मिट्टी चिकित्सा क्या है -मिट्टी ( mud )पृथ्वी का तत्व है । पृथ्वी हमारी माता है जो हमें पालती है । पृथ्वी से ही मिटटी है और उसी मिट्टी से हम पोषण प्राप्त करते है । मिट्टी चिकित्सा प्राकृतिक चिकित्सा का ही एक भाग है । आज आयुर्वेद और प्रकृतिक चिकित्सा के प्रति जनजागरूकता एवं रुझान अत्यधिक हुआ है । इसका मुख्य कारण दुष्प्रभाव रहित चिकित्सा है ।प्रक्रति ने हमें इस पृथ्वी पर स्वस्थ रहने के कई द्रव्य,द्रव , वनस्पतियाँ दिए है । जिसमे से एक है मिटटी जो सर्व सुलभ है । आइये जानते मिटटी चिकित्सा के बारे में और भी मजेदार जानकारी –
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मिट्टी की शक्ति व गुण
- शारीरिक दुर्गंध एक आम समस्या है जिसके लिए णा जाने कितने प्रकार के इतर पाउडर और सुगन्धित स्प्रे प्रयोग किये जाते है । दुर्गन्ध प्राकृतिक तरीके से मिटाने के लिए मिटटी का प्रयोग लेप के रूप में किया जाता है । अलह अलग मिट्टियों के अलग अलग प्रभाव और गुण है ।
- शरीर पर त्वचा संबंधी रोगों को ठीक करने में सहायक होती है ।
- शरीर में दूषित पदार्थो को बहार निकाल देती है ।
- कब्जी ,सिरदर्द , ह्रदय रोग (उच्चरक्तचाप ) जैसी स्वास्थ्य समस्याओ में प्रयोग किया जाता है ।
- विष जहर (सांप, बिच्छू के डंक से ) अवशोषित करने में सहायक होती है ।
- सोंदर्य प्रसाधन एवं रक्त विकार चिकित्सा में ।
- सर्दी व गर्मी रोकने की क्षमता मिटटी में होती है । गर्मियों में गीली मिटटी का लेप किया जाता है ।
रोगानुसार उपचार -मिट्टी में रेडियम होता है जो जो प्राकृतिक रेडियम शरीर की ग्रंथियों को की स्वास्थ्य हार्मोन संतुलन करता है
रक्त में विजातीय द्रव्य को दूर करता है।
सभी प्रकार के पोषक तत्व उपस्थित मिट्टी के प्रकार विभिन्न प्रकार के हैं उसके गुण अपने आप में विशिष्ट है ।
मिट्टी के प्रकार
काली मिट्टी ,लाल मिट्टी ,मुल्तानी मिट्टी, सजी मिट्टी, पीली मिट्टी, चिकनी मिट्टी इत्यादि ।
मिट्टी के प्रयोग
मिट्टी स्नान – साफ सुथरी मिट्टी को पानी मिला कर लेप बनाया जाता है । लेप में ऋतू के अनुसार गर्म या ठंडा पानी मिलाया जाता है । जिसको छाया या धुप में बिठाकर पतला लेप शारीर पर लगाया जाता है और उसको २० मिनट से 30 मिनिट तक सूखने के बाद पानी से रगड़ कर धो लिया जाता है ।
मिट्टी की पट्टियाँ –जरुरत के अनुसार जिस अंग की चिकित्सा की जाती है उसके अनुसार पट्टी का निर्माण कर प्रयोग किया जाता है ।
मिट्टी के चिकित्सा प्रयोग में सावधानियां
- मिट्टी साफ-सुथरे स्थान या खेत की दो और एक या डेढ़ फीट नीचे की होनी चाहिए
- केमिकल खाद रहित होनी चाहिए ।
- सूर्य के किरणों में सुखाना चाहिए ताकि जीवाणु संक्रमण से बच सके ।
- मिट्टी को छलनी से छान कर कंकड़ पत्थर निकाल लेने चाहिए।
- मिट्टी चिकनी हो उसमें बालू मिला हूंआ हो ।
- उसे हाथ से ना छूकर किसी लकड़ी की लकड़ी के यंत्र से मिलाकर तैयार करें।
- ग्रीष्म काल में ठंडे जल से मिलाये ।
- शीतकाल में गर्म जल से मिट्टी तैयार करें।
- एक बार प्रयोग में लिए मिट्टी वापिस प्रयोग ना करें।
प्रभावित अंग के अनुसार पट्टियाँ
- पेडू – नाभि के चार अंगुल ऊपर व चार गुनगुन नीचे की और
- गले की मिट्टी पट्टी
- घुटने की मिट्टी पट्टी
- सीने की मिट्टी मिट्टी
- आंख की मिट्टी पट्टी
- कान की मिट्टी पट्टी
- मेरुदंड की मिट्टी पट्टी
15-20 मिनट बाद मिट्टी पट्टी रहने के बाद पानी से साफ कर सूखी मालिश तेल मालिश करें।
विशेष – महिलाएं मासिक धर्म में चार-पांच दिन प्रयोग ना करें।
भोजन की ३- 4 घंटे बाद लकड़ी की फ्रेम पर सूती कपड़ा बिछाकर मिट्टी की फ्रेम में रखकर बराबर कर ले
पट्टी लगाने के उपरांत मोटे कपड़े से ढक ले सर्दियों में उन्हें कंबल ओढा सकते हैं।
गर्भवती महिलाएं ना करें
अन्य रोगों मे संबंधित अंग पर यही चिकित्सा करें। आपने जाना मिट्टी चिकित्सा क्या है
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