तरुणी कुसुमाकर चूर्ण

तरुणी कुसुमाकर चूर्ण

तरुणी कुसुमाकर चूर्ण-जब भी आपको कब्ज की शिकायत होती होगी तो आपको आयुर्वेदिक चूर्ण के बारे में याद जरूर आती होगी। कब्ज को दूर करने वाला यह उत्तम औषधि योग है। इस पोस्ट के माध्यम से हम जानेंगे तरुणी कुसुमाकर में क्या-क्या घटक द्रव्य होते हैं? क्या फायदे हैं क्या नुकसान है? यह एक हर्बल लैक्सेटिव है जो हर मेडिकल स्टोर पर मिल जाता है। केवल कब्ज ही नहीं बल्कि साथ-साथ कई और परेशानियां भी दूर करता है।

तरुणी कुसुमाकर चूर्ण के घटक द्रव्य

सनाय-

यह एक अच्छा दस्तावर औषधि द्रव्य है। इसका उपयोग कब्ज दूर करने के साथ-साथ पाचन तंत्र को सही करने तथा आम का पाचन करने में किया जाता है। यह वात का अनुलोम करता है। गैस दूर करता है, भूख को बढ़ाता है। सनाय का अधिक उपयोग पेट का आफरा होने पर प्रयोग नहीं करवाया जाता है। कम उम्र के बच्चों को इसका सेवन नहीं करवाना चाहिए। सनाय का रस कषाय कटू तिक्त गुण – लघु रुक्ष तीक्ष्ण वीर्य – उष्ण विपाक – कटु होता है। यह रेचन का कार्य करता है। यह त्वचा रोगों, दमा, विषम ज्वर( मलेरिया), अपच के लिए प्रयोग किया जाता है।

गुलाब पंखुड़ी-

गुलाब की पंखुड़ी का प्रयोग कई आयुर्वेदिक दवाइयों में किया जाता है। भरपूर मात्रा में एंटीऑक्सीडेंट पाए जाते हैं। अधिक फाइबर पाया जाता है जो कब्ज की शिकायत को दूर करता है। एंटीबैक्टीरियल, यूरिनरी ट्रैक्ट इनफेक्शन की समस्या में भी फायदेमंद है। गुलकंद बनाने, फेस पैक बनाने, त्वचा के लिए, आंखों के लिए प्रयोग किया जाता है।

सेंधा नमक-

सेंधा नमक में मिनरल्स पाए जाते हैं। सेंधव नमक का सेवन कई पाचक रस के निर्माण में सहायता प्रदान करता है। पाचन तंत्र को मजबूत एवं दुरुस्त करता है।

काला नमक-

काला नमक का प्रयोग पेट की गैस, मजबूत पाचन तंत्र और कब्ज के लिए प्राचीन काल से किया जा रहा है। काले नमक के सेवन से तनाव से मुक्ति मिलती है नींद अच्छी आती है ।

सफेद जीरा-

सफेद जीरे का प्रयोग गैस ,भूख न लगना तथा दस्त की शिकायत में करवाया जाता है। यह जीवाणु नाशक होने के साथ-साथ अपच दूर करने वाला,खून को साफ करने वाला, मूत्र जनन करने वाला, दूध पिलाने वाली माताओं का दूध बढ़ाने वाला आर्तव जनक भी है।

काला जीरा-

काला जीरा-वात का अनुलोम करने वाला , रेचक , भूख बढ़ने वाला , पाचन तंत्र को सुधरने में सहायक होता है ।

यवक्षार –

यह कटु रस, उष्ण वीर्य, कटु विपाक होता है। यवक्षार का प्रयोग पेट से संबंधित रोगों के साथ-साथ मूत्र रोगों, मूत्राशय में दर्द, बार-बार रुक रुक कर पेशाब आने की समस्या में भी प्रयोग करवाया जाता है। पथरी रोग में किसका प्रयोग किया जाता है। यह कफ और वात विकारों को दूर करता है। आमवात के लिए भी इसका प्रयोग फायदेमंद है।

हरड़-

इसे हरीतकी भी कहते हैं। शरीर की कमजोरी, आंतों में कब्ज की शिकायत, आम का पाचन ना होना, सूजन, रक्त विकार इत्यादि में प्रयोग किया जाता है। हरड़ अलग-अलग अनुपान के साथ अलग-अलग रोगों में प्रयोग में लाई जाती है। हरड़ आंतों के लिए अमृत है।

