हरश्रृंगार के औषधीय गुण-सफेद रंग के गोल-गोल फूलों की महक नारंगी रंग की जिसमें डंडी हो । और सुबह सुबह फुल उस पेड़ के नीच बिछे हुए हो तो समझ लेना हरसिंगार का पेड़ है । हरसिंगार का पेड़ ज्यादा बड़ा नहीं होता है ना ही ज्यादा छोटा होता है । इस पेड़ की औसत ऊंचाई 10 से 15 फुट होती है । घाना या कम घाना ह सकता है ।लेकिन कभी-कभी यह भारत की कई क्षेत्रों में 25 से 30 फुट ऊंचाई वाला भी हो सकता है । इसकी विशेषता यह है की रात में फूल खिलते हैं । और सुबह में सफेद नारंगी रंग की खूबसूरत फुल महकते जमीन पर गिर जाते हैं ।
आयुर्वेद के ग्रंथों में इसका वर्णन मिलता है । यह एक दिव्य वृक्ष है जो पौराणिक ग्रंथो के अनुसार स्वर्ग से आया हुआ है । भगवन विष्णु और माँ दुर्गा का प्रिय वृक्ष है ।कई बीमारियों को दूर करने में काम आता है । इसके पत्ते हरे रंग के ऊपर से कर्कश खर होते हैं । जब हरसिंगार के पत्तों पर आप हाथ लगाते हैं तो आप तो इसे महसूस करेंगे । पत्ते 3 से 6 इंच के लंबे तथा 2 से 3 इंच चौड़ाई वाले लट् वाकार होते हैं । शरद ऋतु में इसके फूल खिलते हैं । हेमंत ऋतु में फल लगते हैं । और हर वर्ष अप्रैल और मई माह में इसकी पत्तियां गिर जाती है ।
हरसिंगार के औषधीय गुण उपयोग के लिए हरसिंगार के पत्ते, हरसिंगार की छाल, हरसिंगार की फूल, हरसिंगार की जड़ का प्रयोग किया जाता है । अलग-अलग भाषाओं में इसे अलग अलग नाम से जानते हैं । आइए जानते हैं उन भाषाओं के बारे में
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हरसिंगार के नाम-
अंग्रेजी में- नाइट जैसमिन, कोरल जैसमिन
संस्कृत में- परिजात, शेफालीका
हिंदी में- हरसिंगार, परजात
गुजराती भाषा में- हरशणगार
बंगाली में- शेफालिका, शिउली
मलयालम में- पारिजात
लेटिन भाषा में- Nyctanthes arbor -tristis linn.
आयुर्वेद के अनुसार हरसिंगार के औषधीय गुण-
यह लघु, रुक्ष, तिक्त रस , कटु , उष्ण वीर्य होता है ।
हरसिंगार के उपयोग-
वात एवं कफ रोगो में –
- वात दोष के कारण शरीर में उत्पन्न होने वाली वेदना, जोड़ों का दर्द, साइटिका कमर दर्द, नाडीयो का एवं तंत्रिकाओं का दर्द, शरीर में होने वाली जकड़न वात से संबंधित सभी रोगों में उपयोग किया जाता है । साथ ही साथ स्वसन तंत्र के रोग जैसे दमा , खांसी जैसे रोग के लिए भी उपयोग किया जाता है ।
सेवन करने का तरीका- वात रोग एवं नाड़ी रोग में- हरसिंगार की पत्तियों का रस 5 से 10 एमएम सुबह शाम भोजन के पश्चात चिकित्सक की देखरेख में करें ।
खांसी तथा दमा रोग में
हरसिंगार की पत्तियों एवं छाल के पाउडर को पान के पत्तों के रस में मिलाकर सेवन करें ।
जोड़ों का दर्द में –
घुटनों एवं हड्डियों की संधियों में होने वाला दर्द हो अथवा वृद्धावस्था में मांसपेशियों की कमजोरी से होने वाला दर्द हो वात दोष के बढ़ जाने से होने वाला दर्द हो सभी में हरसिंगार की औषधीय गुणों से भरपूर होने के कारण प्रयोग कराया जाता है । वात दोष का शमन करता है ।
