आयुर्वेद में दवाई लेने के अलग अलग समय और तरीके आखिर क्यों ? आपने आयुर्वेद के वैद्यो द्वारा अलग अलग समय पर औषधि सेवन के बारे मे कभी गौर किया है ? आखिर ऐसा क्या कारण है की अलग अलग समय पर औषधी सेवन के लिए कहा जाता है ?
आयुर्वेद में औषध सेवन को बड़े ध्यान से और योग्य समय पर किया जाता है, जिसमें अलग-अलग समय के अनुसार विभिन्न फायदे होते हैं। निम्नलिखित हैं विभिन्न कालों में औषध सेवन के फायदे:
Table of Contents
1. अभक्तकाल (प्रातःकाल)
- यह समय निरन्न और अन्न-रहित सेवन के लिए उपयुक्त है।
- इस समय औषध अधिक गुणकारी होती है और रोग को त्वरित और निश्चित रूप से दूर कर सकती है।
- यह समय बच्चों, वृद्धों, स्त्रियों, और सुकुमार प्रकृतिवालों के लिए सोच विचार कर औषध दि जाती है ।
2. प्राग्भक्त (अन्न के साथ)
- औषध खिलाने के तुरंत बाद अन्न देने से इसका प्राग्भक्त कहलाता है।
- अन्न के पहले खाई गई औषध शीघ्र हजम हो जाती है और बलहानि नहीं करती है।
- यह समय उन्होंने लेखन, पित्त और कफ की वृद्धि में विरेचन और वमन करने के लिए उपयुक्त होता है।
3. अधोभक्त (अन्न के बाद)
- अन्न खाने के तुरंत बाद ली गई औषध को अधोभक्त कहते हैं।
- इस समय औषध शरीर को स्थूल बनाने में मदद करती है और ऊर्ध्वमार्गी रोगों को दूर कर सकती है।
4. मध्यभक्त (भोजन के बीच में)
- जो औषध भोजन के बीच में ली जाती है, उसे मध्यभक्त कहते हैं।
- भोजन के मध्य में ली गई औषध कोष्ठ में होने वाले रोगों को दूर करने में मदद करती है।
5. अन्तराभक्त (सबेरे और शाम में)
- यदि औषध सबेरे और शाम के भोजन के बीच में ली जाए, तो इसे अन्तराभक्त कहते हैं।
- इस समय औषध हृदय और मन को बल देती है और दीपन और पथ्य होती है।
- अन्तराभूक्त औषध दीप्ताग्नि और व्यानवायु के विकारों में उपयुक्त होती है।
6. सभूक्त (अन्न में मिलाकर)
- जब औषध अन्न में मिलाकर दी जाती है, तो इसे सभक्त कहते हैं।
- यह समय दुर्बल, स्त्री, बालक, सुकुमार, वृद्ध, और औषध लेना पसंद नहीं करने वालों के लिए उपयुक्त होता है।
- सभूक्त औषध अरुचि और सर्वाङगत रोग में देने चाहिए।
7. सभक्त (लघु और अल्प अन्न के साथ)
- यदि औषध पाचन, अवलेह, चूर्ण आदि औषध लघु और अल्प अन्न के साथ दी जाए, तो इसे सभक्त कहते हैं।
- सभक्त औषध हिक्का, कम्प, आक्षेप, और दोष अधोमार्ग और ऊर्ध्वमार्ग दोनों में उपयुक्त होती है।
8. मुहुर्मुहु (अन्न के साथ या खाली पेट)
- यदि औषध अन्न के साथ या खाली पेट में बार-बार लिया जाए, तो इसे मुहुर्मुहु कहते हैं।
- मुहुर्मुहु औषध खासतर सांस बढ़ने, खाँसी, हिचकी, वमन, तृषा, और विष-विकारों में उपयुक्त होती है।
9. संग्राम (प्रत्येक ग्रास में या कुछ ग्रासों में मिलाकर)
- औषध प्रत्येक ग्रास में या कुछ ग्रासों में मिलाकर दी जाए, तो इसे संग्राम कहते हैं।
- संग्राम औषध मन्दाग्नि को उठाराग्नि प्रदीप्त करने और विभिन्न विकारों में उपयुक्त होती है।
10. ग्रासान्तर (दो ग्रासों के बीच में)
- यदि औषध दो ग्रासों के बीच में दी जाए, तो इसे ग्रासान्तर कहते हैं।
- इस समय धूम और श्वास-कास आदि में प्रसिद्ध गुणवाले अवलेह उपयुक्त होते हैं।
इस प्रकार, आयुर्वेद में औषध सेवन के समय का महत्व है, और व्यक्ति की प्रकृति और रोग के प्रकार के आधार पर योग्य समय का चयन किया जाता है। यह आपके स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में मदद कर सकता है।
अस्वीकरण: यह जानकारी केवल आपकी सामान्य जानकारी के उद्देश्य से है और किसी भी चिकित्सा सलाह की जगह नहीं लेनी चाहिए। आपके स्वास्थ्य पर सही उपचार के लिए एक प्रमाणित आयुर्वेद चिकित्सक से परामर्श करें।
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