अष्टांग ह्रदय के अनुसार आयुर्वेद की व्याख्या

अष्टांग ह्रदय के अनुसार आयुर्वेद की व्याख्या

‘हिताऽहितं सुखं दुःखमायुस्तस्य हिताऽहितम् । मानं च तच्च यत्रोक्तमायुर्वेदः स उच्यते । (च.सू. ११४१ )

“हित या अहित, सुख या दुःख और आयु का मापन – ये सब आयुर्वेद हैं। जहां ये सब चीजें वर्णित की जाती हैं, वह आयुर्वेद कहलाता है।”

यह उद्धरण चरक संहिता से है, जो की एक प्राचीन आयुर्वेदिक पाठ्यक्रम है। यह बातचीत करता है कि आयुर्वेद का महत्व हित और अहित की पहचान, सुख और दुःख के अंतर, और जीवन की मापन में समाहित है। जहां ये सभी मामले विवरणशीलता से वर्णित किए जाते हैं, वहीं आयुर्वेद कहलाता है।

यह उद्धरण आयुर्वेद के व्यापक दृष्टिकोण को प्रकट करता है, जो शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य के पहलुओं को ध्यान में रखता है और स्वास्थ्य की व्यक्तिगतता को महत्व देता है। यह जीवन शैली, आहार, जड़ी-बूटी उपचार, थेरेपी, और आध्यात्मिक अभ्यासों जैसे विभिन्न पहलुओं को सम्मिलित करके स्वास्थ्य को बनाए रखने और पुनर्स्थापित करने के लिए मार्गदर्शन प्रदान करता है।

यह श्लोक आयुर्वेद की मौलिक सिद्धांतों को प्रकट करता है जो स्वास्थ्य और जीवन से संबंधित हैं।

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