ऑटोफैगी और उपवास | Autophagy Benefits in Hindi | जानें 72 घंटे के उपवास के चमत्कारी फायदे

Autophagy ऑटोफैगी

Autophagy ऑटोफैगी भूलोक में हम सब यात्री ही हैं—कुछ समय के लिए यहाँ ठहरे हुए, फिर आगे बढ़ जाने वाले। इसी सफ़र में हम अक़्सर अपने शरीर के साथ ऐसा व्यवहार कर जाते हैं मानो यह हमेशा के लिए रहने वाला हो। परंतु शरीर को स्वस्थ रखना भी उतना ही ज़रूरी है जितना कि आत्मिक व मानसिक स्तर पर आगे बढ़ना। आजकल एक शब्द काफ़ी चर्चा में है—“ऑटोफैगी” (Autophagy)। इसे 2016 में नोबेल पुरस्कार पाने वाले जापानी वैज्ञानिक “योशिनोरी ओसुमी” ने अपनी शोध में विस्तार से समझाया। परंतु हमारी भारतीय परंपरा में तो उपवास की प्राचीन विधियाँ हज़ारों वर्षों से चली आ रही हैं, जिनसे ऑटोफैगी की प्रक्रिया स्वाभाविक रूप से प्रोत्साहित होती है।

क्या है Autophagy ऑटोफैगी ?

Autophagy ऑटोफैगी दो शब्दों से मिलकर बना है—‘ऑटो’ यानी स्वयं, और ‘फैगी’ यानी खाना। इसे सरल भाषा में समझें, तो यह वह जैविक प्रक्रिया है जिसमें हमारी स्वस्थ कोशिकाएँ शरीर के भीतर संचित बेकार या क्षतिग्रस्त कोशिकाओं को “खा” जाती हैं—उन्हें तोड़कर नष्ट कर देती हैं। यह शरीर का एक प्राकृतिक डिटॉक्स (विषहरण) तंत्र है, जो शरीर में अनचाही कोशिकाओं के बढ़ने पर रोक लगाने में मदद कर सकता है।

उपवास और प्राचीन भारतीय दर्शन

भारतीय ऋषि-मुनि उपवास को केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं मानते थे, बल्कि इसे शरीर की सफ़ाई एवं मानसिक एकाग्रता का साधन समझते थे। एकादशी, प्रदोष, पूर्णिमा, अमावस्या, या नवरात्र जैसे पर्व-उत्सवों में उपवास रखने की परंपरा केवल आध्यात्मिक ही नहीं, स्वास्थ्य के नज़रिये से भी बहुत महत्वपूर्ण रही है।

  • शारीरिक लाभ: शरीर को आराम मिलता है, पाचनतंत्र को अवकाश मिलता है और ऑटोफैगी की प्रक्रिया को प्रोत्साहन मिलता है।
  • मानसिक लाभ: उपवास के दौरान मन ज़्यादा शांत और केंद्रित हो सकता है। ध्यान एवं प्रार्थना के लिए यह समय बहुत अनुकूल माना गया है।
  • आध्यात्मिक पहलू: “यत् ब्रह्माण्डे तत् पिण्डे”—जैसी प्रक्रिया ब्रह्माण्ड में घट रही है, वही हमारे शरीर में भी होती है। पूर्णिमा-अमावस्या के आसपास ज्वार-भाटा की तरह हमारे शरीर में भी तरल तत्व प्रभावित होते हैं। इन दिनों उपवास करने से शरीर के तरंगों पर अच्छा प्रभाव पड़ता है।

उपवास के दौरान क्या करें?

  1. पानी का भरपूर सेवन: सूखा उपवास (बिना पानी) बहुत कठोर माना जाता है। यदि डॉक्टर या वैद्य ने स्पष्ट रूप से सलाह न दी हो, तो सामान्यतः केवल पानी, नींबू-पानी, या सादे शुद्ध पेय ही लिए जा सकते हैं।
  2. आराम और हल्का व्यायाम: उपवास के समय शरीर को भारी वर्कआउट से बचाएँ। योग, हल्की सैर, प्राणायाम इत्यादि कर सकते हैं।
  3. उपवास की अवधि:
    • शुरुआत 12-15 घंटे के छोटे उपवास से कर सकते हैं (रातभर का अंतराल भी इसमें जुड़ सकता है)।
    • धीरे-धीरे 24 घंटे या 36 घंटे तक बढ़ा सकते हैं।
    • कुछ लोग अपने स्वास्थ्य व सहनशक्ति के अनुसार 72 घंटे तक भी करते हैं। हालाँकि, इतने लंबे उपवास से पहले विशेषज्ञ से सलाह लेना आवश्यक है।
  4. सही तरीक़े से तोड़ें: जब उपवास तोड़ें तो भारी या तला-भुना खाना न लें। फल, सूप, हल्की सब्ज़ियाँ या दलिया जैसे सुपाच्य आहार से शुरुआत करें।

क्या उपवास से कैंसर या अन्य बीमारियों का इलाज संभव है?

