मनुष्य की आयु और समय के अनुसार त्रिदोष कैसे होते है ?वयोsहोरात्रिभुक्तानां तेऽन्तमध्यादिगाः क्रमात् ।संस्कृत में दिए गए श्लोक के अनुसार, वय (आयु ) के अनुसार दिन-रात और भोजन के अंतिम, मध्य और आदि काल में वात, पित्त और कफ तत्वों की गति अलग-अलग होती है। जिसका विवरण इस प्रकार समजते है –
- वृद्धावस्था (अंतिम भाग): वृद्धावस्था का अंतिम भाग वायु के प्रकोप होने का काल है। यानी, दिन का अंतिम भाग २ से ६ बजे तक और रात्रि का अंतिम भाग २ से ६ बजे तक। इस समय वात दोष की गति अधिक होती है।
- युवावस्था (मध्य भाग): युवावस्था का मध्य भाग पित्त के प्रकोप होने का समय है। यानी, दिन का मध्य भाग १० से २ बजे तक और रात्रि का मध्य भाग १० से २ बजे तक। इस समय पित्त दोष की गति अधिक होती है।
- बाल्यावस्था (आदि भाग): बाल्यावस्था का आदि भाग कफ के प्रकोप होने का समय है। यानी, दिन का प्रथम भाग ६ से १० बजे तक और रात्रि का प्रथम भाग ६ से १० बजे तक। इस समय कफ दोष की गति अधिक होती है।
यह उक्त वक्तव्य शरीर के विभिन्न अवस्थाओं में वात, पित्त और कफ की गति का वर्णन करता है। ध्यान दें कि ये बताए गए समय सीमाएँ संयुक्त रूप से दी गई हैं और ये समय संबंधित अवस्थाओं के लिए सामान्य हो सकते हैं।