सूर्य नमस्कार कैसे करते हैं – आयुर्वेद के ग्रंथों में महर्षियो द्वारा इसका वर्णन मिलता है । आयुर्वेद में स्वास्थ्य रक्षा के लिए तथा स्वास्थ्य के संवर्धन के लिए। आहार-विहार, दिनचर्या, ऋतु चर्या का पालन करना आवश्यक होता है ।
महर्षि चरक के अनुसार – चार पुरुषार्थ धर्म अर्थ काम और मोक्ष की प्राप्ति भी । स्वस्थ शरीर होने पर ही जा सकती है। सूर्य की उपासना भारत में वैदिक संस्कृति से चली आ रही है ।
सूर्योदय के समय अर्ध्य देने की परंपरा हजारों वर्षों पूर्व से चली आ रही है ।
विज्ञान के अनुसार भी प्रातः काल -सूर्य की किरणें हमें विटामिन डी की प्रचुर मात्रा उपलब्ध कराता है । सुबह की सूर्य की किरणें पराबैंगनी किरणें होती है ।
जो शरीर में ऊर्जा और स्फूर्ति का संचार करती है । इसलिए मॉर्निंग वॉक इवनिंग वॉक से ज्यादा फायदेमंद होती है ।
सूर्योदय के समय स्वच्छ निर्मल कपड़े पहनकर। जैसे अंगोछा पहनकर सूर्य को अर्घ्य देने से सूर्य की पराबैंगनी किरणें शरीर पर पड़ती है ।
और इससे एक अलग ही ऊर्जा जागृत होती है ।
इसलिए सूर्य नमस्कार का महत्व अधिक है। क्योंकि सूर्य नमस्कार करने से व्यक्ति शारीरिक एवं मानसिक दोनों प्रकार के रोगों से बचा रहता है ।
विधि पूर्वक भगवान सूर्य के सामने खड़ा सूर्य नमस्कार का अभ्यास करने से व्यक्ति का शरीर निरोगी सुडोल लचीला और मजबूत होता है ।
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सूर्य नमस्कार करने से पहले के आवश्यक निर्देश-
- सुबह में उठकर शौच आदि निवृत्ति के पश्चात इसका अभ्यास करना चाहिए ।
- सूर्य नमस्कार करते समय ढीले कपड़े पहने ताकि किसी भी आसन या मुद्रा में परेशानियां अनुभव ना हो ।
- अभ्यास करने से पहले पूरी जानकारी लेवे ।
- किसी भी रोग से ग्रस्त होने की स्थिति में सूर्य नमस्कार ना करें । अथवा चिकित्सक की देखरेख में करें ।
- महिलाएं मासिक धर्म के समय इसका अभ्यास न करें ।
- कब श्वास को अंदर लेना है कब श्वास को बाहर छोड़ना है इसकी पूरी जानकारी लेवे । जानकारी आगे उपलब्ध है ।
- शुरुआत में दो से तीन चक्र ही पूरे करें बाद में क्षमता के अनुसार इसे बढ़ाते जाएं ।
- कोशिश करें कि खुले वातावरण में । जैसे गार्डन , घर की छत , बालकनी पर रहकर । सूर्य भगवान के सम्मुख खड़े होकर सूर्य नमस्कार का अभ्यास करें ।
- बंद कमरे की अपेक्षा बालकनी या खुले कमरे में । जहां सूर्य का प्रकाश और हवा आती हो वहां सूर्य नमस्कार का अभ्यास करें ।
सूर्य नमस्कार कैसे करते है ।सूर्य नमस्कार की 12 मुद्राएं और 12 मंत्र
सूर्य नमस्कार कैसे करते हैंकुल 12 आसन होते हैं । आसनों को करते समय मंत्र उच्चारण का अपना अलग ही महत्व है । विधि पूर्वक किया हुआ सूर्य नमस्कार अत्यंत लाभकारी होता है ।
- ॐ मित्राय नमः
- ॐ रवये नमः
- ॐ सूर्याय नमः
- ॐ भानवे नमः
- ॐ खगाय नमः
- ॐ पूष्णे नमः
- ॐ हरिण्यगर्भाय नमः
- ॐ मारिचाय नमः
- ॐ आदित्याय नमः
- ॐ सावित्रे नमः
- ॐ अर्काय नमः
- ॐ भास्कराय नमः
