महालक्ष्मी विलास रस के फायदे

महालक्ष्मी विलास रस के फायदे

महालक्ष्मी विलास रस के फायदे आयुर्वेद में रसेंद्र सार संग्रह में इसके बारे में लिखा है । जैसे सूखा हुआ वृक्ष अपनी अंतिम अवस्था में हो और उसे पानी पिलाने से फिर से हरा भरा हो जाता है ।

वैसे ही किसी बीमारी से ग्रस्त व्यक्ति को महालक्ष्मी विलास रस के फायदे से फिर से नया जीवन प्रदान कर सकता है ।

महालक्ष्मी विलास रस का यह सुवर्णकल्प जिसमें स्वर्ण भस्म का उपयोग किया जाता है । वैसे तो इस महालक्ष्मी विलास रस का उपयोग कई तरह की व्याधियों में किया जाता है ।

परंतु फेफड़ों से संबंधित रोगों तथा ह्रदय से संबंधित रोगों में इस रस का उपयोग आयुर्वेदाचार्य तथा आयुर्वेद चिकित्सकों द्वारा मुख्य रूप से किया जाता है ।

महालक्ष्मी विलास रस एक घटक द्रव्य-

  1. स्वर्ण भस्म
  2. अभ्रक भस्मा
  3. शुद्ध पारद
  4. शुद्ध गंधक
  5. वंग भस्म
  6. शुद्ध हरताल
  7. ताम्र भस्म
  8. कर्पूर
  9. जायफल
  10. जाती पत्र
  11. शुद्ध किए धतूरे के बीज
  12. बस्तान्त्री के बीज

महालक्ष्मी विलास रस के फायदे- विभिन्न रोगों में

  • पुराना नजला जुखाम( दुष्ट पीनस) में ! इस रस का उपयोग औषधी योग में मिलाकर आयुर्वेदाचार्य तथा आयुर्वेद विशेषज्ञों द्वारा रोगियों को सेवन कराया जाता है ।
  • मौसम के होने वाले बदलाव के कारण होने वाला सर्दी जुखाम ! जिसे आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में एलर्जी के रूप में जाना जाता है । इसमें भी महालक्ष्मी विलास रस का उपयोग किया जाता है ।
  • रात में बार-बार नाक बंद होने शिकायत में भी आयुर्वेद चिकित्सकों द्वारा रोगियों को सेवन करवाया जाता है ।
  • जिन रोगियों में अस्थमा की शिकायत है और बार-बार खांसी के साथ बलगमआता है ।उन रोगियों को भी इस रस का सेवन करवाया जाता है ।
  • ह्रदय दौर्बल्य , नाडी का बंद रहना , बुखार के बाद में होने वाली कमजोरी, जैसी स्थिति में भी सेवन करवाया जाता है ।
  • स्त्री पुरुष में शुक्र तथा बीज दुष्टि मे भी महालक्ष्मी विलास रस का सेवन करवाया जाता है ।
  • यकृत की खराबी के कारण होने वाला पीलिया में भी महालक्ष्मी विलास रस का उपयोग औषधियों के योग में करवाया जाता है ।
  • गले में होने वाली सूजन जो अक्सर गलत खानपान तथा ठंडे पेय पदार्थ के अधिक उपयोग से होती है । और
  • गिलायु ( टॉन्सिल) बढ़ जाने की स्थिति में भी इस रस का उपयोग किया जाता है ।

सेवन मात्रा-

वयस्कों में- 125 मिलीग्राम से 250 मिलीग्राम दिन में 1 से 2 बार

चिकित्सक के निर्देशानुसार की सेवन करनी चाहिए ।

अनुपान – ( दवाई जिस औषधि से द्रव्य औषधि के साथ सेवन करनी है)

गुनगुने पानी, शहद, दूध, चवनप्राश, पिपली के चूर्ण या रोग के अनुसार

अधिकृत आयुर्वेद चिकित्सक के निर्देशानुसार की सेवन करें ।

सावधानी-

आयुर्वेद रस औषधियों में धात्विक कंटेंट होने की वजह से बिना चिकित्सा परामर्श के सेवन करना खतरनाक हो सकता है ।

औषधि बच्चों की पहुंच से दूर रखें ।

औषधि को कमरे के तापमान सूखे स्थान पर रखें ।

चेतावनी- यहां पर दी गई समस्त जानकारी परामर्श नहीं है । आयुर्वेदिक औषधि के सेवन से पहले आयुर्वेदिक विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य करें ।

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