साइटिका की आयुर्वेदिक दवा

साइटिका की आयुर्वेदिक दवा

साइटिका की आयुर्वेदिक दवा-साइटिका एक नर्व है। जब साइटिका नाडी पर किसी प्रकार का दबाव अथवा प्राकृत अवस्था में परिवर्तन होता है। तब यह एक रोग का रूप ले लेता है । आयुर्वेद की भाषा में इस रोग को गृघ्रसी कहा जाता है।

इस रोग का कारण आयुर्वेद में दुष्ट वात को बताया है । शुरुआत में यह कमर में दर्द रहता है। धीरे-धीरे यह दर्द कूल्हे से होते हुए जाँघ से एडी तक जाता है।

रोगी को सुई चुभने जैसी पीड़ा होती है। रात को सोते समय छींक आने पर खांसने पर भी दर्द होता है। दर्द के कारण नींद पूरी नहीं होती है। बादलों जैसी स्थिति होने पर दर्द बढ़ जाता है।

सामान्यतया यह परेशानी एक पैर में होती है। परंतु कभी-कभी यह दोनों पैरों में होने समस्या होने लगती है।

साइटिका (गृघ्रसी )के प्रकार-

  1. वात प्रधान- इसमें दर्द के साथ जकड़न चलने फिरने में और काम करने में दर्द होता है।
  2. वात एवं कफआवृत- इसमें भूख की कमी आलस मुंह में लार बनना पेट का भारी रहना अकड़न और दर्द की शिकायत के साथ ही। सुबह के समय उठने में परेशानी तथा दर्द रहता है।

पांचवी कशेरुका L5 तथा पहली और दूसरी first and second sacral से साइटिका नर्व की शुरुआत होती है। और इस प्रदेश पर दबाव पड़ने से अथवा चोट लगने से साइटिका पेन की शुरुआत होती है।

किसी कारणवश डिस्क का फटना या डिस्क का बाहर आना साइटिका नाडी पर दबाव बनाता है। और दर्द की शुरुआत होती है।

इस दर्द के कई और कारण भी हो सकते हैं। जिसमें हड्डियों की टीबी होना, कैंसर होना, कशेरुका का कमजोर पड़ना, सिकुड़ना अथवा अपनी जगह से खिसकना भी हो सकता है।

साइटिका दर्द में ध्यान रखने वाली बातें।

  1. जब आपको पता चल गया है कि आपको साइटिका का दर्द है तो आपको आगे की तरफ झुककर किए जाने वाले कार्यों को नहीं करना है।
  2. रोजाना कम से कम 5 बार धीरे धीरे भुजंगासन करना है।
  3. भोजन में खट्टे पदार्थों का निषेध करना है। इमली आमचूर अचार दही छाछ का प्रयोग ना करें।
  4. घुड़सवारी, साइकिल, मोटरसाइकिल, बस में अधिक सफर ना करें। सफर आरामदायक होना चाहिए। शरीर को झटके लगने से साइटिका दर्द बढ़ सकता है।
  5. सख्त फर्श पर सोना है। अगर गद्दे पर सोते हैं तो गद्दे दबने वाले ना हो।

साइटिका रोग में आयुर्वेद

  1. लगातार एक महीने तक विश्राम की सलाह दी जाती है।
  2. पंचकर्म चिकित्सा के माध्यम से स्नेहन ( शरीर को बाहरी तथा अभ्यांतर रूप से स्नेहन किया जाता है) !स्वेदन के माध्यम से भाप देकर गाड़ियों को आराम पहुंचाया जाता है।
  3. इसी क्रम में वमन और विरेचन कर्म करवाया जाता है। पंचकर्म किस विधा से शरीर में शोधन किया जाता है।
  4. इसी क्रम में वस्ति कर्म भी करवाया जाता है। यह एक प्रकार का मेडिकेटेड एनिमा होता है। जिसे पंचकर्म प्रक्रिया में अपनाया जाता है। यह भी शरीर के शुद्धिकरण तथा दोषो( वात पित्त कफ )की साम्यावस्था बनाए रखने के लिए किया जाता है।
  5. साइटिका के दर्द ठीक करने में पंचकर्म का मुख्य योगदान होता है।
  6. वात कफआवृत सायटिका दर्द में नमक की पोटली से सेक किया जाता है।
  7. केवल वात के प्रकोप में एरंड बीज की पोटली से चेक किया जाता है।
  8. अधिक दर्द की स्थिति में कोलादि लेप या निर्गुन्डीयादि लेप का प्रयोग किया जाता है।
  9. रक्तमोक्षण भी एक प्रक्रिया है जिसके माध्यम से साइटिका दर्द को दूर किया जाता है।
  10. हरसिंगार के पत्तों का काढ़ा बनाकर पीना भी साइटिका दर्द में अत्यधिक लाभ पहुंचाता है। 4 से 5 पत्तों को कूट पीसकर एक गिलास पानी में आधा रहने तक उबालें और छानकर पी ए। आशातीत लाभ होगा
  11. 20ग्राम लहसुन को पिस कर लुगदी बनाये फिर 80 मिलीलीटर गाय के दूध में 250 मिलीलीटर पानी में उबाले !जब पानी जल जाये केवल दूध ही रहे तब छानकर आराम हने तक रोजाना ! सुबह खली पेट 1 बार कमसे कम पिलाये ! इसी को लहसुन खीर पाक कहते है !

साइटिका की आयुर्वेदिक दवा जो साइटिका रोग में लाभ पहुंचाती है।

वृहत योगराज गुग्गुल,वात गजांकुश रस,समीर पन्नग रस,

लहसुन खीर पाक,महाविषगर्भ तेल का सेक एवं मालिक,

महारास्नादि काढ़ा,सैंधावादी तेल,सिंहनाद गुग्गुल,त्रयोदशांग गुग्गुल,मल सिंदूर,एरण्ड तेल गोमूत्र के साथ!

चेतावनी – इस पोस्ट में दि गई जानकारी चिकित्सा परामर्श नहीं है ! किसी भी आयुर्वेदिक दवा के सेवन से पूर्व आयुर्वेद चिकित्सक की सलाह आवश्यक है !

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