स्वर्ण प्राशन या सुवर्णप्राशन Swarna Prashan

स्वर्ण प्राशन क्या है ? What is Swarna Prashan-आयुर्वेद (Ayurveda) में सोलह संस्कारों का विधान है जिनमें से एक संस्कार है जात कर्म संस्कार जिसके अंतर्गत स्वर्ण प्राशन Swarna Prashan करवाया जाता है। बच्चे के जन्म के समय किया जाने वाला यह संस्कार आयुर्वेद के ग्रंथों (Ayurved traditional books )अनुसार वैद्यो द्वारा मंत्रोच्चार के साथ स्वर्ण भस्म (gold preparation ) युक्त स्वर्ण प्राशन करवाया जाता था।

प्राचीन शास्त्र अनुसार स्वर्ण प्राशन में गाय के घी (Ghee )मधु यानी कि शहद (honey )तथा स्वर्ण भस्म (gold preparation )के साथ मेधा वर्धक औषधियों का प्रयोग किया जाता था।

इस संस्कार को समय के साथ भुला दिया गया जिससे इसका लाभ आधुनिक पीढ़ी modern generation को नहीं मिल पाया।

21वीं सदी में भी आयुर्वेद (Ayurveda)के कुछ वैद्य ( traditional Ayurvedic physician) है जो इस संस्कार को जीवित रखते हुए । नई पीढ़ी को बेहतर भविष्य बेहतर स्वास्थ्य देने के उद्देश्य से इस संस्कार को पुनः समाज में समाज कल्याण society development के लिए प्रयास कर रहे हैं।

स्वर्णप्राशन के घटक- content of Swarna prashana

स्वर्ण प्राशन में मुख्यतः असमान मात्रा में शहद (honey) तथा गाय के घी (cow ghee)गिर गाय का तथा स्वर्ण भस्म को एक निश्चित अनुपात (ratio) में मिलाकर 6 माह से 16 वर्ष तक के बच्चों को इसका सेवन पुष्य नक्षत्र में आयुर्वेद वैद्य (Ayurvedic physician) द्वारा करवाया जाता है।

स्वर्णप्राशन का इतिहास- history of Swarna Prashan

आयुर्वेद के अनुसार सोलह संस्कारों में एक संस्कार जिसका नाम है जातकर्म संस्कार जिसमें नवजात को शहद(honey) घृत (ghee) तथा स्वर्ण भस्म को एक निश्चित अनुपात में राजवैद्य द्वारा राजघरानों में राजकुमारों को करवाया जाता था। ताकि आने वाली पीढ़ी स्वस्थ सुंदर तथा तीव्र बुद्धि के साथ कुशल नेतृत्व वाली बने। स्वर्ण प्राशन का महत्व आज के समय के टीकाकरण (vaccination) से उस समय में जोड़ा जाता है।

उस समय के ऋषि मुनि तथा वैद्य ने एक स्वस्थ कुशल नेतृत्व वाले समाज की कल्पना की ।

और स्वर्ण प्राशन के संस्कार को मनुष्य जीवन में जोड़ा। जो लगभग आज के समय में लुप्त हो गई है।

उस प्राचीन आयुर्वेदिक विधा को कुछ आयुर्वेदिक वैद्य अपने प्रयासों से जीवित करते हुए समाज में कुछ नया देने की कोशिश कर रहे है।

स्वर्णप्राशन का महत्व- importance of Swarna Prashan

कई प्रयोगों में यह साबित हो चुका है कि आयुर्वेदिक औषधियां कई असाध्य रोगों को जड़ मूल से खत्म कर रही हैं। स्वर्ण प्राशन से बच्चों में रोगों से लड़ने की क्षमता बढ़ती है, बौद्धिक विकास होता है ,शारीरिक विकास होता है!

