अगदतंत्र का अर्थ- अगदतन्त्र एक आयुर्वेदिक शाखा है जो महर्षि वाग्भट द्वारा रचित “संग्रह ” और “ह्रदय ” में चरक संहिता एवं सुश्रुत संहिता के अनुसार सार रूप में वर्णित है। इसे दंष्ट्राविष चिकित्सा भी कहा जाता है। अगदतन्त्र में सर्प (जंगम जीवों के सांप) और अन्य स्थावर (स्थिर) विषों के लक्षणों का वर्णन किया जाता है, उनके बारे में विविध प्रकार के मिश्रित विषों (गरविषों) के वर्णन और उनके शांति (शमन) के उपायों की बात की जाती है।
अगदतन्त्र विशेष रूप से सर्प विष और उसके उपचार के प्रश्नों पर ध्यान केंद्रित करता है। यह शाखा विष प्रभाव, लक्षण, उपचार और बचाव के बारे में विस्तृत ज्ञान प्रदान करती है। अगदतन्त्र चिकित्सा में विभिन्न प्रकार के विषों के विषय में अध्ययन किया जाता है और उनके शांति के लिए उपायों का विवरण दिया जाता है।
अगदतन्त्र में विभिन्न औषधियों और प्रक्रियाओं का वर्णन होता है जिनका उपयोग विषाक्त प्रकृति की समस्याओं को दूर करने और उनका उपचार करने के लिए किया जाता है। यह शाखा विभिन्न रोगों और विषाक्त प्रकृतियों के उपचार के लिए रामबाण उपायों की प्राप्ति करने के लिए महत्वपूर्ण ज्ञान प्रदान करती है।
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