नींद लाने के आयुर्वेदिक उपाय-आयुर्वेद में सदवृत के अनुसार आहार निद्रा ब्रह्मचर्य का महत्व अत्यधिक है । जिसमें निंद्रा के बारे में हम आज इस लेख के माध्यम से जुड़ेंगे । निंद्रा अर्थात नींद नींद का हमारे स्वास्थ्य पर सीधा प्रभाव पड़ता है । नींद के संबंध में आयुर्वेद का मत आप जान सकेंगे । नींद क्यों आती है? अच्छी नींद कैसे लाएं? अच्छी नींद के लिए कैसे सोए ? सोते समय हमारा बिस्तर कैसा हो ? किस जगह सोना चाहिए ? ऐसे कई सवाल आपके दिमाग में आते होंगे । नींद के साथ सपनों का क्या संबंध है सब कुछ जानेंगे
आयुर्वेद में नींद भगवान विष्णु की माया बताया गया है । जब हमारा शरीर थक जाता है । सभी कर्मेंद्रियां ज्ञानेंद्रियां अपने कार्यों से निवृत्त हो जाती है तब मनुष्य को नींद आने लगती है । आयुर्वेद में तमोगुण को निंद्रा का मुख्य कारण माना गया है ।
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सोने का तरीका क्या होना चाहिए?
सूर्य अस्त होने के बाद में सोना चाहिए । हल्का और सुपाच्य पोषण देने वाला भोजन करने के बाद सोना चाहिए
सोते समय सभी प्रकार की चिंता को छोड़कर मन को शांत अवस्था में रखकर सोना चाहिए ।
स्नान करने के बाद सोने से मन शांत हो जाता है नींद अच्छी आती है । सोते समय अपने इष्ट ईश्वर को यार आप जिसे भी मानते हैं याद करना चाहिए सोते समय आपके पास सुरक्षा के लिए कम से कम ठंडा होना चाहिए ।
सोने की जगह कैसी हो
सोने का स्थान स्वच्छ एवं हवादार होना चाहिए ना एकांत में सोना चाहिए नाही अधिक भीड़भाड़ वाले स्थान पर सोना चाहिए
तकिया कंबल रजाई सभी आवश्यक बिछाने वाले स्वच्छ एवं निर्मल होने चाहिए । शरीर के आकार के अनुसार शरीर की लंबाई के अनुसार पलंग खाट होना चाहिए ।
समतल और आरामदायक अंतर होना चाहिए
पलंग की ऊंचाई कम से कम घुटनों से ऊंचा होना आवश्यक है।
सोते समय पूर्व या पश्चिम दिशा में सिर करके सोना चाहिए हमेशा अपने पैरों को घर की मंदिर की तरफ करके नहीं सोना चाहिए ।
सोने का सही समय
सामान्य मनुष्य को औसत 6 से 7 घंटे की नींद लेनी चाहिए नींद का समय आयु अवस्था रोग के अनुसार अलग-अलग हो सकती है । इसलिए आवश्यकता अनुसार पर्याप्त नींद लेनी चाहिए । नींद लेने से मन शांत रहता है आध्यात्मिक विचारों की प्रवृत्ति बढ़ती है ।
अच्छी नींद के फायदे
आयुर्वेद शास्त्रों में कहा गया है अच्छी नींद व्यक्ति की आयु को बढ़ाती है
सुख और आनंद की अनुभूति देती है ।
शरीर की धातुओं का पोषण करती है और धातु एवं दोषों को सामान्य अवस्था में रखती है ।
थकान आलस को दूर करके चुस्ती फुर्ती जागृत करती है ।
भोजन करने के बाद सोने से कफ की वृद्धि होती है जो वात और पित्त को काम करता है शरीर में पोषण एवं सुख को बढ़ाता है ।
असमय नींद के सेवन से क्या होता है ?
- अधिक सोने से क्या कम सोने से आयु और सुख की कमी होती है
- सिर में भारीपन रहता है
- शरीर चिपचिपा हो जाता है
- भ्रम की स्थिति होती है
- सिर दर्द रहता है
- भूख की कमी हो जाती है
- जी मचलना जैसी शिकायत होती है
- उबासी आती है
- नींद की झपकियाँ कभी भी आती है ।
रात को जगना और दिन में सोना कितना सही कितना गलत ?