सूर्य नमस्कार कैसे करते हैं सूर्य नमस्कार के चक्र-
स्वास्थ्य रक्षा एवं संवर्धन के लिए सूर्य नमस्कार के 12 चक्र का अभ्यास रोजाना करना चाहिए।
सूर्य नमस्कार करने के लाभ-
- सूर्य नमस्कार करने से मन शांत एकाग्र और सात्विक होता है।
- मन में आत्मविश्वास और संकल्प शक्ति का विकास होता है।
- शरीर में हार्मोन संबंधी गड़बड़ियों और अनियमितताएं दूर होती है।
- सूर्य नमस्कार करते समय कब श्वास लेना है । कब श्वास को छोड़ना है। इस बात का ध्यान रखा जाए तो इससे तंत्रिका तंत्र मजबूत होता है। और मस्तिष्क की क्रियाशीलता में बढ़ोतरी होती है।
- सूर्य नमस्कार करते समय पेट के आसपास की मांसपेशियों में खिंचाव और रक्त प्रवाह के कारण पेट के ऊपर जमी हुई एक्स्ट्रा फैट धीरे-धीरे खत्म हो जाती है। और जिन व्यक्तियों को कब्ज की शिकायत रहती है वह भी दूर हो जाती है।
- सूर्य नमस्कार करने से फेफड़ों में मजबूती आती है।
- शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता में बढ़ोतरी होती है ।
- शरीर में रक्त प्रवाह सुचारू होने से प्रत्येक कोशिका तक रक्त प्रवाह होने से। शरीर ऊर्जावान और स्फूर्ति अनुभव होता है ।
- सूर्य नमस्कार के लगातार करने से शरीर में विषैले विजातीय पदार्थ बाहर निकल जाते हैं ।
- शरीर में जमी हुई जमी हुई वसा धीरे धीरे कम होने लगती है ।और शरीर गठीला और मजबूत बन जाता है ।
सूर्य नमस्कार कैसे करते हैं आसन मुद्राएं फायदे
प्रथम मुद्रा-
सूर्य नमस्कार कैसे करते हैं- इसमें आपको सीधे खड़े रहना है ।
दोनों हाथों को जोड़कर कोहनियों को बगल में निकाल कर प्रसन्न मुद्रा में खड़ा रहना है।
दोनों अंगूठे को गले से थोड़ा नीचे वक्ष स्थल पर रखना है । शरीर का भार किसी एक पैर पर ना रखें । पंजे पर खड़े रहे एडी पर नहीं खड़े रहना है । श्वास की प्रक्रिया सामान्य रखें।
फायदे- एकाग्रता में बढ़ोतरी होती है।चलने की गलत आदत में सुधार होता है । शरीर का संतुलन बनता है।
दूसरी मुद्रा-
नमस्कार मुद्रा को खोल कर श्वास को अंदर लेते हुए दोनों हाथों को सिर के ऊपर से आगे की तरफ रखते हुए धीरे-धीरे कमर से अपना धड़ झुकाते हुए पीछे की तरफ जितना हो सके झुकाते हैं।
जिन लोगों को चक्कर आने की समस्या है। वे लोग सिर को सीधा रखते हुए जितना हो सके उतना झुके। इसे उर्ध्व ताड़ासन के नाम से भी जाना जाता है।
फायदे- इससे कमर कंधे और बगल में बड़ी हुई चर्बी दूर होती है। फेफड़ों में हवा भरने से ह्रदय यकृत आमाशय में खींचाव पड़ने से उनकी मांसपेशियां मजबूत होती है।
पेट पर खींचाव से आंतों की मांसपेशियां मजबूत होती है। आंतों की क्रियाशीलता बढ़ने से कब्ज की शिकायत भी दूर होती है। पिट्यूटरी थायमस और थायराइड ग्रंथि की कार्य क्षमता बढ़ती है।
तीसरी मुद्रा
दूसरी मुद्रा से वापस सीधा हो जाए । दोनों हाथों को सिर के ऊपर से सीधा रखें ।हथेलियां सामने की तरफ रखें। धीरे धीरे स्वास को छोड़ते हुए कमर से आगे की तरफ झुकते हुए । हथेलियों को पंजों के साइड में आराम से जमाये।
