मन कैसा होना चाहिए- आयुर्वेद हजारों वर्षों पहले वर्णित किया गया लिखित ज्ञान है।जो आज भी मनुष्य के जीवन को कल्याणकारी और सुखमय बनाने के लिए उपयोग में लाया जा रहा है।
आज भी मन के प्रकार मन के भेद ,मन की प्रकृति या वही है। जो हजारों वर्षों पूर्व वर्णित किया जा चुका है। आज हम जानेंगे 16 प्रकार की मन की प्रवृतियां और प्रकृति के बारे में
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मन के प्रकार-
सात्विक- मन कैसा होना चाहिए
मन शुद्ध होने के कारण यह दोष रहित होता है। सात्विक मन में कल्याणकारी अंश अधिक होता है।
राजस- मन कैसा होना चाहिए
राजस प्रकृति का मनुष्य जल्दी क्रोधित होता है।क्रोध का अंश अधिक होता है। अतः यह दोष युक्त हो जाता है।
तामस-मन कैसा होना चाहिए
तामस प्रकृति का मनुष्य मोह माया के जंजाल से अधिक जुड़ा हुआ होता है।
अतः इस प्रकृति को भी दोष युक्त माना गया है।
मन की प्रकृति से मनुष्य का शरीर भी जुड़ा हुआ है।जैसी मन की प्रवृत्ति होगी या जैसी मन की प्रकृति होगी वैसा ही गुण मनुष्य के शरीर पर भी पड़ता है।
आयुर्वेद के ग्रंथ चरक संहिता में इसका विस्तृत वर्णन मिलता है।
सोलह मानस प्रकृतियां
शुद्ध सत्त्व के भेद
ब्रह्म सत्व-
जो मनुष्य सत्यवादी पवित्र और सात्विक होता है।
जिस व्यक्ति में योग्य अयोग्य की पहचान हो, ज्ञान विज्ञान का ज्ञाता हो, जिसकी तेज स्मरण शक्ति हो, काम क्रोध लोभ मोह अहंकार ईर्ष्या से दूर हो।
जीव जंतु मनुष्य प्राणी मात्र को समान दृष्टि से देखता हो। सभी के साथ समान व्यवहार करने वाला व्यक्ति ब्रह्म सत्त्व प्रकृति का माना जाता है।
आर्ष सत्व –
इसे ऋषि सत्व भी कहते हैं। जो यज्ञ करता हो काम क्रोध मोह लोभ ईर्ष्या द्वेष की शून्यता हो।
ज्ञान से परिपूर्ण प्रतिभा संपन्न सदाचारी और सत्यवादी ब्रह्मचर्य का पालन करने वाला, अतिथियों की सेवा करने वाला व्यक्ति ऋषि सत्व वाला माना जाता है।
ऐन्द्र सत्व-
धन्य धान्य से परिपूर्ण यज्ञ करने वाला ऋषि मुनियों के अनुसार चलने वाला ।
तेजस्वी शूरवीर बुराइयों से दूर रहने वाला भविष्य की सोच रखने वाला व्यक्ति।
धर्म अर्थ और काम तत्परता से आगे रहने वाला व्यक्ति इंद्र सत्व वाला माना जाता है।
याम्य सत्व-
मर्यादा का पालन करने वाला, तत्परता से कार्य करने वाला,
स्मरण शक्ति से संपन्न, मोह माया अनुराग द्वेष से दूर रहने वाले। यमराज सत्व जाना चाहिए।
वारुण सत्व-
जरूरत पड़ने पर क्रोधित होने वाला और हमेशा प्रसन्न रहने वाला व्यक्ति जल से प्रेम करने वाला।
नौका विहार करने वाला बुरे कार्यों से दूर रहने वाला ।
शूरवीर पवित्र मन वाला और बुरे कार्यों से दूर रहने वाला व्यक्ति वारुण सत्त्व वाला होता है।
कौबेर सत्व-
परिवार संपन्न पोता पोती घर में हो उन से प्रेम करने वाला। जहां पर अहंकार करने की जरूरत पड़े वहां अहंकार अभिमान को दिखाने वाला।
सुख पूर्वक जीवन यापन करने वाला धर्म अर्थ काम के लिए हमेशा आगे रहने वाला क्रोध प्रसन्नता पवित्रता जिसके चेहरे पर प्रकट होती हो ।
ऐसे व्यक्ति को कौबेर सत्व वाला जानना चाहिए।
गांधर्व सत्व-
जिस व्यक्ति को गाना बजाना नाचना श्लोक पाठ करना । कहानियां पुराण का पाठ करना। अच्छा लगता हो पुष्प मालाए चंदन कस्तूरी का लेप करना ।
