पंचामृत पर्पटी के फायदे- अगर आपको लम्बे समय से दस्त की शिकायत है ? तो पंचामृत पर्पटी अमृत तुल्य है। आयुर्वेद का यह योग अत्यन्त ही गुणकारी है ।
परन्तु इसका प्रयोग सावधानी और अयुर्वेद विशेषज्ञ की सलाह से ही करना चाहिए । इसके सेवन को रोग बल आयु काल देश के अनुसार बढाया या घटाया जा सकता है ।
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पंचामृत पर्पटी के घटक द्रव्य
योगरत्नाकर के अनुसार
- शुद्ध पारद 2 तोला
- लोह भस्म 2 तोला
- अभ्रक भस्म 2 तोला
- ताम्र भस्म 2 तोला
- शुद्ध गंधक 8 तोले
पंचामृत पर्पटी बनाने की विधि
उपरोक्त सभी घटक द्रव्य को घटक द्रव्य को मिलाकर कजली बनाई जाती है ।
इसके बाद इसकी पंचामृत पर्पटी बना ले।
पंचामृत पर्पटी कि सेवन मात्रा एवं विधि
125 मिलीग्राम से 375 मिलीग्राम तक !
दिन में दो बार से 3 बार आयुर्वेद चिकित्सा अधिकारी के निर्देशानुसार सेवन करें ।
पीपल चूर्ण और शहद के साथ चाटे, अथवा सेंधा नमक भुनी हुई हींग और जीरे के साथ देना चाहिए ।
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विशेष सावधानी-
व्यक्ति की प्रकृति के अनुसार सेवन करवाएं ।
कोमल एवं कमजोर प्रकृति वालों को अधिक मात्रा ना बढ़ाएं ।
जिन रोगियों में मट्ठा अनुकूल ना हो उन्हें पंचामृत पर्पटी सेवन ना करवाएं ।
पंचामृत पर्पटी के फायदे एवं उपयोग-
- पंचामृत पर्पटी का प्रयोग खासकर – आम युक्त प्रवाहिका( आम के साथ दुर्गंध वाला दस्त),
- रक्त युक्त प्रवाहिका ( रक्त के साथ आने वाली दस्त),
- सभी प्रकार के अतिसार( दस्त)
- भूख की कमी भोजन ठीक से नहीं पचना ।
- उल्टी की शिकायत में ।
- बवासीर रोग में ।
- टीबी के रोगी को।
- बुखार की पुरानी अवस्था ।
- पेट की कीड़े ।
- पीलिया रोग में ।
- संग्रहणी रोग में इसका प्रयोग करवाया जाता है ।
- आधुनिक विज्ञान में कहां जाने वाला इरिटेबल बॉवेल सिंड्रोम में इसका प्रयोग अत्यधिक फायदेमंद है।
- सिर दर्द और सूजन में फायदेमंद है ।
पंचामृत पर्पटी से जुडी आनी जानकारी
सभी प्रकार की पर पर्पटी में पंचामृत पर्पटी को सबसे श्रेष्ठ माना है । यह जीवाणु नाशक ( एंटीबैक्टीरियल) गुण होने के कारण पेट की आंतों में फायदा करती है ।
आंत के सभी प्रकार के दोषों को दूर करती है ।
अमाशय और यकृत में फायदा होता है । सभी भस्म काअपना अलग-अलग काम है । ताम्र भस्म का कार्य यकृत में जाकर यकृत की कार्य विधि को सुधारना एवं बल प्रदान करना है ।
लोहभस्म का कार्य-
लोहभस्म का कार्य पक्वाशय में होता है ।
पक्वाशय वह भाग कहलाता है । जो आमाशय के बाद छोटी आत का पहला 12 अंगुल का भाग जहां पर भोजन जाता है । और भोजन की पाचन की क्रिया अच्छे से शुरू होती है ।
पक्वाशय में लोह भस्म ताकत देने और स्तंभन का कार्य करती है ।
पारद और गंधक का कार्य
पारद और गंधक दोनों का कार्य बड़ी आत में शक्ति प्रदान करना होता है ।
अभ्रक भस्म का कार्य –
अभ्रक भस्म श्वसन तंत्र को मजबूत बनाता है ।
पंचामृत पर्पटी पित्त की प्रधानता वाले रोगी को भी दी जा सकती है ।
टीबी के कारण होने वाला पुराना दस्त कि के दूर होती है । पंचामृत पर्पटी का कार्य अंदरूनी पाचन तंत्र को मजबूत करके
रस रक्त आदि सभी धातुओं के सम्यक पाचन के लिए आंतों को तैयार करना है ।
एंटीबैक्टीरियल गुण के साथ-साथ यह विष को बाहर निकालने वाली होती है ।
अत्यधिक रूप से कमजोर रोगी
जिनका ट्यूबरक्लोसिस का इतिहास रहा है ।
शरीर में मांस की कमी हो चुकी है । जीने बार-बार दुर्गंध वाले दस्त आती हो ।
सफेद रंग कि दस्त आते हो पंचामृत पर्पटी अत्यधिक लाभकारी औषधि है ।
अलग-अलग वैद्य द्वारा इस प्रॉपर्टी में विभिन्न प्रकार की भस्म मिलाकर रोग के अनुसार प्रयोग करवाई जाती है ।
एसिडिटी के रोगियों में पंचामृत पर्पटी को जहरमोहरा पिष्टी और द्राक्षावलेह मिलाकर दी जाती है । अग्निमांद्य में पंचामृत पर्पटी के साथ में एरंड कड़वी सत्व का प्रयोग करवाया जाता है ।
आंत्र से जुड़े रोगों में पेट का आफरा ,आंत का अंदरूनी भाग टूटना, सफेद रंग का दुर्गंध युक्त मल स्त्राव इन समस्याओं के लिए फायदेमंद है ।
विशेष सावधानी-
बिना डॉक्टर की सलाह की प्रयोग ना करें ।
बच्चों की पहुंच से दूर रखें ।
आयुर्वेद विशेषज्ञ द्वारा निर्देशित नियमों का पालन करें ।
खट्टा, चरपरा , किसी भी प्रकार का खाद्य पदार्थ ( बासी )उपयोग ना करें ।
कमरे के तापमान पर स्टोर करें ।
कहाँ से ख़रीदे ?
हर आयुर्वेदिक मेडिकल सटर पर उपलब्ध है !
चेतावनी- इस लेख में दी गई जानकारी चिकित्सा परामर्श नहीं है ।
किसी भी आयुर्वेदिकऔषधि के सेवन से पूर्व आयुर्वेद विशेषज्ञ की सलाह आवश्यक ।
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