कोशिश करें कि आपके माथे का ललाट दोनों पैरों के बीच में टिके। इसे पादहस्तासन भी कहते हैं। आगे की तरफ झुकने के लिए जबरदस्ती करने की कोशिश ना करें। जितना हो सके उतना ही आगे झुके। आगे की तरफ जाते समय पैरों को घुटनों से टेढ़ा ना होने दें।
फायदे- पेट की गैस कब्ज की शिकायत और पाचन से संबंधित रोगों में फायदा होता है।
बढ़ी हुई प्रोस्टेट के रोगियों को फायदा होता है। महिलाओं में मासिक धर्म की अनियमितता को दूर करता है। और साथ ही साथ गर्भाशय और गर्भाशय की मांसपेशियों को मजबूती प्रदान करता है। कमर और पेट की चर्बी को दूर करता है।
जांघों और नितंब की चर्बी दूर करता है। शरीर को सुडौल बनाता है। जिनके पैरों में बॉयटे आती है । उन्हें भी लाभ मिलता है। सिर में रक्त का प्रवाह बढ़ता है जिसके कारण मस्तिष्क की क्रियाशीलता बढ़ती है एवं मुंह पर कांति आती है।
चौथी मुद्रा-
धीरे-धीरे श्वास को अंदर लेते हुए दाएं पैर को उठाकर आसानी से पीछे लंबा व सीधा रखें ।दाएं पैर का घुटना व पंजा आसनी पर रखा रहेगा। बाया पैर अपने स्थान पर ही आसनी पर घुटने से मुड़ा हुआ रखा रहेगा। अब वक्ष प्रदेश को बाए मुड़े हुए रखे हुए पेड़ से दूर लेते जाएं पीठ की चाप बनाकर।
शरीर को थोड़ा सा पीछे की तरफ झुकाए। इस पूर्ण स्थिति को ‘अश्वसंचालनासन’ नाम से जाना जाता है।
इस आसन को करते समय मांसपेशियों को ढीला छोड़ें। कमर के प्रदेश पर ज्यादा से ज्यादा आसनी की तरफ आ जाए ।
कमर का चाप बनाते हुए सीना आगे लाएं। स्लिप डिस्क हर्निया से पीड़ित रोगी ना करें। अथवा योग्य चिकित्सक की सलाह से करें।
फायदे – सीना चौड़ा सुडौल और मजबूत बनेगा। जांघो, नितम्भ ,कमर ,पेट ,पेड़ू ,गर्दन ,कंधो पर जमा मेद (fat)दूर होगा। डायबिटीज के रोगी और थायराइड से ग्रसित रोगियों के लिए यह लाभकारी है।
फेफड़ों ह्रदय यकृत से जुड़े रोगों में फायदा होता है।
सर्वाइकल स्पोंडिलाइटिस और प्रोस्टेट के रोगियों के साथ-साथ महिलाओं में गर्भाशय से जुड़ी दिक्कतों में फायदा पहुंचाता है।
पांचवी मुद्रा-
चौथी स्थिति से जो बाया पैर मुड़ा हुआ था उससे उठाकर दाएं पैर की सीध में मिलाकर पीछे आसन पर रखें। फिर श्वास को बाहर छोड़ते हुए कमर को ऊपर उठाना है।
एडीओ को जितना हो सके आपस में सटाकर आसनी की तरफ लाएं। सिर को पेट की तरफ झुकाए और नाभि को देखने की स्थिति में आए। इस मुद्रा को पर्वतासन भी कहते हैं।
सावधानी रखें-
मुद्रा ना होने की स्थिति में किसी भी अंग पर दबाव बनाकर करने की कोशिश ना करें। उच्च रक्तचाप के रोगी हाइपरटेंशन वाले रोगी,सर्वाइकल स्पोंडिलाइटिस की समस्या में गर्दन को सीधा ही रखें।
फायदे-
एड़ी घुटने के दर्द में लाभ होता है। बाल झड़ने की समस्या के साथ-साथ में पिंपल की समस्या भी दूर होती है। कब्ज की समस्या और हर्निया में लाभ होता है। पैर कंधे मजबूत होते हैं और शरीर की एक्स्ट्रा चर्बी दूर होती है।
छठी मुद्रा-
गर्दन को सीधा रखें श्वास को अंदर खींचे दोनों पंछियों और दोनों घुटनों सीना ठोड़ी या माथा में से कोई एक इन आठ अंगों को आसान पर टिकाये।
