आइए तालकेश्वर रस के बारे में विस्तृत जानकारी पर एक नज़र डालते हैं, जो आयुर्वेद में कुष्ठ रोग (लेप्रोसी) के इलाज के लिए एक महत्वपूर्ण औषधि है।
Table of Contents
तालकेश्वर रस के घटक द्रव्य (Ingredients)
- शुद्ध हरताल (Purified Orpiment) – एक तोला
- सोना मक्खी भस्म (Gold Ash) – एक तोला
- शुद्ध मैंनेशिला (Purified Realgar) – एक तोला
- शुद्ध पारद (Purified Mercury) – एक तोला
- सेंधा नमक (Rock Salt) – एक तोला
- शुद्ध सुहागा (Purified Borax) – एक तोला
- शुद्ध गंधक (Purified Sulphur) – दो तोला
- शंख भस्म (Conch Shell Ash) – दो तोला
- जंबीरी नींबू का रस (Lemon Juice)
- शुद्ध बच्छनाग (Aconitum ferox)
बनाने की विधि (Preparation Method)
- पारद और गंधक को उचित मात्रा में लेकर कजली तैयार करें।
- तैयार कजली में सभी भस्मों को मिला लें।
- अन्य औषधियों का चूर्ण बनाकर मिश्रण में मिलाएं।
- जंबूरी नींबू के रस में अच्छी तरह मिलाकर घोट लें।
- शुद्ध बच्छनाग मिलाकर महीन चूर्ण तैयार करें।
- चूर्ण को कांच की शीशी में भरकर रख लें।
गुण व उपयोग (Properties and Uses)
- शोधन प्रभाव: तालकेश्वर रस शरीर से विषैले पदार्थों को बाहर निकालता है, जो कुष्ठ रोग का मुख्य कारण होते हैं।
- रक्त शोधन: दूषित रक्त को शुद्ध करता है, जिससे कुष्ठ रोग में जल्दी लाभ होता है।
- सूजन कम करने में सहायक: शरीर के सूजन वाले हिस्सों पर लाभकारी।
सेवन विधि व मात्रा (Dosage and Administration)
- मात्रा: सुबह शाम 250-250mg की मात्रा में सेवन करें।
- अनुपान: बावची चूर्ण, शहद, और घी के साथ मिलाकर सेवन करें। ऊपर से खदिरारिष्ट या मंजिष्ठादि क्वाथ का सेवन करें।
- परहेज: तेल, मिर्च, मसाला, नमक, खटाई, दूध, दही, मांस, शराब आदि से परहेज करें।
तालकेश्वर रस, विशेषकर कुष्ठ रोग में, अत्यधिक प्रभावशाली माना जाता है। इसके सेवन से पहले आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह अवश्य लें क्योंकि इसके घटक अत्यंत शक्तिशाली होते हैं और इनके सही उपयोग से ही लाभ प्राप्त होता है।