Autophagy ऑटोफैगी की प्रक्रिया शरीर के क्षतिग्रस्त या अनियंत्रित कोशिकाओं को साफ़ करने में सहायक हो सकती है, जो theoretically कई गंभीर बीमारियों के ख़तरे को कम करने में मददगार है। हालांकि, यह समझना ज़रूरी है कि किसी भी गंभीर बीमारी—चाहे वह कैंसर हो या कोई अन्य—का समग्र और वैधानिक इलाज डॉक्टर की देखरेख में ही होना चाहिए।

  • उपवास, प्राकृतिक चिकित्सा, और संतुलित जीवन-शैली पूरक (complementary) उपाय हैं, प्रतिस्थापन (replacement) नहीं।
  • कैंसर जैसी बीमारियों के लिए आधुनिक चिकित्सा के साथ-साथ एक संतुलित जीवन-शैली, पौष्टिक भोजन, समय-समय पर चेकअप, और चिकित्सकीय परामर्श अत्यंत आवश्यक हैं।

पुराने ज़माने की छुट्टियाँ और व्रत

भारतीय समाज में पूर्णिमा और अमावस्या को उपवास करने की प्रचलित परंपरा थी। इन दिनों भक्ति, साधना व डिटॉक्स (विषहरण) प्रक्रिया पर ज़्यादा जोर दिया जाता था। प्राचीन काल में कई जगह ये दिन सार्वजनिक अवकाश जैसी महत्ता रखते थे, ताकि लोग आराम कर सकें, ध्यान-उपवास कर सकें और अपने तन-मन को नयी ऊर्जा दे सकें।

भोजन ही रोग की जड़, भोजन ही रोग की दवा

अधिकांश बीमारियाँ अनियंत्रित या असंतुलित खान-पान से जन्म लेती हैं। लेकिन वही भोजन यदि संयमित, पौष्टिक और समझदारी से ग्रहण किया जाए, तो वह औषधि का काम भी कर सकता है। इसीलिए आयुर्वेद कहता है—“वहीं खाओ जो शरीर के लिए उचित हो और उतना ही खाओ जितना शरीर ग्रहण कर सके।”

  • सात्विक भोजन: ताज़ी सब्ज़ियाँ, फल, मोटे अनाज, दालें, बीज व मेवों का संतुलित सेवन।
  • भोजन का समय: सूर्य अस्त होने के तुरंत बाद भारी भोजन न करना, सोने से 2-3 घंटे पहले तक खाना खत्म कर लेना।
  • मिताहार: ज़रूरत से ज़्यादा खाना भी शरीर पर बोझ बनता है।

अंत में

हमारा शरीर एक अनमोल रचना है। इसकी प्राकृतिक उपचार पद्धतियाँ हज़ारों वर्षों से मौजूद रही हैं—उन्हें पहचानने, आज़माने और वैज्ञानिक तौर पर समझने की ज़रूरत है। उपवास या ऑटोफैगी को लेकर जो भी उत्सुकता हो, उसे सिर्फ़ परंपरा के नाम पर न सही, बल्कि आधुनिक विज्ञान की कसौटी पर भी रखकर देखना चाहिए। यदि शरीर अनुमति दे, तब उपवास को अपनी दिनचर्या में शामिल करें और लाभ देखें। बस ध्यान रहे—कोई भी लंबा या सख़्त उपवास शुरू करने से पहले योग्य आहार विशेषज्ञ या डॉक्टर की सलाह अवश्य लें।

याद रखिए, हम सभी इस भूलोक में थोड़ी देर ठहरने के लिए आए हैं। हमारी असल यात्रा लंबी है, जिसका पड़ाव मात्र यह धरती है। अगर हम अपने शरीर और मन—दोनों को संतुलित व स्वस्थ रखने में सफल हुए, तभी हमारी यात्रा सार्थक हो पाएगी।

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