शल्य तंत्र क्या है ?- शल्यतन्त्र, जिसे अंग्रेजी में “Surgery” के रूप में जाना जाता है, आयुर्वेदिक चिकित्सा के एक प्रमुख अंग है जो रोग या घावों के उपचार के लिए विभिन्न प्रकार के यंत्र, शस्त्र, क्षार और अग्नि के प्रयोग का अध्ययन करता है। यह चिकित्सा के विभिन्न पहलुओं को समाहित करता है जिनमें शस्त्रीय कार्य, यन्त्रशास्त्र, क्षारकर्म और अग्निकर्म शामिल हैं।
शल्यतन्त्र का उद्देश्य विभिन्न रोगों और घावों के उपचार के माध्यम से रोगी को शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ करना होता है। इसमें चिकित्सा विधियों का उपयोग करके विभिन्न तकनीकों द्वारा रोगी के शरीर में छेदन, संशोधन और संश्लेषण की प्रक्रिया की जाती है।
शल्यतन्त्र शाखा में अनेक विशेषताएं
- यन्त्रशास्त्र (Instrumental Surgery): इसमें विभिन्न यंत्रों का उपयोग करके शरीर के अंदर छेदन और संशोधन करके रोग या घाव का इलाज किया जाता है। इसमें सूत्र, कट्टी, चिकित्सा इन्स्ट्रूमेंट्स, आयुर्वेदिक सुत, आदि का उपयोग किया जाता है।
- क्षारकर्म (Chemical Cauterization): यह शल्यतन्त्र का एक प्रकार है जिसमें विभिन्न प्रकार के क्षारों का उपयोग करके रोगी के शरीर में उच्चतरस्थ तत्वों का संशोधन किया जाता है। यह रोगों के इलाज के लिए उपयोगी होता है, जैसे कि अर्श, फिशर, नासूर आदि।
- अग्निकर्म (Thermal Cauterization): इसमें उच्चतर तापमान के उपयोग से रोगी के शरीर के आंतरिक या बाहरी भागों में संशोधन करके रोग का इलाज किया जाता है। जलने, विषाक्त वस्त्रावरण में लगने, अग्निजनित घावों आदि के उपचार में अग्निकर्म प्रयोगी होता है।
शल्यतन्त्र चिकित्सा का आद्यात्मिक इतिहास बहुत प्राचीन है और भगवान धन्वन्तरि इस तन्त्र के मान्यतापूर्वक प्रयोग के प्रतीक माने जाते हैं। शल्यतन्त्र अभी भी सभी चरक संहिताओं में विस्तारपूर्वक वर्णित है और उच्चतर अध्ययन संस्थानों में शल्य चिकित्सकों द्वारा प्रयोगित होता है।
यह शल्यतन्त्र का एक संक्षेपिक विवरण है, जो शालाक्य तंत्र और शल्यतन्त्र के बीच की भिन्नताओं को दर्शाता है। शालाक्य तंत्र, जिसे ईएनटी और ऑप्थामोलॉजी के रूप में भी जाना जाता है, गले, मुंह, नाक, कान, आंख आदि से जुड़ी समस्याओं का इलाज करने में विशेषज्ञता प्रदान करता है। यह उपचारों में शलाका के प्रयोग को मुख्यतः शामिल करता है, जिसले उसका नाम शालाक्य पड़ता है।