क्योंकि दोनों हथेलियां आसन पर पहले से ही रखी हुई रहती है 8 शरीर के अंगो का आसानी से संपर्क कर रहने के कारण। योगाचार्य ने इसे साष्टांग प्रणाम की स्थिति कहा गया है। पूर्व स्थिति में श्वास को धीरे-धीरे बाहर छोड़ें। इस आसन को करते समय नाभि से कमर तक का भाग आसान से उठा हुआ होना चाहिए।
फायदे- पेट के अंगों को आराम मिलता है। कमर दर्द और हर्निया के रोगियों को लाभ मिलता है।
सातवीं मुद्रा-
दोनों पंजों को पीछे आसन पर लंबा करें। धीरे धीरे श्वास को अंदर लेते हुए कमर को आसन पर लाएं। और वक्ष प्रदेश को आसानी से उठाकर पीठ का भाग चाप बनाते हुए। हाथों को सीधा करते हुए जाए पुणे स्थिति में गर्दन को पीछे की तरफ ले जाए। इसे सर्पासन भी कहते है।
सावधानी-
जोर जबरदस्ती ना करें। कमर को आसन से सटा हुआ रखें।
दोनों पैरों की उंगलियों को आसन पर लंबा सीधा रखें और दोनों पैर आपस में जुड़े हुए रहे।
फायदे-
मन्या स्तंभ( सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस) डायबिटीज और थायराइड ग्रंथि के रोगियों में विशेष लाभ होता है।
यह पूरे शरीर पर यह पूरे शरीर पर स्थित एक्स्ट्रा फैट को दूर करने में लाभकारी है।
कमर दर्द और स्लिप डिस्क के रोगियों में लाभ होता है।
कमर रीड की हड्डी लचीली और सीना चौड़ा होता है।
नाभि टलने की स्थिति में यह आसन करना सर्वोत्तम माना गया है जिससे नाभि वापस यथा स्थान आ जाती है।
पेट की गैस की समस्या और इसके साथ ही कब्ज की समस्या दूर होती है।
आठवीं मुद्रा-
सर्पासन की स्थिति से सिर को सीधा करके श्वास को बाहर छोड़ते हुए। वापस पर्वतासन की स्थिति में आ जाए। जैसा की पांचवी मुद्रा में बताया गया है। लाभ पांचवी मुद्रा में वर्णित किए जा चुके हैं।
नवी मुद्रा-
श्वास को अंदर खींचते हुए अश्वसंचलासन की स्थिति में आए लेकिन। उसमें यह ध्यान रहे कि चौथी स्थिति में पैरों की जो स्थिति थी उससे बिल्कुल विपरीत अर्थात बाया पैर आसन पर लंबवत रहेगा ।और दाया पैर घुटने से मुड़ा हुआ रहेगा। लाभ चौथी स्थिति में वर्णन किया जा चुका है।
दसवीं मुद्रा
श्वास को बाहर छोड़ते हुए। पैरों के पीछे रखा हुआ बाया पैर उसको आगे लाएं। और फिर से पादहस्तासन की स्थिति में आ जाए। लाभ तीसरी स्थिति में वर्णित है।
11वीं मुद्रा-
माथे को घुटनों से हटाकर हथेलियों को आसानी से उठाएं। और श्वास को अंदर लेते हुए शरीर को सीधा करें। हाथों को सिर के ऊपर ले जाएं और फिर कमर से पीछे की तरफ झुके। और ऊर्ध्व ताड़ासन की स्थिति में आ जाए। लाभ दूसरी मुद्रा में वर्णित है।
12वी मुद्रा-
श्वास को बाहर छोड़ते हुए शरीर को सीधा रखें। और वापस नमस्कार की मुद्रा में आ जाए।पहली मुद्रा में वर्णित है ।
इस तरह सूर्य नमस्कार का एक चक्र पूरा होता है। सूर्य नमस्कार के एक चक्र में 7 आसन स्थिति आती है और अन्य की पुनरावृति होती है।
और पढ़े…कौंच पाक के फायदे.
और पढ़े ……स्मृति सागर रस के फायदे
और पढ़े …..लौकी के फायदे