वात पित्त कफ दोषों के स्थान तथा प्रकोपकाल

वात पित्त कफ दोषों के स्थान तथा प्रकोपकाल

“ते व्यापिनोऽपि हृन्नाभ्योरधोमध्योर्ध्वसंश्रयाः।वात पित्त कफ दोषों के स्थान तथा प्रकोपकाल – ये तीनों वात आदि दोष सदा समस्त शरीर में व्याप्त रहते हैं। फिर भी नाभि से निचले भाग में वायु का, नाभि तथा हृदय के मध्य भाग में पित्त का और हृदय के ऊपरी भाग में कफ का आश्रयस्थान है।”

आयुर्वेद शास्त्र के अनुसार इस श्लोक के अनुसार, तीनों दोष (वात, पित्त, कफ) हमेशा पूरे शरीर में व्याप्त रहते हैं, यानी वे हमारे शरीर के हर भाग में मौजूद होते हैं। फिर भी, नाभि से नीचे भाग में वायु, नाभि और हृदय के मध्य भाग में पित्त, और हृदय के ऊपरी भाग में कफ का आश्रयस्थान होता हैं।

यह विचारशीलता के सिद्धांतों के अनुसार है जिन्हें आयुर्वेद में व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है। आयुर्वेद में वात, पित्त और कफ तीन प्रकृतियों या दोषों को दर्शाते हैं जो शरीर में स्वस्थ्य और रोग के संतुलन को प्रभावित करते हैं।

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