सोंठ –

इसे शुंठी भी कहा जाता है। यह भी एक त्रिकटु का घटक द्रव्य है। अदरक का सूखा स्वरूप शुंठी कहलाता है। यह कफ का शमन करने वाला और पित्त को बढ़ाने वाला औषधि द्रव्य है। पाचन तंत्र के लिए यह फायदेमंद दवा है। इसका प्रयोग सुबह-सुबह जी मचलना घबराहट में भी उपयोग किया जा सकता है।

काली मिर्च-

त्रिकटु चूर्ण का भी यह एक घटक द्रव्य है। काली मिर्च मसालों के रूप में हर घर में उपयोग की जाती है। यह एंटीबैक्टीरियल एंटीऑक्सीडेंट एंटीसेप्टिक पाचन तंत्र को सुधारने वाला आर्तव जनक और लार ग्रंथियों को सक्रिय करने वाला औषधि द्रव्य है। भूख की कमी, अरुचि, पेट दर्द, कब्ज की शिकायत , गले में कफ की शिकायत, बुखार, गैस की शिकायत के साथ-साथ कई अन्य समस्याओं में प्रयोग में लाया जाता है।

पिपली-

इसे पिप्पली नाम से भी जाना जाता है। पीपल के फल के रूप में इसे प्राप्त किया जाता है। यह कटु उष्ण और मधुर विपाक वाला द्रव्य है। पीपल का प्रयोग पाचन तंत्र, श्वसन तंत्र, प्रजनन तंत्र के संबंधित रोगों में प्रयोग में लाया जाता है। यह अग्नि वर्धक, आम का पाचन , दर्द निवारक कृमि नाशक, कफ को बाहर निकालने वाला, श्वास नली ओं मे विस्फरित करने वाला होता है। पित्त बढ़ाने वाला होने के कारण पित्त प्रकृति के रोगियों पर सावधानी से प्रयोग किया जाता है।

इलायची-

आयुर्वेद में इसे एला भी कहते हैं। यह ठंडी प्रकृति की होती है। यह त्रिदोष नाशक पाचन तंत्र को मजबूत करने वाला, पुष्टिकर,गैस दूर करने वाला, मूत्र जनन करने वाला, मूत्र में जलन को दूर करने वाला, कब्ज दूर करने वाला, कफ को दूर करने वाला होता है। यह ब्रोंकाइटिस, अस्थमा, गले के रोग, पाइल्स, गैस और उल्टी में भी प्रयोग किया जाता है।

टंकण-

अंग्रेजी में बोरेक्स कहा जाने वाला आयुर्वेद की टंकण भस्म है। यह एंटीसेप्टिक, कफ को दूर करने वाला, सूजन को कम करने वाला, जलन कम करने वाला घटक द्रव्य।

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तरुणी कुसुमाकर चूर्ण सेवन मात्रा-

रात को सोते समय एक चम्मच गुनगुने पानी से चिकित्सक की देखरेख में सेवन करें।

उम्र, रोग के प्रभाव, देशकाल के अनुसार चिकित्सक निर्देशानुसार।

तरुणी कुसुमाकर चूर्ण के फायदे

  • विशेषकर कब्ज को दूर करने के लिए इसका प्रयोग कराया जाता है।
  • पेट से संबंधित रोगों में यह फायदेमंद है। जैसे भूख ना लगना और भोजन का ना पचना।
  • अम्ल पित्त (एसिडिटी)
  • मुख पाक ( मुंह के छाले)
  • सिर दर्द
  • पेट की गैस

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तरुणी कुसुमाकर सेवन में सावधानी

  • बिना डॉक्टर की सलाह के प्रयोग ना करें।
  • नमक होने के कारण हृदय रोगी इसका सेवन न करें।
  • गर्भवती महिला को सेवन ना करवाएं।
  • दूध पिलाने वाली माता इसका प्रयोग ना करें।
  • इनफर्टिलिटी का इलाज करवा रहे हैं । उन पुरुषों को सेवन नहीं करना चाहिए।
  • बच्चों की पहुंच से दूर रखें।
  • लगातार प्रयोग करने से इसकी आदत लग सकती है।

कहां से खरीदें?

हर आयुर्वेदिक मेडिकल स्टोर पर आसानी से उपलब्ध। ऑनलाइन खरीदने के लिए नीचे दी गई चित्र पर क्लिक करें।

तरुणी कुसुमाकर के संभावित दुष्प्रभाव-

अधिक मात्रा में सेवन दस्त लगा सकता है। जिससे शरीर में जल की कमी हो सकती है।

प्रवाहिका,ग्रहणी रोग में इसका प्रयोग ना करें। इसका सेवन आफरा कर सकता है।

चेतावनी – इस लेख में दि गई जानकारी चिकित्सा परामर्श नहीं है ! किसी भी दवा के सेवन से पूर्व डॉक्टर की सलाह लेवे !

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