काय चिकित्सा क्या है

काय चिकित्सा क्या है

काय चिकित्सा क्या है-आयुर्वेद में काय से भावार्थ यह है की हमारा शरीर ,देह जिसमे पुरे शरीर को प्रभावित करने वाले रोग की चिकित्सा ही काय चिकित्सा कही गई है ।

काय को आयुर्वेद में कई पर्याय वाची से जाना जाता है । काय चिकित्सा मई 80 प्रतिशत रोगों को समाहित कर लिया जाता है क्योंकि आधिकतर रोग उपापचय (metabolism) के बिगड़ने के कारण ही होते है । शल्य अर्थात सर्जरी , मेद विकार जिसमे ग्रंथियां (गांठे ),आस्थिगत विकार (हड्डियों से जुड़े रोग ) आदि भी के चिकित्सा के ही अंग है ।

काय चिकित्सा क्या है काय चिकित्सा के विभिन्न भाग

रोगों ,चिकित्सा में विशिष्टताओं के कारण अन्य भाग काय चिकित्सा के

  • शल्य
  • शालाक्य
  • प्रसूति विभाग
  • अगद तंत्र
  • भुत विद्या
  • रसायन चिकित्सा
  • वाजीकरण चिकित्सा

आधुनिक चिकित्सा विज्ञानं में (Anabolism) उर्जा निर्माण और विकास और (Catabolism ) का मतलब नाश की और प्रवर्त होना है । इन दोनों के सामजस्य को ही उपापचय (metabolism) कहा गया है ।

काय के प्रकार –

अब अगर के चिकित्सा की बात हो रही है तो काया यानि हमारा शारीर देह के प्रकार भी जान लेने चाहिए । अब आप सोच रहे है की भला काया तो एक जैसी है उसमे क्या भेद हो सकते है । हर मनुष्य के शरीर की बनावट लगभग एक जैसी होती है । तो भेद कैसा ? आइये जानते है –

शरीर, देह , काया एक ही है – लेकिन इसमें मन भी शरीर से जुडा हुआ है । और मन जब अपनी मन की वृत्तियो के कारण , विचार और इन्द्रियों के कारण शरीर में विभेद पैदा करता है –

मन शरीर का प्रेरक स्त्रोत है । मन जैसा विचार या वृत्ति करेगा शरीर हमारी काया देह उस प्रकार का हो जायेगा ।

आप कहेंगे में अब आध्यात्मिक ज्ञान आपको देने लगा हु … .. लेकिन ऐसा मई नहीं हमारे हजारो वर्षो पूर्व लिखे गए शास्त्रो में ये बात है ।

सात्विक काय-

शांत , निर्मल , प्रकाशक , जितेन्द्रिय है । सात्विक मनुष्य सरल विवेकशील ,सहिष्णुता दया तप संतोष त्याग पाप करने में संकोच करने वाला होता है ।

राजस काय –

आसक्ति ,प्रवर्ती जो – महत्वाकांक्षी ,इच्छा , प्रयत्न ,अभिमानी , असंतोष , भेद बुद्धि , भोग विलासी धन प्राप्ति के लिए देवी देवताओ की उपासना करने वाला मद्य सेवन करने वाला , हठी , इच्छित फल के लिए उद्योग करने वाला होता है ।

तामस काय –

आलसीपन , बुद्धि की मूढ़ता – जो क्रोधी, याचना करने वाला , पाखंडी , कलह पैदा करने वाला , दुखी , निराश , आलसी , बिना सोचे समजे कार्य करने वाला होता है ।

हमारा शरीर तीन गुणों वाला (त्रिगुण) है । शरीर कभी भी शुद्ध रूप से एक गुण का नहीं हो सकता है लेकिन किसी गुण की अधिकता उसको सात्विक राजसिक या तमो गुण बनती है ।

आयुर्वेद में सात्विक काय के ७ भेद , राजसिक के के ६ भेद और तामस के ३ भेद बताये है । कुल १३ प्रकार की काय बताई गई है ।

सात्विक –

  • ब्रह्म , महेंद्र , वारुण , कौबेर , गन्धर्व ,याम्य , ऋषि

राजस –

  • सर्प , शकुन , राक्षस , पिशाच

तामस –

  • पाशव , मात्स्य , वनस्पती

काय की चिकित्सा

काय चिकित्सा क्या है-अब आती है चिकित्सा की बारी – जैसे आधुनीक विज्ञानं के अपने सिद्धांत है वैसे ही आयुर्वेद में भी अपने सिद्धांत है जिन पर पूरा आयुर्वेद का ज्ञान टिका हुआ है । जिसे समजने के लिए हमें थोड वक्त लगता है लेकी जब इसे अच्छे से समज लेते है तब हमें ज्ञात होता है की हमर पूर्वज हमरे लिए कितनी बड़ी विरासत छोड़ कर गए है जिसका केवल हमें संरक्षण और प्रचार प्रसार करना है ।

चिकित्सा का अर्थ है – रोगों से दूर रहने का उपाय या प्रयास

चिकित्सा के लिए – मुख्य रूप से त्रिदोष (वात , पित्त , कफ) की साम्यावस्था आवश्यक है । अब आप कहेंगे वात , पित्त , कफ क्या है ? जिसे आगे की पोस्ट में जानेंगे – हमारे शरीर का आधार त्रिदोष , धातु उपधातु , मल द्वारा धारण किया हुआ है । अगर इनकी विषमता होती है तो शरीर में रोग उत्पन्न होते है । इनकी साम्यावस्था बनाये रखना ही चिकित्सा का मुख्य भाग है । जिसके बारे मई आगे विस्तार से जानेंगे —

जानिए त्रिदोष क्या है ?

जानिए धातु क्या है ?

जानिए उपधातु क्या है ?

जानिए मल क्या है ?

श्क्र्वल्लभ रस के फायदे

Translate »
Scroll to Top