वातरक्त (गठिया रोग) : कारण, लक्षण और आयुर्वेदिक उपचार

वातरक्त (गठिया रोग)

वातरक्त (गठिया रोग) : कारण, लक्षण और आयुर्वेदिक उपचार – आयुर्वेद में रोगों को शरीर के दोषों (वात, पित्त, कफ) के असंतुलन से उत्पन्न माना गया है। “वातरक्त” एक प्रमुख वातज विकार है, जिसे आधुनिक चिकित्सा में गाउट (Gout) के नाम से जाना जाता है। यह रोग मुख्यतः वात और रक्त के विकृति से उत्पन्न होता है। अष्टांग संग्रह में वातरक्त को विस्तार से वर्णित किया गया है।


वातरक्त क्या है?

वातरक्त शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है – वात और रक्त

  • वात: शरीर में वायु का तत्व, जो गति, संचरण और शारीरिक क्रियाओं को नियंत्रित करता है।
  • रक्त: जीवनदायी धातु जो शरीर के ऊतकों को पोषण और ऊर्जा प्रदान करता है।

जब वात दोष और रक्त आपस में मिलकर दूषित हो जाते हैं, तो यह स्थिति “वातरक्त” कहलाती है।


वातरक्त कैसे होता है?

वातरक्त का प्रमुख कारण वात और रक्त का दूषित होना है। यह दूषण शरीर में विभिन्न कारणों से हो सकता है, जैसे:

  1. अत्यधिक आहार-विहार
    • अधिक मांसाहार, खट्टा, नमकीन, गरिष्ठ और तैलीय भोजन।
    • मदिरा और धूम्रपान।
    • रात को जागना और अनियमित दिनचर्या।
  2. आसन और व्यायाम की कमी
    • अधिक समय तक बैठे रहना या निष्क्रिय जीवनशैली।
  3. मानसिक कारण
    • अत्यधिक तनाव, चिंता और क्रोध।
  4. प्राकृतिक वेगों का दमन
    • मल, मूत्र, या प्यास जैसे प्राकृतिक वेगों को रोकना।
  5. आनुवंशिक कारण
    • गाउट या वातरक्त के मामले परिवार में होना।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण

  • आधुनिक चिकित्सा में वातरक्त (गाउट) शरीर में यूरिक एसिड के अत्यधिक मात्रा में जमा होने से होता है।
  • यह जमा हुआ यूरिक एसिड शरीर के जोड़ों में क्रिस्टल के रूप में जमने लगता है, जिससे दर्द और सूजन होती है।
  • विशेष रूप से पैरों के अंगूठे, घुटनों और कलाई के जोड़ों पर इसका असर अधिक होता है।

वातरक्त के लक्षण (अष्टांग संग्रह के अनुसार)

  1. प्रारंभिक लक्षण:
    • त्वचा का लाल होना।
    • जोड़ों में सूजन और दर्द।
    • जोड़ों का गर्म महसूस होना।
  2. उन्नत लक्षण:
    • चलने-फिरने में कठिनाई।
    • तीव्र दर्द जो रात में बढ़ता है।
    • त्वचा का रूखापन और संवेदनशीलता।

वातरक्त का उपचार (अष्टांग संग्रह के अनुसार)

1. आहार (Diet)

  • सेवन करें:
    • हल्का और सुपाच्य भोजन (जैसे मूंग की दाल, खिचड़ी)।
    • गिलोय, तुलसी और हल्दी जैसे औषधीय पौधे।
    • फलों में पपीता, अनार और नारियल।
    • जड़ी-बूटियों से बना पानी (जैसे जीरा, सौंफ का पानी)।
  • त्याग करें:
    • मांसाहार, खट्टे पदार्थ, मसालेदार भोजन।
    • मदिरा और अधिक नमक।

2. औषधि (Medicines)

  • त्रिफला चूर्ण: शरीर को शुद्ध करने के लिए।
  • गुडुची सत्व (गिलोय): सूजन और दर्द को कम करने में सहायक।
  • मंजिष्ठा: रक्त को शुद्ध करने के लिए।
  • योगराज गुग्गुल: वात और जोड़ों के विकार के लिए।
  • पंचतिक्त घृत: वात दोष को संतुलित करने के लिए।

3. पंचकर्म (Detoxification)

  • वमन (Vomiting therapy): शरीर से विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने के लिए।
  • विरेचन (Purgation): मल के माध्यम से दोषों को बाहर करना।
  • बस्ती (Enema): वात दोष को संतुलित करने के लिए।

4. योग और व्यायाम (Yoga and Exercise)

  • योगासन: वज्रासन, पवनमुक्तासन, और भुजंगासन।
  • हल्के व्यायाम और रोजाना प्राणायाम (अनुलोम-विलोम)।

5. घरेलू नुस्खे

  • अदरक और हल्दी का दूध।
  • गर्म पानी में नमक डालकर जोड़ों की सिकाई।
  • मेथी दाने और अलसी के बीज का सेवन।

वातरक्त से बचाव के उपाय

  1. नियमित दिनचर्या अपनाएं।
  2. वात संतुलित आहार का सेवन करें।
  3. तनाव और चिंता से बचें।
  4. व्यायाम और योग को दिनचर्या में शामिल करें।
  5. आयुर्वेदिक औषधियों और घरेलू नुस्खों का पालन करें।

निष्कर्ष

वातरक्त एक गंभीर लेकिन उपचार योग्य रोग है। अष्टांग संग्रह और आयुर्वेद के सिद्धांतों के अनुसार वात और रक्त को संतुलित करके इस रोग का सफल उपचार किया जा सकता है। नियमित आहार-विहार, औषधियों का सेवन और पंचकर्म से न केवल रोग ठीक होता है, बल्कि शरीर में ऊर्जा और स्वास्थ्य का संचार भी होता है।

डिस्क्लेमर:
इस लेख में दी गई जानकारी शैक्षिक और सूचना मात्र के उद्देश्य से है। यह किसी भी प्रकार से चिकित्सा सलाह का विकल्प नहीं है। किसी भी स्वास्थ्य समस्या या उपचार के लिए कृपया योग्य चिकित्सक या आयुर्वेद विशेषज्ञ से परामर्श करें। इस लेख में दी गई जानकारी के उपयोग से उत्पन्न किसी भी प्रकार की हानि के लिए लेखक या वेबसाइट उत्तरदायी नहीं होंगे। हमेशा अपनी स्वास्थ्य स्थिति के अनुसार विशेषज्ञ की सलाह लें।

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