भूम्यामलकी चूर्ण -यह एक आयुर्वेदिक जड़ी बूटी है जो विशेषकर कास ,दमा ,मधुमेह के लिए प्रयोग में लाई जाने वाली यह औषधि पूरे भारत में पाई जाती है । विशेषकर उष्ण प्रदेशों में यह बहुतायत में पाई जाती है । केवल एक ही नहीं अभी तो कहीं रोगों में इसका प्रयोग करवाया जाता है । खांसी और दमा के रोगियों में भी यह लाभकारी है ।
Table of Contents
भूम्यामलकी के विभिन्न भाषाओं में नाम
लेटिन- फिलेन्थस यूरीनरिया Phyllanthus urinaria Linn.
संस्कृत नाम- भुधात्री ,बहुमुत्रा ,तामलकी ,बहुफला
हिंदी – भुई आंवला
गुजरती – भोई आंवली
भूम्यामलकी का परिचय –
छोटा क्षुप होता है । जिसकी शाखाएं होती है । आधा से एक फुट ऊंचा होता है । आंवले की तरह पत्ते होते हैं परंतु कुछ चौड़े होते हैं । फूल छोटे पीले रंग के होते हैं फल आंवले के जैसा दिखने वाला कलाकार होता है । सर्दी की ऋतु में फूल और बाद में फल लगते हैं । वर्षा ऋतु में यह उगता है । गर्मी के मौसम में यह सूख जाता है सर्दियों में फूल और फल आते हैं ।
भूम्यामलकी कहां पाया जाता है?
भारत के सभी क्षेत्रों में विशेषकर उष्ण प्रदेशों में पाया जाता है ।
भूम्यामलकी के गुण-
गुण- लघु रुक्ष
रस- मधुर तिक्त कषाय
विपाक – मधुर
वीर्य- शीत
और पढ़े ……वृद्धिवाधिका वटी
सेवन मात्रा-
भूम्यामलकी स्वरस – 10 मिलीलीटर से 20 मिलीलीटर
भूम्यामलकी चूर्ण- 3 से 5 ग्राम की मात्रा आयुर्वेद चिकित्सक के निर्देशानुसार दिन में दो बार सेवन कर सकते हैं ।
भूम्यामलकी का प्रयोग में लिया जाने वाला भाग
पंचांग (जड़, शाखा , पत्ते ,फल , फुल सभी)
और पढ़े ……बच्चों में कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए क्या करें क्या ना करें?
भूम्यामलकी के उपयोग एवं फायदे
कफ और पित्त का शामक है ।
हिचकी रोग में इसकी जड़ का रस को चीनी में मिलाकर पिलाते हैं । अथवा नाक में नस्य देते है ।
सूजन को कम करने वाला होता है ।
पाचन संस्थान के लिए दीपन पाचन और यकृत को उत्तेजित करने वाला होता है ।
श्वसन संस्थान में खांसी और श्वास रोग को दूर करने वाला होता है ।
मधुमेह रोगियों के लिए उपयोगी और फायदेमंद होता है ।
शरीर में जीवाणु संक्रमण कवक संक्रमण को दूर करता है ।
त्वचा से संबंधित होने वाले रोगों में इसका प्रयोग कराया जाता है ।
चोट लगने के कारण बाद में होने वाले घावो में लेप किया जाता है ।
चर्म रोगों में स्थानीक रूप से लेप किया जाता है ।
बुखार में भी इसका सेवन वेद्यो द्वारा करवाया जाता है ।
रक्त को साफ करने वाला और रक्त पित्त नाशक है ।
हड्डी टूटने पर नमक के साथ में इसकी पत्तियों को लेप में प्रयोग में लाया जाता है ।
भूख की कमी, प्यास लगना, कामला, एसिडिटी के लिए इसका प्रयोग करवाया जाता है ।
चेतावनी- आयुर्वेदिक औषधि का सेवन चिकित्सक के निर्देशन में सेवन करें । उपरोक्त जानकारी चिकित्सा परामर्श नहीं है ।
और पढ़े ……कोरोना पॉजिटिव रोगी के संपर्क में आने पर क्या करें