Ayurvedic mental healthआयुर्वेद में मानसिक दोषों का परिचय

Ayurvedic mental healthआयुर्वेद में मानसिक दोषों का परिचय

आयुर्वेद में मानसिक दोषों का परिचय Ayurvedic mental health आयुर्वेद में मानसिक दोषों का परिचय – सत्त्व, रजस्, तमस्आ युर्वेद, भारतीय पुराणिक ग्रंथों का महान धार्मिक और चिकित्सा सिद्धान्तों पर आधारित वैज्ञानिक प्रणाली है। इसके अनुसार, मनोविकारों की व्याख्या और चिकित्सा के लिए आयुर्वेद में “सत्त्व”, “रजस्”, और “तमस्” नामक तीन मानसिक दोषों का परिचय किया गया है। ये तीनों गुण व्यक्ति के मानसिक स्थिति और विकारों को समझने में मदद करते हैं।

रजस्तमश्च मनसो द्वौ च दोषावुदाहृतौ ॥

Ayurvedic mental health
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आयुर्वेद में “सत्त्व” (Sattva), “रजस्” (Rajas), और “तमस्” (Tamas) तीन मानसिक गुणों या दोषों को जिन्हें गुणों के त्रिगुणात्मक सिद्धांत के अंतर्गत वर्णित किया गया है। ये तीन गुण संसार में सभी चीजों के मूल घटक हैं और मनुष्य के व्यवहार और स्वभाव को प्रभावित करते हैं। ये गुण व्यक्ति के मानसिक स्तर, व्यवहार, विचार, और भावनाओं पर प्रभाव डालते हैं।

आयुर्वेद के अनुसार, व्यक्ति में ये तीन गुण बालंस और अनुकूलता के साथ होने चाहिए। सत्त्व गुण को बढ़ाने के लिए सत्ववृद्धि उपाय का उपयोग किया जाता है, जबकि रजस और तमस गुणों को कम करने के लिए उन्हें संतुलित आहार, ध्यान, योग, और प्राणायाम के माध्यम से नियंत्रित किया जा सकता है। योग, ध्यान, और प्राणायाम से मानसिक दोषों को संतुलित करके मानसिक शांति और समरसता को प्राप्त किया जा सकता है।

यह ध्यान देने योग्य है कि इस जानकारी का उपयोग किसी भी समस्या के निदान या इलाज के रूप में नहीं करना चाहिए। आयुर्वेदिक उपाय अनुसरण करने से पहले, आपको अपने लोकल प्राकृतिक वैद्य से परामर्श लेना चाहिए।

सत्त्व: Ayurvedic mental health

सत्त्व गुण मानसिक शुद्धता, स्थिरता, ज्ञान, ज्ञान-विज्ञान, धैर्य, स्मृति, संतुष्टि, ध्यान और सात्विक भावों का प्रतीक है। यह गुण आध्यात्मिक और मानसिक आरोग्य को बढ़ाता है और मानसिक विकारों के निदान और उपचार में मदद करता है।

रजस्: Ayurvedic mental health

रजस् गुण मानसिक आक्रांति, आसक्ति, राग, अभिमान, आत्महिंसा, चिंता, अविश्रान्ति और अन्य राजसिक भावों का प्रतीक है। यह गुण मानसिक विकारों का कारण बन सकता है और मनोविकारों के निदान और उपचार में आयुर्वेद में ध्यान दिया जाता है।

तमस्: Ayurvedic mental health

तमस् गुण मानसिक अज्ञान, अस्थिरता, अविचलितता, भय, आलस्य, निद्रा, आलस्य और तामसिक भावों का प्रतीक है। यह गुण मानसिक विकारों का कारण हो सकता है और मनोविकारों के निदान और उपचार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

इन तीनों गुणों का संतुलन मानसिक स्वास्थ्य और विकारों के विकास में महत्वपूर्ण है। आयुर्वेद में मानसिक रोगों के उपचार में इन गुणों के संतुलन को साधना किया जाता है। व्यक्ति के सत्त्व गुण को बढ़ाने के लिए, आयुर्वेद ध्यान, धारणा, प्राणायाम, आहार और विचारों पर ध्यान केंद्रित करता है। रजस् और तमस् गुण को संतुष्ट करने के लिए आयुर्वेद मानसिक शांति, निद्रा, प्रकृति संपर्क, उपयुक्त व्यायाम और प्राकृतिक चिकित्सा के तत्वों का उपयोग करता है।Ayurvedic mental health

आयुर्वेद में रजस् और तमस् के विषय में अधिक विवरण करते हुए, आचार्य चरक ने कहा है, “नियतस्त्वनुबन्धो रजस्तमसोः परस्परं, न ह्यरजस्कं तमः प्रवर्तते” अर्थात् काम आदि मानसिक रोगों और शरीर संबंधी रोगों का कदाचित् परस्पर अनुबंध हो जाता है, परन्तु रजस् और तमस् का परस्पर अनुबंध होना निश्चित ही है, क्योंकि तमस् रजस् के बिना प्रवृत्त ही नहीं होता। ये दोनों कभी भी एक-दूसरे का साथ नहीं छोड़ते और सत्त्व गुण सर्वथा निर्विकार है। अतः वह सत्त्वगुण मानसिक आरोग्य को देने में कारण है।Ayurvedic mental health

इस प्रकार, आयुर्वेद में मानसिक दोषों के तीनों गुणों का महत्वपूर्ण स्थान है। इन गुणों के संतुलन को बनाए रखने के लिए आयुर्वेद विभिन्न चिकित्सा पद्धतियों का उपयोग करता है, जिनमें आहार, व्यायाम, ध्यान, आसन, प्राणायाम और प्राकृतिक उपचार शामिल हैं। इस प्रकार, आयुर्वेद मानसिक स्वास्थ्य को प्रोत्साहित करता है और मानसिक विकारों के उपचार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।Ayurvedic mental health

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