सेवन करने का तरीका- 4 से 5 पत्तों को खरल में पिस कर 10 मिलीलीटर की मात्रा का सेवन करवाना चाहिए । अथवा साइटिका तथा घुटनों के दर्द में रोजाना दिन में 2 बार सेवन करवाएं ।
साइटिका रोग में –
यह रोग जिसे होता है । वह रोगी इस दर्द की पीड़ा समझ सकता है । साइटिका एक नाडी है । जो कमर की L4 L5 S1 कशेरुकाओं से निकलती है ।
जब रीढ़ की हड्डी में किसी प्रकार की डिसलोकेशन होती है तब यह दर्द कमर से होता हुआ एड़ी तक जाता है । इस रोग में भयंकर खिंचाव के साथ दर्द उठता है । जिससे रोगी को उठने चलने फिरने तथा नीचे झुकने में अधिक दर्द महसूस होता है । इस रोग के लिए हरसिंगार उत्तम औषधि है ।
सेवन करने का तरीका- 4 से 5 पत्ते बारीक बारीक पीसने के बाद निकले हुए रस का 5 से 10 एमएम की मात्रा भोजन के पश्चात में सेवन करें । अथवा 5 से 10 पत्तों को दो गिलास पानी में उबालकर एक कप रहने पर छानकर पिए ।
बुखार में-
हरसिंगार वात रोगों के साथ-साथ उत्तम ज्वरघ्न भी है । पुराने से पुराना बुखार हो डेंगू, चिकनगुनिया, मलेरिया सभी बुखारो में इसका प्रयोग कराया जाता है ।
महिलाओं में प्रदर रोग में-
श्वेत प्रदर में इसका प्रयोग करना लाभदायक होता है ।
अर्श रोग में(मस्से ) –
हरसिंगार के बीजों का पाउडर उपयोग सेवन करवाने के साथ-साथ बीजों का लेप गुदामार्ग पर लगाने से इस रोग से छुटकारा मिलता है ।
रक्त विकार में –
सभी प्रकार की त्वचा रोग प्रयोग करवाया जाता है ।
मूत्र रोगों में-
बार-बार रुक रुक कर आने वाला पेशाब की समस्या में भी इस दिव्य औषधि का सेवन करवाया जाता है ।
बालों के लिए-
जिन महिलाओं तथा पुरुषों के बाल गिरने की समस्या है ।
उसमें हरसिंगार के बीजों को पाउडर बनाकर लेप के रूप में प्रयोग कराया जाता है । खालित्य रोग (बालो का गिरना )में, सिर में होने वाली रूसी में, तथा डैंड्रफ से छुटकारा पाने के लिए प्रयोग कराया जाता है ।
पेट के रोगों के लिए-
पेट के कीड़े, पेट का दर्द, एसिडिटी, के लिए पत्तो का रस या काढ़ा भी प्रयोग कराया जाता है ।
हरसिंगार के प्रयोग किए जाने वाले भाग –
- हरसिंगार की पत्ती- पत्तियों का रस 5 से 10 मिलीलीटर चिकित्सक की देखरेख में सेवन करवाएं ।
- हरसिंगार की छाल- छाल का पाउडर बनाकर 1 से 3 ग्राम की मात्रा का सेवन सुबह-शाम करवाया जा सकता है ।
- हरसिंगार के फूल- फूलों का तेल निकालकर वात रोगों में प्रयोग कराया जाता है ।
- हरसिंगार के बीज – बीजो का पावडर बनाकर लेप के रूप में प्रयोग किया जाता है ।
सावधानी-
गर्भवती महिला एवं बच्चों को चिकित्सक की देखरेख में सेवन करवाएं ।
( विशेष जानकारी- आयुर्वेद में विद्वानों ने यह भी बताया है की बसंत ऋतु में इस के औषधीय गुण किसी भी रोग पर कार्य नहीं करते हैं ।)
चेतावनी- आयुर्वेदिक औषधि का प्रयोग चिकित्सक की देखरेख में करें ।
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