ब्लैक फंगस वाइट फंगस एवं पोस्ट कोविड

dr. d.k.samliya

डॉ दिलीप सामलिया

आयुर्वेद चिकित्साधिकारी काया उदयपुर

ब्लैक फंगस वाइट फंगस- एक प्रकार का फंगल इन्फेक्शन है । इसे मेडिकल की भाषा में म्यूकरर्माइकोसिस कहा जाता है। और वाइट फंगस को candidiasis कहते है। ब्लैक और वाइट फंगस अमूमन हवा में हमारे आसपास के इन्वायरमेंट में हमेशा तैरते रहते हैं जैसे घरों में फ्रिज के दरवाजे के आसपास काला फंगस होता है। बरसात में घरों के बाहर जो भी सीलन आती है वह वाइट फंगस है। लेकिन हमारी प्रतिरोधक क्षमता( इम्यूनिटी) बेहतर होने के कारण वह हमें संक्रमित नहीं कर पाते हैं। इससे हमारा शरीर सदियों से लड़ता आया है।

कैसे और किससे फैलता है?

इसके उलट ऐसे रोगी जिनकी इम्यूनिटी कमजोर होती है या जो पहले से- किसी गंभीर बीमारी अथवा डायबिटीज कैंसर हेपेटाइटिस हाई ब्लड प्रेशर से पीड़ित हैं। और जब कोविड-19 से व्यक्ति संक्रमित होता है ।और जब इन बीमारियों से पीड़ित व्यक्ति को ऑक्सीजन सपोर्ट पर रखा जाता है। तब 10 दिनों से ज्यादा या कई दिनों तक ऑक्सीजन सपोर्ट पर रहने से तथा हेवी एंटीबायोटिक और स्टेरॉइड देने के कारण इस प्रकार की पेशेंट की इम्यूनिटी क्षमता कम हो सकती है।

ब्लैक और वाइट फंगस हमारी बॉडी मे ऑक्सीजन मास्क के माध्यम से मुंह के आसपास नमी के कारण गले तथा फैफडो की कोशिकाओं में पहला शुरू होता है। और वहां से नाक आंख के इंटरनल भागों में फेफड़ों तक पहुंचकर कोशिकाओं को डैमेज करना शुरू कर देता है।

इन बीमारियों( डायबिटीज, कैंसर हाई ब्लड प्रेशर हेपेटाइटिस बी) से संक्रमित व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता(इम्युनिटी) इतनी कमजोर हो जाती है कि इम्यून सिस्टम फंगल इंफेक्शन से भी प्रोटेक्ट नहीं कर पाता है।

ब्लैक और वाइट फंगस की इन्फेक्शन के लक्षण-

  • आंखों का लाल होना
  • आंखों में सूजन आना
  • आंख नाक जबड़े के आसपास में दर्द होना
  • सांस लेने में कठिनाई
  • थूक के साथ खून आने
  • उल्टी के साथ खून आना
  • मानसिक स्थिति में बदलाव

ब्लैक एवं वाइट फंगस की चिकित्सा में उपयोग कि जाने वाली आयुर्वेदिक औषधियां

  • खदिरादि टेबलेट दो- दो
  • संशमनी वटी दो-दो गोली
  • पंचतिक्त घृत गुग्गुल दो-दो गोली
  • शुद्ध गंधक
  • हरिद्रा खंड
  • रसमाणिक्य
  • सप्तामृत लौह
  • रजत भस्म
  • अष्टमूर्ति रसायन
  • बालसुधा( टंकण भस्म)
  • मुक्ता पिष्टी रसायन
  • ईरीमेदादि तेल

अनुपान – शहद के साथ आयुर्वेद चिकित्सक की देखरेख में सेवन करवाया जाता है।

हैप्पी हाइपोक्सिया-

बिना किसी लक्षण के मरीज में ऑक्सीजन लेवल काफी काम हो चुका होता है। इसमें अधिकतर किशोर( जवान) होते हैं और तीसरी लहर में बच्चे भी इसका शिकार हो सकते हैं। जिसका ऑक्सीजन लेवल 80 से 90 तक हो जाता है।

ऑक्सीजन लेवल कम होने के बाद भी मरीज में लक्षण नजर नहीं आते हैं ऐसी कंडीशन को हैप्पी हाइपरक्सिया कहते हैं। ऐसे रोगियों को भी सही समय पर अस्पताल पहुंचा कर बचाया जा सकता है।

लक्षण

  • हल्की थकान और शरीर सुस्त हो जाना।
  • बैठे-बैठे पसीना आना।
  • होंठो तथा नाखूनों का रंग नीला हो जाना
  • त्वचा का रंग ज्यादा लाल होना इत्यादि लक्षणों से पूर्व में पहचाना जा सकता है।
  • घर पर पल्स ऑक्सीमीटर से ऑक्सीजन लेवल पर ध्यान रखें
  • सांस लेने में कठिनाई

जरूरी टेस्ट करके गंभीरता का पता लगाया जा सकता है सांस लेने की कठिनाई में प्रोन पोजिशन काशी सहयोग करती है इसमें पेट के बल लेट कर छाती व पैरों के नीचे तकिया रखकर खुली हवा में लंबी लंबी सांस लेने से फेफड़ों के पिछले हिस्से में पर्याप्त ऑक्सीजन पहुंच जाता है।

