सारिवादि वटी – कान के रोगों का आयुर्वेदिक उपचार

सारिवादि वटी

सारिवादि वटी का परिचय

सारिवादि वटी सारिवा अर्थात अनंतमूल से बनायी जाती हैं। यह वटी मुख्य रूप से कान के सभी रोगों को दूर करने के लिए प्रयोग की जाती है। कान का बहना, कान का गूंजना, कम सुनना, और अन्य कई समस्याओं पर इसका प्रभावशाली रूप से काम किया जाता है।

सारिवादि वटी के घटक द्रव्य

  • सारिवा (अनंतमूल)
  • मुलेठी
  • कूठ
  • दालचीनी
  • तेजपत्र
  • इलायची
  • नागकेसर
  • प्रियंगु
  • कमल के फूल
  • गिलोय
  • लोंग
  • हरड
  • आंवला
  • बहेड़ा
  • अभ्रक भस्म
  • लोह भस्म
  • भांगरे का रस
  • श्वेत अर्जुन की छाल का क्वाथ
  • जावके क्वाथ
  • माकोय के रस
  • गुन्जामूल का क्वाथ

सारिवादि वटी बनाने की विधि

सारी औषधियों का चूर्ण बनाएं। इसमें सभी भस्मे डालें। फिर बताए गए रस और क्वाथ में मिश्रण को भावना देकर गोलियां बनाएं और सूखा दें।

सारिवादि वटी के फायदे और उपयोग

  1. कान के रोगों को खत्म करें: सभी प्रकार के कान संबंधी रोगों में लाभप्रद।
  2. रक्तपित्त की समस्या को दूर करें: रक्तपित्त को शांत करने में मददगार।
  3. टी.बी. रोग में लाभदायक: खांसी और म्यूकस के साथ टी.बी. के इलाज में सहायक।
  4. जीर्णज्वर को दूर करें: पुराने बुखार को ठीक करने में सहायक।
  5. नपुसंकता को दूर करें: नपुसंकता को समाप्त करने में मददगार।
  6. मिर्गी रोग को समाप्त करें: मिर्गी रोग को कम करने में सहायक।
  7. मदात्यय रोग में लाभदायक: जी मचलना और भूख कम लगने की समस्याओं में लाभप्रद।

सेवन का प्रकार और मात्रा

1-1 गोली दिन में दो बार। धारोष्ण दूध, चन्दन के अर्क या शतावरी के क्वाथ के साथ लेना चाहिए।

सारिवादि वटी का सेवन करते समय ध्यान देने योग्य सावधानियाँ

  • गर्भवती महिलाओं को नहीं लेना चाहिए।
  • चिकित्सक की सलाह के बिना नहीं लेना चाहिए।
  • अन्य रोगों के इलाज के साथ संयुक्त रूप से
  • लेने से पहले चिकित्सक की सलाह लेनी चाहिए।

इन्हें लेने से पहले अवश्य चिकित्सक की सलाह लें।

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