आयुर्वेद के अनुसार मल क्या है ? -वात, पित्त, श्लेष्मा ( कफ )आदि तीनों दोष, रस, रक्त आदि सातों धातु और मूत्र आदि शरीर के मल ही शरीर के मूल हैं या आप इसे यूं समझ सकते हैं कि शरीर दोष, धातु और मल से युक्त होता है;
ये ही इसके तत्त्व हैं। वात, पित्त, श्लेष्मा दोषों को शरीर की दूषित करने वाली तत्त्व के रूप में माना जाता है, जबकि रस, रक्त आदि धातुओं को शरीर को धारण करने वाली तत्त्व के रूप में चित्रित किया जाता है।
‘धातु’ शब्द ‘दुधाञ् धारणपोषणयोः’ धातु से उत्पन्न होता है, जिसका अर्थ है कि जो द्रव्य शरीर का धारण और पोषण करते हैं, उन्हें ‘धातु’ कहा जाता है। इसी कारण समयोग में स्थित वात आदि दोषों को भी धातु कहा जाता है। जो शरीर को दूषित करते हैं, उन्हें ‘दोष’ कहा जाता है।
दोष शब्द की व्याख्या इस प्रकार होती है— ‘दूषयन्ति दूष्यन्ति वा दोषाः’। जो दूसरों को दूषित करते हैं या स्वयं दूषित होते हैं, उन्हें दोष कहा जाता है और जो दूषित होते हैं, उन्हें दृष्य कहा जाता है। महर्षि पुनर्वसु के अनुसार वात आदि दोष ही रस, रक्त आदि धातुओं को दूषित करते हैं, जैसे कि इस प्रकार कहा गया है— ‘तत्र त्रयः शरीरदोषा वातपित्तश्लेष्माणः, ते शरीरं दूषयन्ति’। वात आदि दोष भी शास्त्रीय निर्देशों के विपरीत आहार-विहार के सेवन से ही दूषित होते हैं।
वाग्भट द्वारा वर्णित किए गए पुरुष शरीर के विभिन्न धातुओं के मलों का वर्णन है। इसमें निम्नलिखित धातुओं के मलों का वर्णन किया गया है:
- रस का मल-कफ: रस का मल-कफ वाग्भट द्वारा उल्लेखित किया गया है। रस शरीर के उपचय स्रोत है और कफ इसे निकालने में मदद करता है।
- रक्त का मल-पित्त: रक्त का मल पित्त के रूप में वर्णित किया गया है। यह अवशेष है जो रक्त के बाद पित्त के माध्यम से शरीर से निकाला जाता है।
- कान, नाक आदि छिद्रों में मांस का मल: यहां उल्लेखित किया गया है कि कान, नाक और अन्य छिद्रों में जो मल होता है, वह मांस का मल है। इससे शरीर में अवशेष मांस निकाला जाता है।
- मेदस् का मल-स्वेद (पसीना): वाग्भट ने कहा है कि मेदस्वी पुरुष के पसीने से मेदस् की दुर्गन्ध आती है, इसलिए मेदस् का मल स्वेद (पसीना) होता है।
- अस्थियों के मल-नख और रोम: अस्थिसार पुरुष के शरीर में रोम और नखों की अवशेष या मल होती है। अस्थि सार पुरुष के शरीर में अस्थि कार्य करते हैं, जिससे रोम-केश उत्पन्न होते हैं।
- मज्जा का मल: मज्जासार पुरुष के शरीर में मज्जा का मल होता है, जो त्वचागत स्नेह (ध्यान देने योग्यता) और नेत्र और मल के स्नेह में व्यक्त होता है।
- शुक्र का मल-ओजस्: शुक्र का मल वाग्भट ने ओजस् के रूप में वर्णित किया है। यह पुरुषों की शुक्राणुओं का उपचय स्रोत है।
यह विवरण आयुर्वेद में मलों के विभाजन के संबंध में वाग्भट द्वारा उल्लेखित किया गया है।