में आसन

शरीर को एक निश्चित समय के लिए शरीर और मन को बिना कष्ट पहुंचाए विशेष प्रकार की मुद्रा में रखना आसन कहलाता है।

आसन के बिना प्राणायाम का अभ्यास नहीं किया जा सकता है। आसन का लगातार अभ्यास करने से शरीर सुडौल और मन प्रफुल्लित रहता है।
आसन के कई वर्षों के अभ्यास के बाद भूख प्यास सर्दी गर्मी आदि से विचलित नहीं करती है। आसन कई प्रकार के होते हैं। शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य को देखते हुएआसनों का वर्णन मिलता है। महर्षि पतंजलि में असंख्य आसनों को बताया है।
शरीर को ताकत देने वाला- सूर्य नमस्कार,स्वस्तिकासन ,सर्वांगासन
विश्राम के लिए आसन- मकरसन , शवासन
ध्यान करने वाले आसन- पद्मासन सिद्ध योनी आसन, सुखासन,सिद्धासन
सभी प्रकार के आसन शरीर में स्टेबलाइजेशन लाते हैं।
स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होते हैं
शरीर लघुता महसूस करता है

आसन के नाम

  • सूर्य नमस्कार
  • अर्ध कटि चक्रासन
  • पाद हस्तासन
  • अर्ध चक्रासन
  • त्रिकोणासन
  • पद्मासन
  • सिद्धासन
  • वज्रासन
  • सुप्त वज्रासन
  • भद्रासन
  • शशांकासन
  • उष्ट्रासन
  • स्वस्तिकासन
  • पश्चिमोत्तानासन
  • गोमुखासन
  • वक्रासन
  • अर्ध मत्स्येन्द्रासन
  • पवन मुक्तासन
  • सर्वांगासन
  • हलासन
  • मत्स्यासन
  • चक्रासन
  • सेतुबंध आसन
  • भुजंगासन
  • शलभासन
  • धनुरासन

अष्टांग योग में प्राणायाम

प्राणायाम का शाब्दिक अर्थ – प्राण +आयाम

प्राण आर्थात प्राण वायु जन्म से ही मनुष्य प्राण वायु का सेवन करता है । प्राण वायु का शरीर में आना जाना जिससे हम जीवित रहते है । इस प्राण वायु पर नियंत्रण करना ही आयाम है । श्वास लेने व् छोड़ने की प्रक्रिया पर हमारा नियंत्रण ही प्राणायाम है । आसनादि का अभ्यास करने के बाद प्राणायाम का अभ्यास करना चाहिए ।

प्राणायाम के अभ्यास से पहले ध्यान देवे

स्थान कैसा हो ?– शुद्ध हवादार स्थान चुने । शांत वातावरण होना चाहिए । कमरे में ॐ का चिन्ह चित्र होना चाहिए । सिद्ध ऋषि मुनियों एवं महापुरुषों की तस्वीर लगी हुई हो ।

समय कैसा हो ?– सुबह शाम दिन में चार बार सुबह दोपहर शाम और मध्य रात्रि में करे । बसंत ऋतू और शीत ऋतू उत्तम है ।

क्या खाए क्या ना खाए?

खाली पेट करे –

रोजाना अभ्यास करने वाले योगी कभी भी कर सकते है ।

प्राणायाम के भेद –

अलग अलग मतभेदों के साथ इसका सारांश यह है की श्वास प्रश्वास की प्रक्रिया का नियंत्रण करना जिसमे – श्वास को नथुनों से अन्दर लेकर रोकना श्वास को नथुनों से बहार निकाल कर रोकना एवं साम्यावस्था में श्वास लेकर प्रश्वाश को करने के बाद रोकना या नियंत्रण करना । जिसकी

पूरक –

श्वास को नथुनों से अन्दर लेना

रेचक

श्वास को नथुनों से बहार निकालना

कुम्भक –

श्वास लेने व बहार छोड़ने की प्रक्रिया को रोकना

कुम्भक के भेद

  • सुर्यभेदी –
  • उज्जायी कुम्भक
  • शीतली कुम्भक
  • सीत्कारी कुम्भक
  • भस्त्रिका कुम्भक
  • भ्रामरी कुम्भक
  • मुच्छा कुम्भक
  • प्लाविनी कुम्भक

प्रत्याहार

प्रत्याहार का मतलब सामान्य भाषा में चंचल मन और इन्द्द्रियो को वश में करना है । इन्द्रियों को उनके विषयों से विरक्त करना है जो प्राणायाम ,कुम्भक ,त्राटक ,आदि के सहयोग से किया जाता है ।

धरणा-

मन को एकाग्रचित करना है ।मन को शरीर के अलग -अलग भागो में लगा कर स्थिर करना धारणा है ।

ध्यान

धयन की अलग अलग परिभाषाये हो सकती है लेकिन सामान्य भाषा में मन में किसी विषय पर मन को लगातार एकाग्रचित्त करने की प्रक्रिया ध्यान है । जिसमे कोई ईष्ट देवता , गुरु की मूर्ति ,निराकार परमात्मा ज्योत ,अग्नि या किसी बिंदु पर एकाग्रचित्त होना है ।

समाधि

समाधि आष्टांग योग का अंतिम सोपान है – समाधि को सामान्य भाषा में हमसे समझ सकते है की इन्द्रिया अपने विषयो से निवृत है । धारणा ध्यान आदि से सिद्ध पुरुष ही समाधि की कल्पना कर सकता है । समाधि आत्मा परमात्मा में निमग्न हो जाती है इसका स्वरुप शून्य जैसा होता है ।

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