महर्षि सुश्रुत को शल्य चिकित्सा का जनक कहा जाता है !जन्म छठी शताब्दी ईसा पूर्व काशी में विश्वामित्र कुल में हुआ था ! प्राचीन समय के आयुर्वेद चिकित्साशास्त्री और उस समय के शल्य चिकित्सक थे ! इनका जन्म ८०० ईस्वी पूर्व बताया जाता है!
इनके द्वारा सुश्रुत संहिता का निर्माण किया ! इस संहिता को संस्कृत में लिखा गया है ! सुश्रुत संहिता में आयुर्वेद तथा शल्य चिकित्सा से जुड़े १८६ अध्याय है!
इस ग्रन्थ में ११२० रोगों की जानकारी , ७०० औषधियों के वनस्पतियों ,खनिज स्त्रोतों तथा उनसे जुडी प्रक्रियाओ की जानकारी है!जिसमे ८ प्रकार की सर्जरी की जानकारी विस्तार में मिलती है !
इस ग्रन्थ को आयुर्वेद में सर्जरी से जुडा विस्तृत साहित्य मिलता है ! इस संहिता को उपदेश रूप मे उनके गुरु काशिराज धन्वन्तरी ने दिया था ! जो आचार्य सु श्रुत के द्वारा सुश्रुत संहिता के रूप में रचा गया ! धन्वन्तरी भगवन को चिकित्सा का देवता कहा जाता है !
मुख्य रूप से आयुर्वेद चिकित्सा विज्ञानं में सुश्रुत संहीता को सर्जरी की निपुणता के लिए भी पढाया जाता है ! महर्षि सुश्रुत ही वे चिकित्सक है जिनके द्वारा प्राचीन समय मे प्लास्टिक सर्जरी करते थे !उनके द्वारा आँखों के मोतियाबिन्द का ओपरेशन किया था !
साथ ही दन्त चिकित्सा एवं स्त्री एव प्रसूति रोग में भी विशेष योगदान रहा ! आप सोच रहे होंगे की क्या उस समय चिकित्सा विज्ञानं इतना विकसित था? बिलकुल था ! कालांतर में कई ग्रंथो सुरक्षित नहीं रखा गया ! स्वार्थ वश कई लोगो ने इस विज्ञानं को अपने तक सिमित रखा !जिससे कई लोग उस ज्ञान को अपने साथ ही ले गए !
आचार्य सुश्रुत सवा सो प्रकार के उपकरणों का उपयोग करते थे !इसके साथ ही टूटी हुई हड्डियों को जोड़ना खिसकी हुई हड्डियों को वापस ज़माने की विशेष योग्यताये भी थी! anesthesia संज्ञा हरण के लिए शराब मद्य का उपयोग किया जाता था !
प्रयोगों के लिए पुतलो का प्रयोग (मोम) किया जाता था ! पशुओ एवं फल सब्जियों पर प्रयोग किये जाते थे ! अंदरूनी हिस्सों को समजने के लिए महर्षि द्वारा शवो का उपयोग भी किया जाता था !
आचार्य को केवल शल्य चिकित्सा का अकेला ज्ञान नहीं था बल्कि वे काय चिकित्सा शरीर रचना शरीर क्रिया तथा स्त्री रोग बल रोग मानसिक रोगों की भी विस्तृत जानकारी थी !
८ प्रकार की शल्य क्रियाये -१ छेद्य २ भेद्य ३ लेख्य ४ वेध्य ५ ऐषय ६ अहार्य ७ विश्रव्य ८ सीव्य
२४ प्रकार के स्वास्तिको , २ प्रकार के संद्सो , २० प्रकार की नाडीयो का विशेष ज्ञान था ! २८ प्रकार की शलाकाओ का उपयोग किया जाता था !
होंठो नाक कान की प्लास्टिक सर्जरी का वर्णन भी मिलता है ! त्वचा को एक स्थान से निकल कर दुसरे स्थान पर लगाने की विधा का सम्पूर्ण ज्ञान था ! संकमण का भी उस समय ज्ञान होने से विसंक्रमण के बारे मे भी बताया गया है ! इस ग्रन्थ को कई सारी देशी एवं विदेशी भाषाओ में अनुवाद भी किया गया है !
नागार्जुन नामक चिकित्सा शास्त्री ने इस ग्रन्थ के अध्यन के बाद कई नए अनुसन्धान किये ! ओर नए रूप में इस ग्रंथ को मानव सेवा के लिए उपलब्ध करवाया !
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