वृषचिकित्सा या वाजीकरणतन्त्र क्या है

वृषचिकित्सा या वाजीकरणतन्त्र

वृषचिकित्सा या वाजीकरणतन्त्र उस विज्ञान को कहा जाता है जो शुक्राणु के गुणों को सुधारने और बढ़ाने में सहायक होता है। इसका उद्देश्य शुक्र की मात्रा को बढ़ाना, दूषित शुक्र को शुद्ध करना, कमजोर शुक्र को बढ़ाना और सूखे हुए शुक्र के उत्पादन के लिए निर्देश देना होता है। इस तन्त्र का उपयोग पुरुष और महिला दोनों को सन्तानोत्पादन की शक्ति प्रदान करने और लिंग में प्रहर्षता उत्पन्न करने के लिए किया जाता है।

“वृष” और “बाजी” शब्दों का उपयोग वाजीकरण के लिए किया गया है। “वृष” का अर्थ होता है “वीर्य की वर्षा करना”। यहां परंतु, यह “वृष” (साँड़) घोड़े के समान तेज नहीं होता है, इसलिए अधिकांश स्थानों पर “वाजीकरण” शब्द प्रचलित है।

प्राचीन ग्रंथों में वृषचिकित्सा के सिद्धांतों, नियमों और उपायों का वर्णन हो सकता है। आप चरक संहिता और सुश्रुत संहिता के अध्यायों और श्लोकों का अध्ययन करके इस विषयसे जुड़े ज्ञान को प्राप्त कर सकते हैं।

एक महत्वपूर्ण सूचना है कि वृषचिकित्सा और वाजीकरण के उपयोग को स्वास्थ्य और प्रजनन के लिए ही करना चाहिए। कभी भी दुराचार या दुष्प्रवृत्ति के लिए इनका उपयोग नहीं करना चाहिए, क्योंकि इससे हानि की संभावना हो सकती है। इनका उपयोग करने से पहले एक प्रशिक्षित चिकित्सक की सलाह लेना अत्यावश्यक है। इनके सेवन के दौरान ब्रह्मचर्य का पालन करना बहुत महत्वपूर्ण है, तभी पूरा लाभ मिलता है।

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