ऋतुचर्या एवं आहार विहार

ऋतूचर्या

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ऋतुचर्या -शिशिर ऋतु (Peak season)

समय- फरवरी मार्च february march माघ फाल्गुन

आयुर्वेद के अनुसार ऋतुचर्या एवं आहार विहार का अपना महत्व importants है! शिशिर ऋतु में हवा तीखी और रुकी होती है इसलिए इस ऋतु में जैतून का तेल यानी कि (olive oil) तथा सरसों की तेल (mustard oil )की मालिश करने massage के बाद रोजाना bath करना चाहिए।

आयुर्वेद मतानुसार शिशिर ऋतु में ब्रह्म मुहूर्त( early morning ) में उठकर प्राणायाम yogaव्यायाम (exercise) तथा लंबी सैर करनी चाहिए। जो young है उन्हें इस season में सूर्योदय (before rise sun ) से पहले दौड़ने ( running )जाना चाहिए।

इस ऋतु में lait तक खाली पेट रहना, lait night तक जागना दिन में sleep करना healthके लिए हानिकारक है।

चरक संहिता के अनुसार शिशिर ऋतु आदान काल का start होता है इसलिए इस ऋतु (season! )में dryness आ जाता है claud वर्षा और मावठ के कारण शीत का प्रभाव अधिक रहता है।

शिशिर ऋतु में आहार-विहार

इस ऋतु में food habits शीत ऋतु जैसा ही होना चाहिए। क्योंकि शिशिर और हेमंत दोनों ऋतु शीतकाल में ही होती है। इस season में आहार चिकनाई युक्त स्निग्ध मधुर रस वाले hathy products दूध मलाई रबड़ी शहद केला शुद्ध देसी घी भीगे हुए चने बादाम छुहारा मुंगफली सिंघाड़ा पिंड खजूर उड़द की दाल अंजीर केसर शतावरी अश्वगंधा विधारा छिलका रहित कोच बीज मूसली मुलेठी ताल मखाना गोखरू जैसा food और medicine जड़ी बूटियों का प्रयोग करना चाहिए। तिल गुड़ के लड्डू मूंगफली के लड्डू जैसे healthy और बलवर्धक food products का सेवन करना चाहिए।

शिशिर ऋतु में वर्जित भोज्य पदार्थ (don’t eat)

ऋतुचर्या के अनुसार शिशिर ऋतु के दिनों में कड़वे पर और कसैले स्वाद वाले वात को बढ़ाने वाले हल्के और शीतल पदार्थ का सेवन नहीं करना चाहिए।

शिशिर ऋतु मैं वायु रूप और तीखी रहती है इसलिए सरसों के तेल musters oil तथा जैतून के तेल olive oil की massage करनी चाहिए। इसके बाद स्नान करना चाहिए। सूर्योदय से पूर्व yoga प्राणायाम तथा exercise करने चाहिए।

बसंत ऋतु-(Spring season )

समय –

चैत्र वैशाख (अप्रैल मई ) (April may )

रोग होने की सम्भावना-

ऋतुचर्या के अनुसार बुखार fever ,खासी cough ,बदनदर्द body pain , उलटी, जी मिचलाना , भूख की कमी lake of appetite , कब्जी constipation , पेट के कीड़े , उदरशूल , अफरा, बैचेनी जेसी समस्याए होने की सम्भावना रहती है !

पथ्य -(क्या खाना कैसी दिनचर्या ऋतुचर्या रहन सहन )

१ . गैहू , ज्वार, बाजरा, मक्का , पुराना चावल का सेवन अति उत्तम है !

२. मुंग ,अरहर ,चने ,मसूर की दाल का सेवन करे !

३. गाजर ,मुली, बथुआ ,सरसों ,चौलाई ,परवल, मैथी , पालक, धनिया , अदरक का सेवन करे !

४ . सूर्योदय से पहले उठे, योग करे , सुबह की हवा का सेवन करे !

५ .शरीर पर मालिश करे !

६ . शरीर पर चन्दन का लेप करे !

७. वमन ,जल नेति, नस्य ,कुंजल करे !

८ .शहद के साथ हरड का सेवन करे !

९. शरीर पर उबटन , आँखों मे अंजन करे !

(और पढ़े ……आयुर्वेद के अनुसार दिनचर्या )

अपथ्य (क्या नहीं खाना,क्या नहीं करना )

१. नया अन्न , नया धान , गरिष्ठ चिकने वाले देर से digest होने वाले भोजन न करे !

