आयुर्वेद में पर्पटी – आयुर्वेद, जो हजारों वर्षों से भारतीय चिकित्सा पद्धति का अभिन्न अंग रहा है, में विभिन्न प्रकार की औषधियाँ उपलब्ध हैं। उनमें से एक महत्वपूर्ण वर्ग “पर्पटी कल्प” के रूप में जाना जाता है। पर्पटी आयुर्वेद में एक विशेष प्रकार की खनिज औषधि है, जो विभिन्न धातुओं और खनिजों से तैयार की जाती है और इसका मुख्य उपयोग पाचन तंत्र से जुड़े विकारों, यकृत (लीवर) रोगों और आमजनित विकारों के उपचार में किया जाता है।
इस लेख में हम पर्पटी की परिभाषा, निर्माण विधि, विभिन्न प्रकार और उनके उपयोगों पर विस्तार से चर्चा करेंगे।
Table of Contents
पर्पटी क्या है?
आयुर्वेद में “पर्पटी” एक विशेष औषधि वर्ग है, जिसमें मुख्य रूप से पारद (Mercury) और गंधक (Sulfur) के संयोजन से तैयार की गई भस्में होती हैं। इसे एक विशेष प्रक्रिया द्वारा तैयार किया जाता है, जिससे यह शरीर में शीघ्रता से अवशोषित होती है और प्रभावी रूप से कार्य करती है।
मुख्य विशेषताएँ:
- पाचन क्रिया को सुधारती है।
- लीवर और आंतों पर विशेष प्रभाव डालती है।
- शरीर में वात-पित्त-कफ दोषों को संतुलित करने में सहायक होती है।
- यह आमतौर पर पेट संबंधी रोगों, दस्त, पेट में गैस, एसिडिटी और पुरानी पाचन समस्याओं के उपचार में उपयोग की जाती है।
पर्पटी कैसे बनाई जाती है?
पर्पटी का निर्माण एक विशिष्ट प्रक्रिया द्वारा किया जाता है, जिसमें विभिन्न धातुओं और खनिजों को शुद्ध करके, विशेष तापमान पर पकाकर और आयुर्वेदिक प्रक्रियाओं के अनुसार संसाधित करके तैयार किया जाता है।
निर्माण विधि:
- भस्मों का शोधन:
- सबसे पहले पारद (Mercury) और गंधक (Sulfur) को शुद्ध किया जाता है।
- इसमें ताम्र (Copper), रजत (Silver), स्वर्ण (Gold) और अन्य धातुओं की भस्मों को भी मिलाया जा सकता है।
- खरल प्रक्रिया:
- सभी भस्मों को एक साथ मिलाकर एक निश्चित समय तक खरल किया जाता है।
- यह प्रक्रिया कम से कम 6 से 12 घंटे तक चलती है।
- गोलियों या परतों में ढालना:
- मिश्रण को तांबे की प्लेट पर डाला जाता है और इसे धीमी आंच पर गर्म किया जाता है।
- ठंडा होने पर यह परत के रूप में तैयार हो जाती है, जिसे पर्पटी कहा जाता है।
- इसे सूक्ष्म मात्रा में तोड़कर प्रयोग में लाया जाता है।
पर्पटी के प्रकार और उनके उपयोग
आयुर्वेद में कई प्रकार की पर्पटी पाई जाती हैं, जिनका उपयोग विभिन्न बीमारियों के उपचार में किया जाता है। नीचे कुछ महत्वपूर्ण पर्पटी और उनके उपयोग दिए गए हैं:
1. पंचामृत पर्पटी
- संघटन: स्वर्ण भस्म, रजत भस्म, ताम्र भस्म, शुद्ध गंधक और शुद्ध पारद।
- लाभ:
- पाचन तंत्र को सुधारती है।
- लीवर की समस्याओं और पीलिया में लाभकारी।
- भूख की कमी, पेट दर्द, दस्त और उल्टी में प्रभावी।
- शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाती है।
2. रस पर्पटी
- संघटन: शुद्ध पारद, शुद्ध गंधक, अभ्रक भस्म।
- लाभ:
- दस्त, आमवात और पुरानी बवासीर में उपयोगी।
- अत्यधिक पित्त स्राव को नियंत्रित करती है।
- शरीर को ऊर्जा प्रदान करती है।
3. सुवर्ण पर्पटी
- संघटन: स्वर्ण भस्म, पारद, गंधक, अभ्रक भस्म।
- लाभ:
- शारीरिक और मानसिक शक्ति को बढ़ाने में सहायक।
- बच्चों और वृद्धजनों के लिए विशेष रूप से उपयोगी।
- गंभीर बीमारियों में शरीर की रक्षा प्रणाली को मजबूत करती है।
4. ताम्र पर्पटी
- संघटन: ताम्र भस्म, गंधक, पारद।
- लाभ:
- यकृत (लीवर) के रोगों में उपयोगी।
- बवासीर और पेट के कीड़ों में प्रभावी।
- शरीर को विषमुक्त (डिटॉक्स) करने में सहायक।
5. गंधक पर्पटी
- संघटन: शुद्ध गंधक, अभ्रक भस्म।
- लाभ:
- त्वचा रोगों में लाभकारी।
- फोड़े-फुंसी, एक्ने और खुजली में उपयोगी।
- रक्त शुद्ध करने में सहायक।
6. अभ्रक पर्पटी
- संघटन: अभ्रक भस्म, पारद, गंधक।
- लाभ:
- अस्थमा, ब्रोंकाइटिस और श्वसन तंत्र से जुड़े रोगों में फायदेमंद।
- स्नायु तंत्र को मजबूत करने में सहायक।
पर्पटी का उपयोग कैसे करें?
पर्पटी का सेवन चिकित्सक की सलाह अनुसार ही करना चाहिए। इसकी खुराक व्यक्ति की आयु, शारीरिक स्थिति और रोग की गंभीरता पर निर्भर करती है।
खुराक:
- आमतौर पर 125 मिलीग्राम से 250 मिलीग्राम तक की खुराक ली जाती है।
- इसे शहद, घी, दूध, या गुनगुने पानी के साथ लिया जाता है।
- सुबह खाली पेट या भोजन के बाद सेवन करने की सलाह दी जाती है।
सावधानियाँ:
- अधिक मात्रा में सेवन करने से शरीर में गर्मी बढ़ सकती है।
- गर्भवती महिलाओं और बच्चों को बिना चिकित्सकीय परामर्श के नहीं देना चाहिए।
- यदि किसी को धातु या भस्म से एलर्जी हो, तो इसका सेवन न करें।
निष्कर्ष
आयुर्वेद में पर्पटी कल्प एक प्रभावशाली औषधि वर्ग है, जो पाचन, यकृत विकार, त्वचा रोग और अन्य शारीरिक समस्याओं के उपचार में उपयोग की जाती है। पंचामृत पर्पटी, रस पर्पटी, सुवर्ण पर्पटी, ताम्र पर्पटी, गंधक पर्पटी और अभ्रक पर्पटी जैसे विभिन्न प्रकार की पर्पटी विभिन्न रोगों में लाभकारी होती हैं।
हालाँकि, इनका सेवन आयुर्वेद विशेषज्ञ की सलाह के अनुसार ही किया जाना चाहिए, ताकि यह शरीर को अधिकतम लाभ पहुँचा सके और किसी भी प्रकार के दुष्प्रभाव से बचा जा सके।
“आयुर्वेद अपनाएँ, स्वस्थ जीवन जीएँ!”
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