कौमारभृत्य क्या है

toddler in yellow top and hat holding fruit

कौमारभृत्य क्या है ?-कौमारभृत्य एक आयुर्वेदिक शाखा है जो बाल और किशोर वय के बच्चों की स्वास्थ्य और उनके रोगों के विशेष उपचार पर केंद्रित है। इस शाखा में बच्चों के देह-प्रकृति, विकार, रोगों के लक्षण, उपचार, पोषण, जीवनशैली आदि पर विस्तृत चर्चा की जाती है। यह शाखा बाल रोग और पेदियाट्रिक्स (प्रसूति-शिशु विज्ञान) की संबंधित विषयों को समावेश करती है।

कौमारभृत्य विज्ञान में बच्चों के प्राकृतिक विकास, पोषण, वात्सल्य, आहार, स्वच्छता, सम्प्रेषण रोग, प्रारंभिक ज्वर, प्रारंभिक शिशुरोग, प्रमेह, बालरोग, दंतरोग, पशुविशेष आदि के विषय में ज्ञान होता है। यह शाखा चिकित्सा, पोषण, रोगनिदान, औषधि चिकित्सा, जीवनशैली परामर्श आदि के माध्यम से बच्चों की स्वस्थ और समृद्ध विकास की देखभाल करती है।

कौमारभृत्य की मुख्य ग्रंथ के रूप में “कौमारभृत्यम्” (Kumara-Bhrityam) नामक ग्रंथ है, जिसमें बच्चों की स्वास्थ्य और उनके रोगों के विषय में विस्तृत ज्ञान दिया गया है। इसके अलावा चरक संहिता, सुश्रुत संहिता और अष्टांग हृदय संहिता में भी कौमारभृत्य के सिद्धांतों और उपचारों का वर्णन मिलता है।

बालतन्त्र या कौमारभृत्य आयुर्वेद की एक विशेषता है जो बच्चों के शरीर के विषय में विस्तृत विवरण प्रदान करती है। बालतन्त्र में बच्चों के शरीर में पोषक तत्वों और धातुओं की कमी के कारण उत्पन्न होने वाली समस्याओं का वर्णन किया गया है। इसमें बच्चों के लिए विभिन्न प्रकार की औषधियों का उपयोग किया जाता है, क्योंकि उनकी आवश्यकताएं विशेष होती हैं। इसके अलावा, दूध को बालकों के लिए माता या धात्री (उपमाता) के रूप में देने की प्राचीन प्रथा है, जिसका वर्णन साहित्यिक ग्रंथों में भी मिलता है।

आपकी शंका यह है कि आचार्यों ने वृद्धावस्था की चिकित्सा क्यों नहीं की। उत्तर में कहा जाता है कि वृद्धावस्था युवावस्था के बाद आती है, इसलिए उसका अधिकांश उपचार कायचिकित्सा में ही सम्मिलित हो जाता है, और जो कुछ शेष रह जाता है, उसके निराकरण के लिए सप्तम रसायन तंत्र का उपयोग किया जाता है। ‘काश्यप संहिता’ इस विषय पर प्राचीन ग्रंथ है, लेकिन वर्तमान में यह ग्रंथ अक्षम हो जाता है। इसके अलावा, चरक संहिता के शारीर स्थान में अध्याय ८ और चरक चिकित्सा स्थान में अध्याय ३०, सुश्रुत संहिता के शारीर स्थान में अध्याय १० और सुश्रुत संहिता के उत्तरार्ध में अध्याय २७ से ३७ तक इस विषय को देखा जा सकता है।

इन ग्रंथों में बालतन्त्र के सिद्धांत, विवरण और उपचारों का विस्तृत वर्णन मिलता है और यह बालकों की स्वास्थ्य और रोगों के उपचार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

स्त्रोत – अष्टांग ह्रदय

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