उष्ण जल कर्म प्रयोग एवं सावधानियां(गर्म पानी पीने के फायदे)
डॉ मनीष पमनानी
असिस्टेंट प्रोफेसर द्रव्य गुण विज्ञान इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ आयुर्वेद रिसर्च एंड हॉस्पिटल राजकोट
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गर्म पानी पीने के फायदे-वर्तमान परिपेक्ष में देखा जाए तो कुछ ही लोग ऐसे हैं जो उसने जल का प्रयोग नियमित रूप से करते हैं। अन्यथा शेष लोग पान व अन्य प्रयोग में मुख्यतः शीतल जल का ही प्रयोग करते हैं। उष्ण जल का कम प्रयोग तथा शीतल जल एवं सामान्य जल के अधिक प्रयोग का यह भी कारण है कि
यह जिस अवस्था में है उसी अवस्था में इसे प्रयोग कर लिया जाता है। इसे गर्म करने की आवश्यकता नहीं होती। वर्तमान में मनुष्य कम समय तथा जो सुविधा पूर्ण अधिक हो । उसे मुख्यतः प्रयोग में लेता है। उसने जल का प्रयोग ना करना तथा पान हेतु शीतल या सामान्य जल का अधिक प्रयोग इसी क्रम का उदाहरण है।
आयुर्वेद में उष्ण जल का एक पृथक और महत्वपूर्ण स्थान है। विभिन्न संहिताओं में उष्ण जल के गुण,कर्म तथा प्रयोग का उल्लेख देखने को मिलता है।
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रोगानुसार गर्म पानी पीने के फायदे
- वात एवं कफ जन्य तथा वात पित्त जन्य में प्यास लगने पर गर्म जल का प्रयोग करना चाहिए।
- हिक्का (हिचकी),श्वास (दमा) ज्वर, पीनस, घृतपान(घी का सेवन) करने के बाद,पार्श्व के रोग , गले के रोग में अथवा कफ वात जन्य संबंधित रोग हो गया हो । तथा वमन ,विरेचन द्वारा शीघ्र ही शरीर का शोधन किया गया हो तो इन अवस्थाओं में उसने जल का पान करना हितकर होता है।
- उष्ण जल हिक्का, आध्यमान , वायु,कफ ,प्यास ,कास,श्वास, पीनस(पुराना जुखाम) ,पार्श्व शूल, आमदोष,मेदो रोग (मोटापा),शोधन करने के पश्चात, नवज्वर में उपयोगी है। अग्निसंदीपक(भूख बढ़ाने वाला) पाचक, कंठ के लिए हितकारी, लघु और वस्तिशोधक है।
- गरम किये पत्थर , चांदी,मिट्टी, स्वर्ण, लाख आदि से अथवा सूर्य की किरणों से गरम किया अथवा शीतल करके पिया जल त्रिदोषनाशक एवं तृष्णानाशक है।
- गरम करके शीतल किया जल लघु,रुक्षतारहित,क्लमनाशक ,पित्त कफ के मिलित होने पर। और सन्निपातज रोगों में उत्तम है। अर्थात वातजन्य रोगों में (जैसे ऑर्थराइटिस), कफजन्य रोगों में (सर्दी,जुखाम,दमा) रोगों के लिए उत्तम नही है।
- रात्रि को गर्म जल करके रात बीत जाने पर सुबह उस जल को पिने पर वह जल गुणों से रहित, सम्पूर्ण दोषो को करने वाला और विपाक में अम्ल होता है।
- उष्ण जल शूल,कफ ,वायु ,प्यास ,हिक्का ,अरुचि,मलबन्ध तथा गुल्म का नाशक है। यह पाचन शक्ति को बढ़ाता है। व्रण और धातुओं को मृदु करता है।
उष्ण जल का प्रयोग
हेमंत और वसंत ऋतुओं में उष्ण जल का पान करना चाहिए। ग्रीष्म ऋतु में पर्याप्त शीतल जल अथवा उष्ण जल शीतल करके पान हेतु प्रयोग करना चाहिए।
उष्ण जल से शरीर के निचले भाग का परिषेक या स्नान करना बलदायक है। उसी उष्ण जल से सिर का परिषेक या स्नान करने से बालों और आंखों का बल नष्ट होता है।
उष्ण जल के गुण- कर्म
उष्ण जल विपाक में मधुर, स्पर्श में उष्ण होने पर भी वीर्य सहित होता है। तथा थोड़ी मात्रा में यदि इसका पान किया जाए तो यह पाचन में लागू होता है।
कफ तथा वात दोष के कारण उदर में रुका हुआ भोजन । उष्ण जल से द्रवित होकर आमाशय के बंधन से छूटकर शिघ्र ही पाचन को प्राप्त होता है।
प्रयोग संबंधी सावधानीयाँ
- आम अर्थात कफ के द्वारा अग्नि के नष्ट होने से जब भोजन नही पचता है। तथा वात दोष के कारण जो अजीर्ण होता है। इन दोनों अवस्थाओं में मनुष्य को जो प्यास लगती है। उसमें उष्ण जल का इतना ही पान करना चाहियें जिससे आमशयगत भोजन गिला मात्र हो अर्थात उसका क्लेदन हो जाये यदि अन्न का अत्यधिक क्लेदन होता है तो । आनन की पाचक अग्नि का नाश हो जाता है।
- गर्म जल को थोड़ी मात्रा में ही पीना चाहिए।अधिक मात्रा में पिया हुआ गर्म जल शीत वीर्य होने से अन्न की पाचक अग्नि का नाश करता है।
- देश ऋतु एवं गुरु लघु का विचार करके चतुर्थांश तीन भाग अथवा क्षीण करके गर्म किया , झाग रहित निर्मल जल हितकारी है।
- गर्म पानी में जब तक झाग रहता है। वह कच्चा रहता है। झाग की शांति होने पर तथा वेगरहित होने पर पानी हितकारी है।
- दूध,दही तथा मधु युक्त द्रव्यों के सेवन के बाद तथा पित्तप्रकोप, रक्तस्त्राव, गर्भच्युति, गर्भ दाह में उष्ण जल का अनुपान नही करना चाहिए।
- इस प्रकार गर्मकीय हुआ दिन का गर्म जल दिन में ही पीना चाहिए। औऱ रात्रि में गर्म जल दिन में नही पीना चाहिए। कभी भी दिन का जल रात्रि में या रात्रि का गर्म जल दिन में नही पीना चाहिए।और एक बार गर्म किया हुआ जल शीतल हो जाये तो उसे पुनः गरम कर नही पीना चाहिए।
निर्माण एवं प्रयोग विधि
- देश ,ऋतु की अपेक्षा जहाँ का पानी थोड़ा भारी हो, वहां पर पानी को गर्म करके 1/4 शेष रखना ठीक है। इस प्रकार गर्म करके 1/4 शेष रखा हुआ जल पित्तनाशक है।
- जहां का पानी अधिक भारी हो। वहाँ पर पानी को गर्म करके 3/4शेष रखना ठीक है। इसी प्रकार गर्म करके 1/2 शेष रखा हुआ जल वातनाशक है।
- कश्यप संहिता में जल को पकाकर 1/4 शेष रख कर उष्ण जल निर्माण करने को कहा है।
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