शिलाजित्वादी लौह(भैषज्य रत्नावली) का महत्व आयुर्वेद में उन रोगियों के लिए ज्यादा है ! जो राजयक्ष्मा टी बी की बीमारी से ग्रसित है ! हलाकि मेडिकल साइंस में इसकी दवाई ९ माह के कोर्स के रूप में दी जाती है फिर भी अगर आपको टी बी है तो आपको आयुर्वेद के किसी अच्छे वैद्य की सलाह जरुर लेनी चाहिए ! आयुर्वेद मई ईएसआई कई सारी रामबाण औषधीया है जो बड़े से बड़े असाध्य रोगों को भी ठीक करने की अपूर्ण क्षमता रखता है !
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शिलाजित्वादी लौह के घटक द्रव्य –
शिलाजित्वादी लौह(भैषज्य रत्नावली)
शुद्ध शिलाजीत , मुलेठी का चूर्ण , सोंठ ,मारीच ,छोटी पिप्पल ,स्वर्ण माक्षिक भस्म लोहभस्म
गुण धर्म – रक्त की कमी के कारन होने वाले राजयक्ष्मा की सफल महा औषधि है ! इसका उपयोग रक्तक्षीणता में (low rbc count ) ,और इसी के कारण होने वाली कृशता ,(वजन की कमी और रोगी धीरे धीरे कमजोर होता जाता है ) कफ वाली खांसी ,पुराना बुखार , छाती में दर्द , पांडू (जोइंडिस ) आदि रोगी को दूर करता है ! शरीर में रक्त को बढ़ाता है ! नयी शक्ति का संचार करता है !
सेवन मात्रा –
250 मिली ग्राम सुबह शाम शहद में मिला कर दूध के साथ लेनी चाहिए !बकरी का दूध सर्वोत्तम है ! चिकित्सक के निर्देशन में ही सेवन करे !
पथ्य – ( योग्य आहार विहार )
पुराना चावल , पुराना गैहू , मुंग की दाल, बकरी का दूध , मक्खन तथा मांसरस आदि ताकत देने वाले भोज्य पदार्थ जो जल्दी से पचने वाले हो ! भोजन रोगी की प्रकर्ति यानि आयु बल काल देश के अनुसार देना चाहिए !
अपथ्य ०(अयोग्य आहार विहार )
बैंगन , राइ का तेल ,करेला , ककड़ी नहीं खाए ! मॉल मूत्र का वेग न रोके !व्यायाम , मैथुन , दिन में सोना , व्यसन !
विशेष – च्यवनप्राश , वसाव्लेह का प्रयोग करे !
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चेतावनी – यहाँ उपलब्ध जानकारी केवल जानकारी के लिए है ! इसके उपयोग से पूर्व आयुर्वेद चिलित्सक की सलाह लेवे ! यहाँ पर उपलब्ध जानकारी किसी भी औषधि का सेवन करने की सलाह नहीं है !
चेतावनी