२ .खट्टे मीठे खाध्य पदार्थ , दही आचार आमचूर प्याज , गन्ना , नया गुड, आलू, उड़द ,भेस का दूध का सेवन न करे !

३. दिवास्वप्न (दिन में सोना )अधिक समय तक seting कर किये जाने वाले काम ना करे!

ग्रीष्म ऋतु- (summer season)

समय -ज्येष्ठ आषाढ (जून जुलाई )

रोग होने की संभावना –

लू लगना , बुखार , उलटी दस्त, हैजा , जलन , चेचक ,खसरा , पीलिया , यकृत विकार ,कमजोरी जैसे रोगों के होने की सम्भावना है !

पथ्य (क्या खाना कैसी दिनचर्या ऋतुचर्या रहन सहन )

१. हलके सुपाच्य , मीठे, चिकने वाले खाध्य पदार्थ , चावल, जौ , मुंग , शरबत , निम्बू शिकंजी , आम केरी( कच्चा आम ), संतरा , अनार खरबूजा ,तरबूज,शहतूत ,नारियल पानी , फलो का रस, सत्तू, जलजीरा का उपयोग हितकर है !

२. सूर्योदय से पहले उठे !

३.प्रातः गुनगुने पानी का सेवन करे !

४ . दिन में थोडा आराम करे , पानी का प्रयोग ज्यादा करे, फलो का रस का सेवन करे ,गन्ने के रस का सेवन करे!

५. सुबह टहले , दिन में दो बार नहाये , धुप में निकलने से पहले जल का सेवन करे !

अपथ्य (क्या नहीं खाना,क्या नहीं करना )

१ अधिक धुप में परिश्रम न करे!

२. अधिक व्यायाम , या अभी सहवास ना करे !

३ . प्रदूषित जल अन्न का सेवन न करे ! ६ घंटे पुराना भोजन न ग्रहण करे !

४ . रेशमी या सती वस्त्रो का उपयोग करे!

५. चटपटे , तीखे ,बेसन, मैदे , तेल के बने भोज्य पदार्थो का सेवन न करे !

६.अधिक मात्रा में शराब का सेवन अहितकर है ! (और पढ़े…..मौसमी बीमारियों से बचने के आयुर्पावेदिक उपाय )

वर्षा ऋतु-(rainy season )

समय – श्रावण भाद्रपद (अगस्त सितम्बर )

रोग होने की संभावना –

भूख न लगना , संधिवात जोड़ो का दर्द joint pain ,खुजली iching , फोड़े फुंसी , गठिया (Arthritis) , मलेरिया , डेंगू , आखे आना ,दाद, पेटदर्द , पेट के कीड़े एसे ही कई और रोग होने की संभावना रहती है !

पथ्य (क्या खाना कैसी दिनचर्या रहन सहन )

१. अम्ल ,लवण , स्नेह युक्त भोजन करे !

२ . पुराने चावल , गैहू , जौ का सेवन करे !मांस , घी व् दुग्ध पदार्थो का सेवन करे !

३.बाजरा या मक्के की राबडी का सेवन करे

४. कद्दू,परवल , बथुआ , बेंगन करेला , लोकी ,तरोई , जीरा मैथी, लहसुन का प्रयोग करे !

५. जिस समय उबले हुए जल का ही प्रोग करे ! क्यूंकि जल प्रदूषित होने के कारण बिमारिय होने की सम्भावना ज्यादा होती है !

६. अनाव्य्श्यक भीगने से बचे, अगर भी गए है तो जल्द से जल्द वस्त्र बदल ले !गीली मिटटी में नंगे पैर न चले !बहार से आने पर हाथपैरो को अच्छे से धो कर ही अन्दर आये !

७. मच्छर दानी (mosquito net )का प्रयोग करे ! सुबह शाम अगरादी का धुप करे !

८.सीलन वाले स्थानों पर खाने एवं पहनने की वस्तुए न रखे !

९. लम्बे समय तक उपयोग किये जाने वाले मसाले और खाध्य पदार्थो को कांच की एयर टाईट ढक्कन वाली बोतलों में रखे !

१० . रात को तेल की मालिश करना फायदेमंद है !