- दिन में सोना आयुर्वेद में दिवास्वप्न कहलाता है दिन में सोने से कफ दोष की वृद्धि होती है जिससे शरीर मोटापे से ग्रसित हो सकता है । अधिक वजन वाले व्यक्तियों को दिन में नहीं सोना चाहिए ।
- गर्मी के समय दिन में सोना नुकसानदेह नहीं है ।
- मेहनत का कार्य करने वाले वृद्ध महिलाएं बच्चे दिन में सो सकते हैं ।
- रोग के कारण कमजोरी अथवा आवश्यकता के अनुसार दिन में सोना आवश्यक है ।
- दिन में किसको नहीं सोना चाहिए?
- जो व्यक्ति की दूध का प्रयोग अधिक मात्रा में करते हैं स्थूलता मोटापा से ग्रसित हैं उन्हें दिन में नहीं सोना चाहिए ।
- कफ प्रकृति वाले अर्थात स्थूल शरीर वाले व्यक्तियों को दिन में नहीं सोना चाहिए ।
नींद नहीं आने के क्या कारण?
- भागदौड़ भरी जिंदगी
- मानसिक चिंता अवसाद
- अधिक व्यायाम करने वाले व्यक्तियों में नींद की कमी हो सकती है ।
- फास्ट फूड का सेवन तीखा मसालेदार सूखा भोजन करने वाले व्यक्तियों को नींद की कमी की शिकायत रहती है ।
- कफ दोष का मस्तिष्क में आवृत होना नींद की कमी और सिर दर्द का कारण होता है ।
- वृद्धावस्था में नींद कम आती है और वायु की कुपित अवस्था में नींद ना आने की समस्या हो सकती है ।
- धातु की कमी में नींद का नाश होना बताया गया है
नींद नहीं आने पर क्या करें ?
- शरीर पर सुगंधित तेल बला तेल की मालिश करें ।
- कर्णपुरण करवाएं सिर की मालिश करें
- आवश्यक तापमान के पानी से स्नान करें ।
- सुगंधित द्रव्यो का शयन कक्ष में प्रयोग करें
- प्रियतमा प्रियतमा से आलिंगन करें
- जलचर प्राणियों के मांस का सेवन भोजन में करें
- दूध का सेवन सोने से पहले करें। भोजन एवं खाद्य पदार्थ आपस में विरुद्ध आहार का कार्य करते हैं इस बात का जरूर ध्यान रखें ।
- अक्षितर्पण करवाएं
नींद और सपने
नींद का सपनों से गहरा नाता है । स्वप्न आधी नींद और मन की प्रेरक अवस्था के समय उत्पन्न होते हैं यह एक ऐसा समय होता है जो मस्तिष्क की जागृत अवस्था और सुसुप्त अवस्था के बीच का समय होता है जिसमें तमोगुण की प्रधानता होने के कारण सपने आते हैं ।
सपने कैसे होते हैं
आयुर्वेद शास्त्रों में सपनों के कई प्रकार बताएं यहां हम संक्षिप्त में आप लोगों को के बारे में बताते हैं
जिन घटनाओं को जागृत अवस्था में देखने के बाद दिन के समय देखने के बाद पुनः रात के समय सपने में देखना
जिन बातों को दिन में सुनकर उन बातों को रात के समय पुनः सपने में सुनना एक प्रकार का स्वप्न है ।
जिन घटनाओं को मन और इंद्रियों द्वारा महसूस किया जाता है फिर उससे पुनः रात्रि में स्वप्न के समय उन्हीं घटनाओं को महसूस करना अनुभव करना एक स्वप्न का प्रकार है ।
दृढ़ संकल्प किसी चीज को पाने के लिए किया हुआ है वह भी रात के समय स्वप्न में देखना एक स्वप्न का प्रकार ।
जैसी कल्पना कर चुके हैं ऐसी कल्पना वाला सपना देखना भी एक तरह का स्वप्न है ।
बीते हुए समय भूतकाल में घटित घटनाओं का शुभ अशुभ परिणाम वाले सपने देखना भी एक प्रकार का स्वप्न है
सपनों के फल
शास्त्रों में माना गया है रात के
- प्रथम पहर में आने वाले सपने अल्प फलदाई होते हैं जो 1 साल के अंदर शुभाशुभ फल देते हैं ।
- दूसरे पहर में देसी गए सपने 6 से 7 महीनों में फलदाई होते हैं
- तीसरे पहर में देखे गए सपने 3 महीने से4 महीने तक फलदाई होते हैं ।
- ऐसे ही चौथे पहर में देखे गए सपने एक डेढ़ महीने में फलित होते हैं । इसलिए बुजुर्ग कहते हैं सुबह का सपना सच होता है ।
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