तथा साथ ही साथ पाचन शक्ति (digestive power) और बल को बढ़ाता है।

स्वर्ण प्राशन का महत्व आज से हजारों साल पूर्व प्राचीन वेदों में बताया गया है कि यह बच्चों में ओजस्विता निरोगी तथा बौद्धिक क्षमता को बढ़ाता है।

प्राचीन ऋषि-मुनियों के द्वारा इस विधा का कल्पित किया गया तथा नवजात शिशु तथा बच्चों में इसके प्रयोग से गौरवशाली भविष्य तथा एक अच्छे राष्ट्र के निर्माण की कल्पना को ध्यान में रखते हुए। दिया गया जो कि 16 संस्कारों में से एक है।

आज के समय में दौड़ भाग के समय में बच्चों में पोषण की कमी

( malnutrition )तथा केमिकल युक्त पदार्थों (chemical food product), के सेवन तथा जीवन शैली( Lifestyle changes )के बदलाव के कारण

बच्चों में भूलने की बीमारी आंखों की रोशनी कुपोषण तथा अनेक स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।

अज्ञानता अंधविश्वास तथा पोषण की कमी से कई सुदूर क्षेत्रों में बच्चों के भविष्य पर प्रश्न चिह्न लगा हुआ है।

ऐसे समय में अगर सुवर्णप्राशन के माध्यम से बच्चों के बौद्धिक विकास मानसिक विकास तथा उनकी भविष्य के लिए स्वास्थ्य की रक्षा को देखते हुए। इस विधा को पुनर्जीवित करने में सहयोग की जरूरत है ।

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स्वर्ण प्राशन बनाने की विधि

डॉ शोभालाल औदीच्य के अनुसार घटक द्रव्य का अनुपात शहद 2 किलो (ऑर्गेनिक इंडिया ) घी 1 किलो (गीर गाय का ) स्वर्ण भस्म 3 ग्राम को स्वच्छता को ध्यान में रखकर किसी पात्र में तब तक मिलाये जब तक एक सार ना हो जाए ।विशेष परिस्थितियों में ब्राह्मी घृत , कंटकारी घृत , अश्वगंधा घृत , शतावरी घृत का प्रयोग स्वर्ण प्राशन में किया जाता है

स्वर्ण प्राशन सेवन मात्रा

0 -8 वर्ष तक 2 बुन्द

9 से 16 वर्ष 4 बूंद

स्वर्णप्राशन की फायदे-( benefits of Swarna Prashan)

  • बच्चों में रोग प्रतिरोधक क्षमता( improve immunity) की वृद्धि होती है ।
  • जिससे सामान्य मौसम में होने वाले रोगों से लड़ने की ताकत बढती है।
  • बच्चों में स्मरण शक्ति का विकास होता है।
  • बच्चों में शारीरिक व मानसिक विकास होता है।
  • पाचन शक्ति को बढ़ाता है तथा शारीरिक बल में वृद्धि होती है।
  • जीर्ण प्रतिश्याय (Allergy)

पुष्य नक्षत्र (Pushya Nakshatra) में स्वर्ण प्राशन करवाने का महत्व-( why do in Pushya Nakshatra)

ऐसा माना जाता है कि पुष्य नक्षत्र (Pushya Nakshatra) पोषण (nutrition) करने वाला ऊर्जा (energy )और शक्ति (power) को बढ़ाने वाला

तथा संरक्षण संवर्धन और समृद्धि का शुभ दिन होता है

इसलिए इस दिन किए गए कार्यों के प्रति फल अच्छे होते हैं।

शतावरी – माताओं में दुग्ध वर्धक पुरुषों में पुरुषार्थ वर्धक

स्वर्ण प्राशन में सावधानियां- ( be careful)

  • किसी भी प्रकार के बीमार( illness or sickness )बच्चे को स्वर्ण प्राशन ना करवाएं।
  • स्वर्ण प्राशन करवाने के आधे घंटे पूर्व (you not give a table product before half hour)
  • आधे घंटे पश्चात किसी भी तरह का भोजन नहीं करवाना चाहिए।
  • स्वर्ण प्राशन का प्रयोग प्रशिक्षित पंजीकृत वैध के द्वारा ही करवाए।
  • बच्चों में इसकी निश्चित मात्रा दो से चार बूंद तक ही सेवन करवाएं।
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