अपथ्य (क्या नहीं खाना,क्या नहीं करना )

१. चावल , आलू, अरवी , भिन्डी एवं पचने में भरी भोज्य पदार्थो से परहेज करना चाहिए !

२. बासी भोजन , दही , मांस meat , मछली fish ,अधिक शराब का सेवन हानिकारक है !

३ अधिक परिश्रम करना ,अधिक व्यायाम करना अहितकर है!

४. अज्ञात नदी (river) नाले तालाब में तैरना नहाना नुकसान दायक हो सकता है !

शरद ऋतु- (winter season)

समय – अश्विन कार्तिक (अक्टूम्बर नवम्बर )

रोग होने की सम्भावना

इस समय ऋतुचर्या के अनुसार आयुर्वेद के सिद्धांतो (Principals of Ayurveda) के अनुसार पित्त का प्रकोप होता है वात का शम न होता है !अत उल्टी (vomiting ) दाह (burning ) रक्तविकार (skin problems ) , ज्वर , कब्जी , अफरा ,जुखाम, चक्कर आना, जिन व्यक्तियों की प्रक्रति पेत्तिक होती है उन्हें समस्या ज्यादा होती है !

पथ्य (क्या खाना कैसी दिनचर्या रहन सहन )

१ . हल्का भोजन करे !

२. पेट साफ रखे !

३. मधुर व् शीतल , तिक्त (कडवे निम् करेला ) चावल ,जोव का सेवन करना चाहिए !

४. करेला , मैथी , तुरई परवल ,लोकी ,पलक , मुली , सिंगाड़ा , अंगूर (gripes), टमाटर (tometo), फलो के रस ( juce), सूखे मेवे (dry fruits ), नारियल ( coconut )का सेवन करे !

५. मुन्नक्का, खजूर ,इलायची , घी का प्रयोग करना चाहिए !

६ .त्रिफला चूर्ण , अमलताश का गुदा , छिलके वाली दालो का सेवन करना चाहिए !

७. गुनगुने पानी में निम्बू के रस का सेवन करना चाहिए !

८. रात को सोते समय हरड का सेवन करना चाहिए !

९ . सुबह ठन्डे पानी से स्नान करना चाहिए !तेल की मालिश करे !हलके वस्त्र धारण करे !रत मे चन्द्रमा की किरणों का सेवन करना चाहिए !

१०. उबटन, चन्दनं का लेप करे !मुल्तानी मिटटी का लेप करे!

अपथ्य (क्या नहीं खाना,क्या नहीं करना )

१ .तले हुए भोज्य पदार्थ , मेदे से बने हुए पदार्थ , तीखा गरम मसालेदार खाध्य पदार्थ का उपयोग न करे !

२ .दही मछली का प्रयोग साथ में न करे !

३.अमरूद का सेवन खली पेट नहीं करना चाहिए !

४ .कंद शाक ,घी ,मूंगफली, भुट्टे ,कच्ची ककड़ी , दही आदि का उपयोग कम करे!

५. दिन में न सोये !

हेमंत ऋतु

समय – मार्गशीष , पौष (दिसंबर जनवरी)

रोग होने की सम्भावना –

वात रोग, वात श्लेष्मिक रोग ,लाखवा , दम ,पावो में विदारिकाए आना !

पथ्य (क्या खाना कैसी दिनचर्या ऋतुचर्या रहन सहन )

१.शरीर के शोधन के वामन व् कुंजल आदि करे !

२. स्निग्ध मधुर , गुरु , लवण युक्त भोजन करे !

३. मेथी के लड्डू , च्यवनप्राश ,नए चावल का सेवन लाभदायक !

४. तेल मालिश , उबटन , गुनगुना पानी से नहाना , ऊनी कपड़ो को पहने ,सर , कण ,नक्, पैर के तलवो पर मालिश करे !

५. गर्म और गहरे रंग के कपडे पहने !

६. आग तापे, धुप सेके !

७.हाथ पैर धोने में गुनगुने पानी का प्रयोग करे ! टोपी दस्ताने , मफलर , स्कार्फ का उपयोग करे !

अपथ्य (क्या नहीं खाना,क्या नहीं करना )

१. ठन्डे , वात बढ़ने वाले पदार्थो का सेवन न करे !

२. दिन में सोने से बचे !हवादार स्थान में रहे ! ठंडी हवा में बहार न रहे !

३. खुले पाव न घुमे ! सफ़ेद वस्त्र न पहने !

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