नवजात शिशु की देखभाल कैसे करें– बच्चे हमारे देश का भविष्य है । जब एक स्वस्थ माता स्वस्थ बच्चे को जन्म देती है।
बच्चे की देखभाल प्रश्न का अवस्था से ही शुरू हो जाती है । बच्चे के स्वास्थ्य की देखभाल के लिए मां को प्रसन्न रखा जाता है ।
माता को समुचित पोषक तत्व वाला आहार विहार करवाया जाता है ।
स्वस्थ संतान तभी हो सकती है जब माता स्वयं स्वस्थ हो।
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गर्भवती की देखभाल
भारत जैसे देश में सामान्यतया लड़कियों को जल्दी ही शादी करवा दी जाती है। बहुत हद तक बाल विवाह पर रोक लग चुकी है। फिर भी कई जगह पर कम उम्र में विवाह हो जाने के कारण कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
आचार्य चरक ने चरक संहिता में गर्भवती महिला की देखभाल का वर्णन मिलता है। पहले महीने से नौवें महीने तक होने वाली परेशानियों से बचने के लिए दवाइयों का वर्णन देखने को मिलता है।
गर्भवती महिला को हल्का सुपाच्य और तरल भोजन का प्रयोग करना चाहिए।
दिन में 2 घंटे से 3 घंटे का आराम करें। रात्रि में 8 घंटे की नींद ले।
स्नानादि करके आरामदायक ढीले वस्त्र का प्रयोग करें।
केवल बैठे रहना। या केवल आराम करना।
गर्भवती महिला के स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं है। इसलिए थोड़ा थोड़ा घरेलू कार्य जरूर करें।
गर्भवती महिलाएं वजन उठाने वाले कार्य ना करें।
हर महीने चिकित्सक से जांच करवाते रहें।
जिसमें से कुछ दवाइयों के नाम हम आपको बता रहे हैं ।
जो आयुर्वेद चिकित्सक की सलाह पर सेवन कर सकते हैं।
नागकेसर, लाल चन्दन, शतावरी, सफ़ेद चंदन, गोखरू, सिंघाड़ा ,धनिया ,नीलकमल, सुगंध बाला ,विदारीकंद ,पद्मकाष्ट इत्यादि।
नवजात शिशु की देखभाल कैसे करें
आयुर्वेद के अनुसार बच्चे की जन्म से उचित देखभाल होने पर उसका शारीरिक व मानसिक विकास अच्छे से होता है।
बच्चे का आयुर्वेद अनुसार जातक्रम संस्कार सबसे पहले किया जाता है।
इसके बाद में सुवर्णप्राशन संस्कार करवाया जाता है। ताकि बच्चे की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।
सुवर्णप्राशन संस्कार में स्वर्ण भस्म शहद और घी को मिलाकर निश्चित अनुपात में चिकित्सक के निर्देशानुसार करवाया जाता है।
इसके बाद नवजात के कानों में गृह्य सूत्रोंक्त मंत्रों के द्वारा । उसकी लंबी आयु के लिए और अच्छे स्वास्थ्य की कामना के लिए पढ़ा जाता है।
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नवजात शिशु को स्नान कैसे करवाएं
नाभि नाल काटने के 3 दिन बाद अथवा कमजोर बालक को 7 दिन बाद ही नहलाना चाहिए।
नाभि नाल सुख कर नहीं गिरती तब तक बच्चे को बला तेल, जैतून का तेल शरीर पर लगाने के बाद गुनगुने पानी से स्नान कराना चाहिए।
नाभि नाल के गिर जाने के बाद तेल की मालिश नहीं करनी चाहिए।
जब तक नाभि नाल नहीं गिरती है । तब तक बच्चे की नाभि में पानी नहीं जाना चाहिए। इस बात का विशेष ध्यान रखें।
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स्तनपान
शिशु के जन्म के आधे घंटे से 1 घंटे के अंदर ही प्रारंभ वाला मां का पीला दूध पिलाना चाहिए। इस दूध में कोलोस्ट्रम शिशु को बीमारियों से बचाता है। रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि करता है।
आयुर्वेद के अनुसार माता का दूध ही बच्चे के लिए अमृत है।
और यह पूरा ही आहार माना जाता है। बच्चे की पोषण की समस्त आवश्यकताओं को पूरा करने वाला होता है।
मां के दूध से ही शिशु के मानसिक एवं शारीरिक विकास अच्छे से हो सकता है। इसका कारण है यह समय पर मिलता है उचित तापमान के साथ में संक्रमण रहित होता है।
नवजात शिशु को हर माता को 6 माह तक केवल स्तनपान ही करवाना चाहिए।
क्योंकि स्तनपान ही 6 माह तक पूर्ण आहार के रूप में अच्छा है।
6 माह के पश्चात इसे ऊपर का पूरक आहार देने की सोच नहीं चाहिए।
स्तनपान करवाने वाली महिलाओं की अपेक्षा स्तनपान नहीं कराने वाली महिलाओं को ओवरी का कैंसर स्तन कैंसर होने की संभावना अधिक होती है।
स्तनपान करने वाले बच्चों में कान का संक्रमण निमोनिया और दस्त की शिकायत नहीं होती है। जबकि इसकी बजाय ऊपर का दूध लेने वाले बच्चों में शारीरिक एवं मानसिक विकास पर प्रभाव पड़ता है। इसके साथ ही शिशु में निमोनिया दस्त जैसी शिकायतें होने की संभावना रहती है।
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महिलाओं के स्तन्यवर्धक के लिए कुछ आयुर्वेदिक दवाइयां
अश्वगंधा, शतावरी विदारीकंद मुलेठी सोंठ मरीच पीपल पीपला मूल अधिक जानकारी के लिए आयुर्वेदिक विशेषज्ञ से सलाह जरूरी है।
संतान स्तनपान कराने का समय सामान्यतया दो से 3 घंटे के अंतराल में दूध पिलाना चाहिए। शुरुआती महीनों में पूरे दिन भर में 8 से 10 बार शिशु को दूध पिलाना चाहिए।
कम वजन वाले बच्चों को 10 बार से अधिक दूध पिलाना चाहिए।
सम्यक स्तनपान कराने पर बच्चे में दिन में 10 से 15 ग्राम वजन की बढ़ोतरी होती है। शुरुआती दिनों में छह से आठ बार शिशु मूत्र त्याग करता है।
कमजोर बालक मां का स्तनपान नहीं कर पाने की समस्या में
उस को ऊपर के दूध की बचाए मां के स्तन में को चम्मच के द्वारा थोड़ा-थोड़ा करके पिलाना चाहिए।
बच्चों में टीकाकरण
बच्चे को जन्म से लेकर बड़े होने तक कई प्रकार की जानलेवा बीमारियों से बचाने के लिए टीकाकरण करवाने की जरूरत होती है।
इसलिए सभी नवजात शिशु का का टीकाकरण आवश्यक और महत्वपूर्ण है।
प्रसव पश्चात माता की देखभाल
प्रसव के उपरांत कम से कम एक से डेढ़ महीने महिला को आराम करना चाहिए। उचित पोषण युक्त भोजन करना चाहिए।
सिजेरियन होने की अवस्था में अधिक आराम और खान-पान पर ध्यान देना जरूरी है।सिजेरियन होने पर महिलाओं को खट्टी चीजों से परहेज रखना होगा।
जैसे दही ,अचार ,आमचूर, इमली का सेवन ना करें।हल्का पौष्टिक एवं सुपाच्य भोजन करना चाहिए।
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