छींक रोकने के नुकसान – आयुर्वेद, भारत की प्राचीन चिकित्सा पद्धति, शरीर की प्राकृतिक प्रक्रियाओं और शरीर के तीन मूलभूत दोषों – वात, पित्त, और कफ के संतुलन पर जोर देती है। आयुर्वेद में वेग (नैसर्गिक शारीरिक क्रियाओं) को रोकना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक माना जाता है। छींक आना भी एक ऐसी ही प्राकृतिक प्रक्रिया है जिसे आयुर्वेद के अनुसार नहीं रोकना चाहिए।
छींक रोकने के नुकसान:
- दबाव में वृद्धि: छींक रोकने से नाक, गले, और सिर में दबाव बढ़ सकता है, जिससे सिरदर्द, कान के इंफेक्शन, और यहां तक कि नाक की नलियों में चोट भी लग सकती है।
- इंफेक्शन का खतरा: छींक में शामिल वायरस और बैक्टीरिया शरीर से बाहर नहीं निकल पाते, जिससे संक्रमण के प्रसार का खतरा बढ़ सकता है।
- मानसिक असंतुलन: आयुर्वेद के अनुसार, वेग को रोकने से प्राणवायु का संचार ठीक से नहीं हो पाता, जिससे मानसिक तनाव और असंतुलन हो सकता है।
- आंतरिक चोट: गंभीर मामलों में, छींक रोकने से आंखों, नाक, गले, और यहां तक कि दिल तक में आंतरिक चोट लग सकती है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण:
वैज्ञानिक रूप से भी, छींक रोकना अनुशंसित नहीं है। छींक एक रक्षात्मक मैकेनिज़्म है जो शरीर को धूल, पराग, धुआँ, और संक्रामक एजेंटों से मुक्त करता है। इसे रोकने से शरीर में अवांछित पदार्थों का निर्माण हो सकता है, जिससे अलर्जी और संक्रमण का खतरा बढ़ सकता है।
छींक के समय, हवा 100 मील प्रति घंटे की गति से निकल सकती है, जिससे बड़ी मात्रा में दबाव उत्पन्न होता है। इस दबाव को रोकना कई आंतरिक चोटों का कारण बन सकता है।
अतः, छींक आने पर इसे स्वाभाविक रूप से आने देना और मुंह या नाक को टिश्यू पेपर या रूमाल से ढक कर छींकना स्वास्थ्य के लिहाज से सबसे उचित होता है। इससे संक्रमण के प्रसार को भी रोका जा सकता है।