नित्यानंद रस का उपयोग- क्या आप जानते हैं नित्यानंद रस औषधि में क्या-क्या दवाइयां है? नित्यानंद रस के उपयोग एवं फायदे के बारे में पूरी जानकारी के लिए पोस्ट को अंत तक पढ़े ।
नित्यानंद रस का उपयोग मुख्य रूप से श्लीपद रोग( हाथी पाव) में किया जाता है ।पैरो में अप्राकृतिक रूप से सुजन आ जाती है और विचित्र दिखने लगता है ।
Table of Contents
नित्यानंद रस के घटक द्रव्य-(र.र . के अनुसार)
- शुद्ध पारद
- शुद्ध गंधक
- ताम्र भस्म
- वंग भस्म
- शुद्ध हरताल
- शुद्ध नीला थोथा
- शंख भस्म
- कास्य बस में
- कोडी भस्म
- लोह भस्म
- हरितकी
- बहेड़ा
- आंवला
- सोंठ
- काली मिर्च
- पीपल
- सेंधा नमक
- वाय विडंग
- काला नमक
- बीड नमक
- कांच नमक
- समुद्र नमक
- चव्य
- चित्रक
- पीपला मूल
- हाऊ बेर
- वच
- कपूर
- पाठा
- देवदारू
- विधारा
- छोटी इलायची
नित्यानंद रस बनाने की विधि-
उपरोक्त सभी दवाइयों की समान मात्रा लेवे । चित्रक मूल 12 घंटे निसोत 12 घंटे दंती मूल 12 घंटे और हरड़ का क्वाथ 12 घंटे तक अलग-अलग काढ़े में खरल करने के बाद । 250 मिलीग्राम की गोलियां बना ले ।
नित्यानंद रस के उपयोग एवं फायदे-
- नित्यानंद रस का प्रयोग हाथीपांव रोग में किया जाता है ।
- हाथी पाव रोग के कारण पैर मोटा हो जाता है । खुजली आती है । तेज दर्द होता है । त्वचा का रंग काला पड़ जाता है ऊपर चीरा बढ़ जाता है ।
- रस रक्त मांस मेद और शुक्र तक पहुंचा हुआ रोग ठीक हो जाता है ।
- किसी भी प्रकार की गाठ, गंडमाला, अधिक पुरानी बढ़ी हुई आंत, पेट की कीड़े अत्यंत विशेष लाभकारी है ।
- वात ,पित्त , कफज या पित्तकफज गुदा रोगों में भी फायदेमंद होती है ।
- पेट की अग्नि को बढ़ाता है ।
- शरीर की ताकत और वीर्य में वृद्धि करता है ।
- कैंसर के इलाज के लिए भी इसका प्रयोग चिकित्सक द्वारा किया जाता है ।
- खुन की गांठे , मांस की गांठे ठीक करने का कार्य करता है ।
सेवन मात्रा-
एक से दो गोली दिन में दो बार खाना खाने के बाद ठंडे पानी से चिकित्सक के निर्देशानुसार सेवन करना चाहिए ।
कहां से खरीदें-
हर आयुर्वेदिक मेडिकल स्टोर पर आसानी से उपलब्ध है । ऑनलाइन खरीदने के लिए नीचे दिए गए चित्र पर क्लिक करें ।
सावधानी-
औषधि का सेवन चिकित्सक की देखरेख में करें ।
बच्चों की पहुंच से दूर रखें ।
कमरे के तापमान पर स्टोर करें ।
चेतावनी- इस लेख में दी गई समस्त जानकारी चिकित्सा परामर्श नहीं है । किसी भी आयुर्वेदिक औषधि के सेवन से पहले आयुर्वेद चिकित्सक की सलाह अवश्य ले ।
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