गर्भवती महिलाएं और हृदय रोगी चिकित्सक की सलाह पर ही प्रोन पोजीशन करें।

  • कपूर अजवाइन इलायची 1 नीलगिरी के तेल की 2-2 बूंदे डालकर पोटली बनाकर सूंघने से ऑक्सीजन लेवल में सुधार आ सकता है। यह ब्रोंकोडाइलेटर होते हैं। जिससे 3 से 5% तक ऑक्सीजन लेवल को बढ़ाया जा सकता है।
  • कोविड-19 को हम आयुर्वेद में वात श्लेष्मिक ज्वर तथा श्वसनक ज्वर के मिले-जुले रूप को देख सकते हैं। जिस चिकित्सा में बुखार में लंघन ( उपवास ) और लघु यानी हल्का भोजन करने का प्रावधान है।
  • जब बुखार आता है तो भूख कम लगती है। कुछ खाने का मन नहीं करता है इसका कारण हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता और बैक्टीरिया वायरस के बीच लड़ाई का मुख्य कारण होता है।
  • लघु भोजन या उपवास करने में शरीर में लघुता आती है। और बैक्टीरिया वायरस को पोषण नहीं मिलने के कारण उनका नाश होने लगता है।
  • कुछ साल पहले जापान के वैज्ञानिक ने उपवास से कैंसर सेल को नष्ट करने का नोबेल प्राइज जीता था उसका कारण कि सेल्स को पोषण नहीं मिलना और नष्ट होना समझा जा सकता है।
  • कोरोना संक्रमण काल में लघु और सुपाच्य भोजन करना चाहिए

भारत सरकार की आयुष मंत्रालय द्वारा निर्मित आयुष 64 टेबलेट, त्रिभुवन कीर्ति रस, लक्ष्मी विलास रस, संशमनी वटी, अश्वगंधा पाउडर, अर्जुनारिष्ट कुटकी चिरायता, समीर पन्नग रस, अभ्रक भस्म, श्वास कास चिंतामणि रस आदि आयुर्वेदिक दवाओं का प्रयोग चिकित्सक के निर्देशन में पोस्ट कोविड-19 को करना चाहिए।

मॉडल परिपेक्ष में देखें तो कालमेघ, स्वास का चिंतामणि रस, चिरायता, आंवला, बहेड़ा, गोदंती भस्म टंकण भस्म, काफी अच्छे एंटीवायरस औषधियां साबित हुई हैं।

गिलोय एवं अश्वगंधा काफी अच्छे इम्यूनोमोड्यूलेटर्स है जो सभी प्रकार के संक्रमण काल में शरीर को स्वस्थ रखने में सक्षम है।

पोस्ट कोविड संक्रमण व आयुर्वेदिक औषधियों की भूमिका-

संक्रमण के दौरान गंभीर कमजोरी महसूस की जाती है जिसके लिए- अश्वगंधारिष्ट, कुमारी आसव, लोहासव

संक्रमण के दौरान गंभीर निमोनिया होने के कारण शरीर तथा फेफड़ों में खून के थक्के जमने लगते हैं। डी- डिमर की रिपोर्ट बड़ी हुई आती है। जिससे हार्ट अटैक, ब्रेन स्ट्रोक, फेफड़ों में रक्त कहानियों में रुकावट का कारण बन सकता है।

आयुर्वेदिक चिकित्सा-

उपरोक्त दवाइयों का उपयोग आयु बल रोग की अवस्था के अनुसार चिकित्सक के निर्देशन में प्रयोग की जाती है।

D-dimer कम करने के लिए- अर्जुनारिष्ट अथवा अर्जुन छाल का काढ़ा अर्जुन त्वक चूर्ण का क्षीर पाक विधि से प्रयोग कराना चाहिए।

जिन रोगियों में कोरोना के संक्रमण काल में आयुर्वेदिक औषधियों पर विश्वास करके उनका सेवन किया था उनमें सामान्यतया शरीर में खून के थक्के जानने की समस्या (डी डिमर रिपोर्ट कराने ) देखने को नहीं मिली है।

पोस्ट कोविड-19 में डी डिमर( D-dimer) बढ़ने के निम्न लक्षण पाए जाते हैं-

  • चक्कर आना
  • पसीना आना
  • सांस लेने में तकलीफ

पोस्ट कोविड नियंत्रण हेतु सरल घरेलू उपाय

  • हल्का सुपाच्य भोजन ले जैसे मूंग की दाल चावल की खिचड़ी
  • गरम गुनगुना जल का प्रयोग करें
  • ठंडी बासी भोजन और फ्रिज के ठंडे खाद्य पदार्थों का सेवन ना करें।
  • दूध दही छाछ भारी भोजन नहीं ले।
  • समय पर भोजन करें समय पर उठे
  • पर्याप्त नींद ले
  • नींद पूरी नहीं होने के कारण शरीर में कॉर्टिसोल हार्मोन का निर्माण होता है जो तनाव पैदा करता है । और रोग प्रतिरोधक क्षमता को कम करता है।

राजस्थान सरकार द्वारा आयुर्वेद को बढ़ावा देने के लिए औषधीय पौधे जैसे अश्वगंधा कालमेघ तुलसी गिलोय को अपने अपने घरों में जरूर लगाने की पहल शुरू की है।

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