अच्छा लगता हो स्वच्छ सुंदर वस्त्रों को धारण कर ।
दूसरों की गुणों पर दोष का आरोप न करने वाला व्यक्ति । गांधर्व सत्व गुण वाला जाना चाहिए।
जिस व्यक्ति में लोगों की कल्याण की आज की अधिकता हो शुद्ध मन हो ऐसे कुल सात विभेद चरक संहिता में महर्षि चरक ने बताए हैं।
जिसमें सबसे शुद्धतम ब्रह्म सत्त्व माना गया है।
राजस सत्त्व के भेद
असुर सत्व-
अधिक क्रोधित होने वाला दूसरों के गुणों में दोष देखने वाला । संपत्ति शाली और कपट रखने वाला व्यक्ति असुर सत्य वाला माना जाता है। बात-बात पर उग्र होने वाला जिसमें दया की भावना ना हो स्वार्थी और अपनी पूजा करवाने वाला आसुरी शक्तियों वाला माना जाएगा।
राक्षस सत्व-
क्रोधित रहने वाला। क्रोध की परंपरा को बनाए रखने वाला , धोखा करने वाला, मांसाहार का सेवन करने वाला, क्रूरता पूर्वक भोजन ग्रहण करने वाला मांस मदिरा के साथ जीवन यापन करने वाला अधिक परिश्रमी और अधिक सोने वाला व्यक्ति राक्षस सत्व वाला माना जाता है।
पैशाच सत्व–
स्त्रियों को वश में रखने वाला स्त्री को एकांत में रखने वाला। पवित्रता से दूर रहने वाला । डरपोक दूसरों को डरा धमका कर रखने वाला । मांसाहार और विकृत आहार-विहार का सेवन करने वाला । अधिकआलसी व्यक्ति पैशाच सत्व वाला जाना जाता है।
सर्प सत्व-
बात-बात पर क्रोधित होने वाला । भयभीत व्यक्ति अधिक परिश्रम करने वाला। डर के साथ कार्य करने वाला और सादा भोजन और सामान्य जीवन यापन करने वाला। सर्प सत्व वाला माना जाता है।
प्रेत सत्व-
अत्यंत लोभी और आलसी व्यक्ति जिसे अपने कर्तव्य का ध्यान भी ना रहे।। दूसरे के कार्यों में दोष ढूंढने का कार्य करने वाला। स्वभाव में रुचिता रखने वाला। भोजन की आशा रखने वाला व्यक्ति प्रेत सत्व वाला माना जाता है।
शाकुन सत्व-
हमेशा मैथुन में आसक्त रहने वाला। सामान्य आहार विहार में हमेशा आगे रहने वाला चंचल मन वाला।
किसी से प्रेम भावना रखने वाला और किसी भी वस्तु का संचय ना करने वाला शाकुन सत्व वाला माना जाता है।
इस प्रकार कुल 6 राजस गुण के भेद है।
तामस सत्व के भेद
पशु सत्त्व-
अलसी पूर्ण जीवन बिताने वाला। हमेशा मैथुन में प्रवृत्त रहने वाला व्यक्ति अधिक सोने वाला। विपत्तियों से दूर भागने वाला स्मरण शक्ति की कमी वाला व्यक्ति । और निंदनीय आहार का सेवन करने वाला व्यक्ति पशु सत्व गुण वाला माना जाता है।
मात्स्य सत्त्व-
यह लोग डरपोक किस्म के होते हैं। खाने-पीने के लोभी व्यक्ति हमेशा यात्रा करने वाले । और जल आदि से अत्यधिक प्रेम करने वाले। चंचल काम क्रोध आदि में तल्लीन व्यक्ति को मात्स्य यानी मछली सत्व का जानना चाहिए।
वनस्पतय सत्त्व
जो व्यक्ति आलसी होने के साथ-साथ केवल खाने में ही लगा रहने वाला ।
अभ्यंतर और बाहरी ज्ञान से परे वनस्पतय सत्त्व वाला मानना चाहिए।
इस प्रकार मोह माया के भाग की अधिकता वाले भेद बताए गए हैं।
इस प्रकार मनुष्य के 16 मानस प्रवृतियां देखने को मिलती है।
यह ज्ञान हजारों वर्षों पूर्व ऋषि मुनियों द्वारा वर्णित कर दिया गया था। जो आज के समय में भी यथार्थ के धरातल पर सही सिद्ध होता है!
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