वासा अडूसा

वासा अडूसा

वासा ( अडूसा)

नाम

अंग्रेजी-MalabarNut

संस्कृत- वसीका , वासक , वासा

हिंदी – अडूसा ,वाकस

वासा अडूसा पहचान एवं परिचय-

औषधि का उल्लेख -आयुर्वेद के ग्रंथ भाव प्रकाश ,चरक संहिता, सुश्रुत संहिता में मिलता है । यह एक झाड़ीनुमा क्षुप है । 4 से 6 फुट की ऊंचाई वाला तथा समूह में उगता है । इसके पत्ते 3 से 5 इंच के लंबे होते हैं । पत्तों में दुर्गंध के साथ में अंडाकार और भालाकार होते हैं । फूल सफेद रंग के बड़े और 1 से 3 इंच लंबे होते हैं । फूल फरवरी-मार्च में आते हैं । इसकी दो प्रजातियां होती है कृष्ण वासा जो पश्चिम बंगाल में पाई जाती है । एक प्रजाति केरल में पाई जाती है । सामान्य रूप से पूरे भारत में 4000 फीट की ऊंचाई तक वासा उगता है ।

वासा अडूसा का उपयोग-

  1. मुख्य रूप से वासा ( अडूसा ) दमा रोग के लिए प्रयोग किया जाता है । जिसे आयुर्वेद की भाषा में श्वास रोग कहा जाता है । जब फेफड़ों की श्वास नलिकाये संकुचित होकर कफ को निकालने में असमर्थ होती है तब वासा श्वास नलिकाओं का विस्पारित करके कफ को पतला करके बाहर निकालने का कार्य अडूसा करता है । श्वास रोग पर लंबे समय तक इसका प्रभाव रहता है ।
  2. राज्यक्षमा( ट्यूबरक्लोसिस) मे प्रयोग करवाया जाता है । लगातार खांसी तथा साथ साथ में खून आता हो तो वासा ( अडूसा ) का सेवन करवाया जाता है तो रोगी को लाभ होता है ।
  3. वासा ( अडूसा ) में बुखार को कम करने के गुण भी पाए जाते हैं । शरीर के तापमान को कम करके बुखार में आराम पहुंचाता है ।
  4. लघु रूक्ष और तिक्त कषाय होने के कारण कफ और पित्त दोष का शमन करता है ।
  5. शरीर के धातु की अग्नि बढ़ाकर धातुओं को पोषण देता है । जिससे क्षय रोग का निवारण होता है ।
  6. ह्रदय के लिए भी यह औषधि गुणकारी है । क्योंकि रक्त शोधन के साथ-साथ रक्त स्थम्भन एवं रक्तभार को कम करने का कार्य भी करता है ।
  7. मूत्र जनन गुण होने के साथ साथ त्वचा के रोगों में भी उपयोग किया जाता है ।
  8. रक्त स्थम्भन गुण होने के कारण नकसीर और रक्त पित्त में भी उपयोग करवाया जाता है ।

प्रयोग किए जाने वाले भाग –

पत्तियां- आयु ,बल और रोग के अनुसार 10 से 20 मिलीलीटर पत्तियों का रस शहद में मिलाकर सेवन करवाया जाता है।

मूल – आयु ,बल एवं रोग के अनुसार वासा अडूसा की जड़ का काढ़ा 40 से 50 एमएम

फुल – फूलों का रस 10 से 20 मिलीलीटर की मात्रा

गुलकंद- अडूसे के फूलों को दोगुनी मात्रा में मिश्री मिलाकर । कांच की बरनी में ढक्कन बंद करके रख दिया जाता है । तैयार गुलकंद का प्रयोग करवाया जाता है ।

वासा ( अडूसा ) पर आधारित औषधी योग-

वासावलेह, वासारिष्ट , वासा पानक

चेतावनी- इस लेख में दी गई समस्त जानकारी चिकित्सा परामर्श नहीं है । किसी भी आयुर्वेदिक औषधि के सेवन से पूर्व रजिस्टर्ड आयुर्वेद चिकित्साधिकारी की सलाह आवश्यक है ।

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