तिन्दुक वटी जिसे विष तिन्दुक वटी के नाम से भी जाना जाता है । आयुर्वेद चिकित्सको द्वारा इस औषधीय योग का प्रयोग वात रोगों के साथ साथ कई अन्य शारीरिक व्याधियो में किया जाता है ।
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तिन्दुक वटी के घटक द्रव्य –
- शुद्ध कुचला
- गुग्गुल
- हरड
- बहेड़ा
- आंवला
- गिलोय
- एरंड स्नेह
तिन्दुक वटी बनाने की विधि –
सबसे पहले हरड बहेड़ा आंवला व् गिलोय का काढ़ा बनाते है और गुग्गल का शोधन करते है । शुद्ध कुचला ( गोमूत्र, गाय के दूध, गाय के घी से किया जाता है ) शुद्ध कुचला के चूर्ण को गुग्गल में मिलाया जाता है । एरंड तेल का प्रयोग टेबलेट बनाने में बोन्डिंग एजेंट के साथ वात शामक होने से किया जाता है ।
तिन्दुक वटी की सेवन मात्रा-
वयस्कों में – 125 मिलीग्राम से 250 मिलीग्राम तक पानी के साथ आयू, बल, रोग एवं प्रदेश के अनुसार चिकित्सक की देख रेख में प्रयोग करना चाहिए ।
तिन्दुक वटी के फायदे –
- पुराने वातिक रोग के लिए फायदेमंद
- जोड़ो का दर्द
- पेटदर्द
- किसी भी प्रकार की शारीरिक वरदाना के लिए ।
- अफीम का नशा छुडाने के लिए – आयुर्वेद चिकित्सक से सलाह लेवे
तिन्दुक वटी के दुष्प्रभाव –
- अधिक मात्रा में सेवन करने से आक्षेप आ सकते है । नजदीकी चिकित्सक की सलाह आवश्यक ।
- अधिक मात्रा में सेवन से नशा जैसा अनुभव हो सकता है ।
- अन्य किसी प्रकार के दुष्प्रभाव की पुष्टि नहीं ।
सावधानी –
- चिकित्सक की देख रेख में सेवन करे ।
- अधिक मात्रा में सेवन से बचे ।
- लम्बे समय तक सेवन से बचे ।
- बच्चो की पहुच से दूर रखे ।
- सामान्य तापमान पर स्टोर करे ।
- छोटे बच्चे , गर्भवती एवं दूध पिलाने वाली माताएं सेवन नहीं करे ।
स्त्रोत – चिकित्सकीय कल्पित अनुभूत योग
अस्वीकरण – इस लेख में दि गई समस्त जानकारी शैक्षणिक है । किसी भी आयुर्वेदिक औषधि के प्रयोग से पूर्व आयुर्वेद चिकित्सक की सलाह अवश्य लेवे ।
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