आयुर्वेद के अनुसार विरुद्ध आहार

आयुर्वेद के अनुसार विरुद्ध आहार

गर्म जल का सेवन-

आयुर्वेद के अनुसार विरुद्ध आहार – आयुर्वेद में गर्म जल का सेवन का महत्त्व बताया गया है । हमारे शरीर में होने वाला किसी भी प्रकार का दर्द गर्म जल पीने से दर्द में आराम मिलता है ।

सभी प्रकार के कफ रोग जैसे -खासी, जुकाम, दमा रोग इत्यादि में भी गर्म जल का सेवन फायदेमंद होता है ।

मधुमेह रोगियों को भी गर्म जल का सेवन करना चाहिए ।

क्योंकि मधुमेह में भी गर्म जल का सेवन फायदेमंद होता है । आयुर्वेद चिकित्सकों द्वारा पीलिया रोग में गर्म जल का सेवन फायदेमंद बताया गया है ।

कब्ज की शिकायत के लिए भी गर्म जल का सेवन करने से कब्ज दूर होती है । गर्म करके ठंडा किया हुआ जल कई रोगों में लाभ पहुंचाता है ।

सुबह में उबला हुआ जल शाम तक उपयोग करना चाहिए । और रात को उबला हुआ जल सुबह तक प्रयोग करना चाहिए ।

ठंडे जल का सेवन-(आयुर्वेद के अनुसार विरुद्ध आहार)

प्रकृति ने हमें जल निशुल्क दे रखा है । जल में कई दिव्य गुण समाहित है । आयुर्वेद के अनुसार जल के कई उपयोग है ।जल बेहोशी में छिड़कने पर बेहोशी दूर होती है । गर्मियों में जल की महत्ता हमें समज आती है ।शरीर को निर्जलीकरण से बचाता है।

प्यास लगने पर फ्रिज के पानी की जगह पर मटके का पानी गर्मियों में अच्छा रहता है । शरीर की घबराहट को दूर करता है ।

अधिक नशा होने पर ठंडे जल का प्रयोग सिर पर करने या नहलाने से नशा उतर जाता है ।

इस बात का ध्यान रखें भोजन के तुरंत बाद में अथवा भोजन के तुरंत पहले ठंडे जल का सेवन नहीं करना चाहिए । घी पिलाने के बाद अथवा तेल को पिलाने के बाद ठंडा जल नहीं पिलाना चाहिए ।

घी पिलाने के बाद अथवा तेल को पिलाने के तुरंत ठंडा जल पिलाना रोगी के लिए नुकसानदायक होता है ।

बुखार में ठंडा जल पिलाना अथवा नहलाना कभी भी रोगी की मृत्यु का कारण बन सकता है ।

कम जल का सेवन कब करें?

पेट से संबंधित रोगों से पीड़ित रोगियों को विवेक पूर्वक कम जल का प्रयोग करना चाहिए ।

हैजा ,अतिसार जैसी शिकायत में उबला हुआ पानी परंतु ठंडा करने के पश्चात की प्रयोग करना चाहिए । अधिक जल पीने से किसी भी रोग के कारणों उपद्रव स्वरूप होने वाली उल्टी की शिकायत हो जाती है ।

जिसकी जठराग्नि किसी कारणवश या रोग के कारण कमजोर है । उन्हें कम जल का प्रयोग करना चाहिए । बार-बार मुंह में पानी आने की समस्या में भी कम जल का प्रयोग करना चाहिए ।

अधिक जल के सेवन से शरीर में आम बनता है । और यही आम आगे जाकर कई बीमारियों की जड़ बनता है ।

और पढ़े …….सारिवादि वटी का उपयोग

जल का सेवन कब नहीं करना चाहिए-

गर्मी में से तुरंत आकर अथवा कठोर परिश्रम या व्यायाम करने के बाद तुरंत जल का प्रयोग नहीं करना चाहिए । शौच जाने के तुरंत बाद में जल का सेवन नहीं करना चाहिए ।

सुबह उठकर जल किसको पीना चाहिए किसको नहीं पीना चाहिए ?

सुबह उठकर शौच जाने से पहले उषः पान किया जाता है । परंतु कफ की प्रधानता होने पर पेट की अग्नि दुर्बल होने पर उषः पान नहीं करना चाहिए ।

जिन रोगियों को खांसी दमा प्रतिश्याय (जुखाम ) की शिकायत है । उन्हें उषः पान नहीं करना चाहिए।

दूध कब नहीं पीना चाहिए? (आयुर्वेद के अनुसार विरुद्ध आहार)

वैसे तो दूध का सेवन शरीर के लिए फायदेमंद होता है । क्योंकि इसमें कई प्रकार के पोषक तत्व हमारे शरीर को फायदा पहुंचाते हैं ।

परंतु आयुर्वेद के मतानुसार दूध का सेवन बुखार के समय जब पाचन तंत्र कमजोर हो तो आम की समस्या( आम बनना ) पैदा करता है ।

