आरोग्यवर्धिनी वटी के उपयोग- आइए जानते हैं ।आरोग्यवर्धिनी वटी के घटक द्रव्य क्या है? किन रोगों में इसका प्रयोग किया जाता है? तथा इसकी सेवन मात्रा के साथ के बारे में जानते हैं । आप इस लेख पर पहुंचे हैं । इसका मतलब आप आयुर्वेद में विश्वास रखते हैं । आरोग्यवर्धिनी वटी एक ऐसी उत्तम औषधि है जो लीवर और स्प्लीन दोनों पर कार्य करती है । अलग-अलग रोगों में अलग-अलग इसका प्रयोग किया जाता है । जैसे पीलिया रोग में आरोग्यवर्धिनी यकृत और प्लीहा दोनों की कार्य क्षमता को बढ़ाती है । जब लिवर फैटी हो जाता है और प्लीहा बढ़ जाती है तो शरीर में कई तरह के रोग उत्पन्न होते हैं । अगर उन लोगों की तरफ नजर डालें तो हो सकता है पीलिया हो सकता है । त्वचा के किसी भी प्रकार के रोग हो सकते हैं । शरीर का मोटापा बढ़ सकता है ।आंतो में कब्जी हो सकती है । और अर्श भगंदर जैसे रोग भी हो सकते हैं ।
शरीर के लगभग ७० प्रतिशत रोग पाचन संस्थान की गड़बड़ी तथा गलत खानपान और गलत रहन-सहन के कारण होते हैं । आरोग्यवर्धिनी वटी शरीर को आरोग्य बनाए रखने के लिए गुणकारी औषधि है । आइए जानते हैं आरोग्यवर्धिनी वटी के घटक द्रव्य
Table of Contents
आरोग्यवर्धिनी वटी के घटक द्रव्य
भारत भैषज्य रत्नाकर के अनुसार निम्न घटक द्रव्य का उपयोग किया जाता है ।
- शुद्ध पारद एक भाग
- शुद्ध गंधक एक भाग
- लोहभस्म एक भाग
- अभ्रक भस्म एक भाग
- ताम्र भस्म 1 भाग
- त्रिफला 2 भाग
- शुद्ध शिलाजीत 3 भाग
- शुद्ध गुग्गल चार भाग
- चित्रक मूल 4 भाग
- कुटका 18 भाग
आरोग्यवर्धिनी वटी के उपयोग
- सभी प्रकार के त्वक विकारों (स्किन डिजीज) में इसका प्रयोग आयुर्वेद चिकित्सकों द्वारा करवाया जाता है ।
- यकृत से जुड़े रोगों में
- लिवर फैटी होने पर इसका प्रयोग करवाया जाता है ।
- पीलिया या प्लीहा से संबंधित रोग में भी इसका प्रयोग कराया जाता है ।
- शरीर में बड़ी हुई फैट मोटापा को काम करने के लिए इसका प्रयोग करवाया जाता है ।
- विचर्चिका , शरीर की खुजली में प्रयोग करवाया जाता है ।
- लंबे समय से चल रही कब्ज की शिकायत में भी इसका प्रयोग कराया जाता है ।
- सफेद दाग (श्वित्र ) रोग में भी इस औषधि का प्रयोग करवाया जाता है ।
- पैरों की एड़ियां फटने पर सेवन करने से लाभ होता है ।
- शरीर की बड़े हुए बैड कोलेस्ट्रॉल को कम करती है ।
- हृदय के लिए भी यह लाभदायक औषधि है ।
- अर्श तथा भगंदर रोग में ।
सेवन मात्रा-
वयस्क के लिए – 2 से 4 टेबलेट दिन में दो बार खाना खाने के बाद गुनगुने पानी से चिकित्सक के निर्देशानुसार सेवन करें ।
अनुपान-
गुनगुने पानी, महामंजिष्ठादि काढ़ा, खदिरारिष्ट, कुमारी आसव के साथ सेवन करवाया जाता है । आयु ,बल और रोग के अनुसार अनुपान अलग-अलग हो सकते हैं।
सावधानी-
फ्रिज में ना रखें ।
बच्चों की पहुंच से दूर रखें ।
निर्देशित मात्रा से अधिक मात्रा में सेवन ना करें ।
बेसन एवं मैदा से बने हुए खाद्य पदार्थों का सेवन ना करें ।
त्वचा रोगों में दही अचार आमचूर का सेवन ना करें ।
अधिक मात्रा में घी का प्रयोग ना करें ।
कहां से खरीदें ?
हर आयुर्वेदिक मेडिकल स्टोर पर आसानी से उपलब्ध है । कई आयुर्वेदिक फार्मेसी आरोग्यवर्धिनी नाम से औषधी विक्रय करती है। चिकित्सक के परामर्श रोगी व्यवस्था पत्र द्वारा ऑनलाइन भी खरीद सकते हैं ।
चेतावनी- इस लेख में उपलब्ध समस्त जानकारी चिकित्सा परामर्श नहीं है । किसी भी आयुर्वेदिक औषधि के सेवन से पूर्व रजिस्टर्ड आयुर्वेद चिकित्सक की सलाह आवश्यक है ।
( और पढ़ें.गंधक रसायन वटी के फायदे….)
( और पढ़ें…विडंगारिष्ट के फायदे…)
( और पढ़ें…कोरोना आयुर्वेदिक दवा…)