शालाक्य तंत्र क्या है ?- शालाक्य तंत्र एक प्राचीन आयुर्वेदिक चिकित्सा विज्ञान है जिसमें उपरी शरीर के रोगों के निदान और इलाज के लिए विशेष ध्यान दिया जाता है। यह चिकित्सा शाखा गले, मुंह, नाक, कान और आंख सहित उपरी शरीर के विभिन्न अंगों से संबंधित रोगों का इलाज करती है। इसे “ऊर्ध्वाङ्ग चिकित्सा” भी कहा जाता है, जहां “ऊर्ध्वाङ्ग” शब्द का अर्थ होता है “ऊपरी अंग”।
शालाक्य तंत्र के अंतर्गत कुछ मुख्य विषयों
- नेत्र रोग (Ophthalmology): शालाक्य तंत्र विशेषज्ञ नेत्र रोगों का निदान, इलाज और सर्जरी करते हैं। इसमें आंखों के रोगों जैसे कि अंधापन, दृष्टि कमजोरी, ग्लौकोमा, केटरैक्ट, अपच, नेत्रदाह, सूजन, रक्तपात, पटली विकार आदि शामिल होते हैं।
- कर्ण रोग (Otology): इसमें कान से संबंधित रोगों का निदान और उपचार किया जाता है। इसमें कान के इन्फेक्शन, कानपूटी की समस्याएं, श्रवण कमजोरी, कर्णशूल, कर्णरंजक ग्रंथि का प्रकोप, कर्णशोथ, कान का बहना, ज्योतिष्मती, मूखगण्ड, आदि शामिल होते हैं।
- नासिका रोग (Rhinology): इसमें नाक से संबंधित रोगों का निदान और इलाज किया जाता है। यहां नाक के अल्सर, श्वासनली के विकार, नासिका में सूजन, जलन, प्रदाह, नाक से रक्तस्राव, स्नायुगत रोग, गाल-स्राव, साइनसाइटिस, नाक में विकृति, आदि रोग शामिल होते हैं।
- मुख रोग (Oral Medicine): इसमें मुख संबंधित रोगों का निदान और उपचार किया जाता है। इसमें मुख के रोग जैसे कि मुखपाक, जीभ का अपच, मसूड़ों का रोग, मुंह के छाले, मुंह का सूखापन, अस्थिभेद, मुंह का छोटापन, इन्फेक्शन, आंगिना, आदि शामिल होते हैं।
- गला रोग (Laryngology): इसमें गले से संबंधित रोगों का निदान और उपचार किया जाता है। इसमें गले के रोग जैसे कि गले का दर्द, स्वर विकार, गले का सूजन, अंगीना, गले की खराश, निमोनिया, गले में रक्तस्राव, गले के छाले, गले की जलन, गले का सूखापन, आदि शामिल होते हैं।
शालाक्य तंत्र में शलाका (Probes) का उपयोग रोगों का निदान और उपचार करने के लिए किया जाता है। शलाका की मदद से रोगी के शरीर के विभिन्न अंगों की परीक्षा की जाती है और उन्हें इलाज के लिए आवश्यक चिकित्सा उपाय तथा सर्जरी योजना का निर्धारण किया जाता है।
यह चिकित्सा विज्ञान शालाक्य तंत्र आयुर्वेदिक चिकित्सा विद्यालयों और अस्पतालों में अध्ययन किया जाता है और चिकित्सा प्रदान की जाती है। ईएनटी (ENT) और ऑप्थैल्मोलॉजी (Ophthalmology) शालाक्य तंत्र के प्रमुख उपविभाग हैं, जिन्हें प्रयोगशालाओं, उच्चतर अध्ययन संस्थानों और रोगी केंद्रों में अलग-अलग तरीकों से समर्थित किया जाता है।
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