कमजोर पाचन तंत्र में दूध का सेवन नहीं करना चाहिए ।

कुष्ठ रोग में दूध का सेवन नहीं करना चाहिए ।

जिन रोगियों को पेट के कीड़ों की समस्याएं उन्हें भी दूध का सेवन नुकसान करता है ।

उपदंश सुजाक रोग में और किसी भी प्रकार के बहते हुए व्रण की समस्या होने पर दूध का सेवन नहीं करना चाहिए ।

दूध को कटहल के साथ और कुलथी के साथ सेवन नहीं करना चाहिए ।

दूध और मछली का सेवन एक साथ नहीं करना चाहिए ।

दूध के साथ खट्टे खाद्य पदार्थ नहीं सेवन करना चाहिए ।

दूध के साथ मुली का सेवन अहितकर है ।

दूध के साथ शराब ( सूरा )खिचड़ी का सेवन साथ में नहीं करे ।

और पढ़े …….माजून चोबचीनी के फायदे-

दही का सेवन कब नहीं करें?

वैसे तो दही का सेवन शरीर के लिए फायदेमंद होता है । दही का सेवन सभी प्रकार के वात विकारो में निषेध है । एसिडिटी की समस्या वाले रोगियों को इसका प्रयोग नहीं करना चाहिए ।

क्योंकि इसकी प्रकृति गरम होती है ।

सभी प्रकार के वात रोग, गठिया ,संधिवात, संधि शूल, बवासीर में प्रयोग करना नुकसानदायक होता है ।

जिन रोगियों को खांसी जुकाम बुखार होता है उन्हें भी दही का प्रयोग नहीं करना चाहिए । सभी प्रकार के मूत्र रोगों जैसे रुक-रुक कर मूत्र आना ,मूत्र का रुक जाना ।

सभी प्रकार की फोड़े फुंसी से संबंधित शिकायत में भी दही का प्रयोग नहीं करना चाहिए ।

सर्दी की ऋतु, वर्षा ऋतु, बसंत ऋतु में दही का सेवन नुकसानदायक होता है ।

रात में कभी भी दही का सेवन नहीं करना चाहिए ।

दही को गर्म करके सेवन करना हानिकारक होता है ।

दही में नमक मिलाकर खाने की बजाय शक्कर मिलाकर खाना चाहिए

दही में नमक पानी अथवा अनुकूल खाद्य पदार्थ को डालकर समय के अनुसार सेवन करना चाहिए। रक्त विकार पित्त का प्रकोप, मूत्र रुक रुक कर आने की समस्या ।

साथ में फोड़ा फुंसी की शिकायत बुखार में नहीं करना चाहिए ।

और पढ़े …….ताम्र पर्पटी tamra parpati

छाछ का सेवन कब नहीं करें?

छाछ की प्रकृति ठंडी होने के कारण । गर्मियों में इसका सेवन भोजन के साथ दोपहर में करना फायदेमंद रहता है । छाछ का सेवन वात रोगियों को नहीं करना चाहिये ।

ऋतू संधि (दो ऋतुए जब मिलती है) तब छाछ का प्रयोग नहीं करना चाहिए ।

घी का प्रयोग कब नहीं करना चाहिए?

गाय का घी सबसे उत्तम माना गया है । परंतु कुछ मामलों में घी सेवन नहीं करना चाहिए

जैसे-छोटे बच्चों को घी का सेवन कम मात्रा में एवं शिशु को नहीं करवाना चाहिए ।

वृद्धावस्था में घी का प्रयोग कम मात्रा में अथवा नहीं करना चाहिए ।

पेट में आम बनने की समस्या होने पर घी का प्रयोग नहीं करें । बुखार के रोगियों को घी का प्रयोग नहीं करना चाहिए ।

मधुमेह के रोगियों को तथा दस्त के समय घी का प्रयोग बंद करना चाहिए ।

खांसी जुकाम, बुखार के समय घी का उपयोग नहीं करना चाहिए ।

और पढ़े …….कीटनाशक दवाओं के नुकसान

शहद का प्रयोग कब नहीं करें?

वैसे तो शहद का प्रयोग गुणकारी होता है । परंतु कुछ मामलों में शहद का प्रयोग करना नुकसानदायक होता है । घी और शहद की बराबर मात्रा आयुर्वेद में निषेध है ।

हमेशा घी और शहद असमान समान में देना चाहिए ।

गर्म किया हुआ शहद जहर के बराबर है।

आयुर्वेद के अनुसार शहद मिट्टी के बर्तन में रखना चाहिए।

भंवर के शहद से मधुमक्खियों का शहद उत्तम और श्रेष्ठ होता है।

शुद्ध शहद मधुमेह रोगियों के लिए भी उपयोगी होता है ।

क्योंकि इसका अवशोषण अमाशय में ही हो जाता है ।

जानकारी अच्छी लगी हो तो अपने मित्र एवं परिवार जनों को शेयर करें।

और पढ़े …….रस पर्पटी के फायदे

Translate »
Scroll to Top